यहां जंगल-झाड़ में बिखरी हैं प्रतिमाएं

सतगांवा से लौट कर जीवेशसतगांवा प्रखंड (कोडरमा जिले) की कटैया पंचायत के घोरसीमर स्थित घुश्वमेश्वर धाम जाने पर क्षोभ होता है. सकरी नदी के तट पर स्थित लगभग 2200 सौ वर्ष पुराने इस शिव मंदिर की स्थिति दयनीय है. मंदिर के आसपास के लगभग ढाई किलोमीटर की दूरी में कहीं नंदी, तो कहीं शिव की […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 26, 2016 6:04 AM
सतगांवा से लौट कर जीवेश
सतगांवा प्रखंड (कोडरमा जिले) की कटैया पंचायत के घोरसीमर स्थित घुश्वमेश्वर धाम जाने पर क्षोभ होता है. सकरी नदी के तट पर स्थित लगभग 2200 सौ वर्ष पुराने इस शिव मंदिर की स्थिति दयनीय है. मंदिर के आसपास के लगभग ढाई किलोमीटर की दूरी में कहीं नंदी, तो कहीं शिव की प्रतिमाएं बिखरी पड़ी हैं.
कहीं झाड़ियों के बीच कोई ऐतिहासिक अवशेष पड़ा है, तो कहीं कोई शानदार कलाकृति कुल्हाड़ी पिजाने के कारण खराब हो चली है. लोगों के अनुसार, किसी काम के लिए खुदाई हुई नहीं कि कोई कलाकृति या प्रतिमा निकल जाती है, इससे परेशान रहते हैं गांव के लोग.
बेशकीमती और ऐतिहासिक प्रतिमाअों की लगातार चोरी होने की घटना के बाद इस पंचायत के आर्थिक व शैक्षणिक रूप से कमजोर लोगों ने खुद व्यवस्था की कमान संभाल ली अौर प्रतिमाओं को मंदिर प्रांगण में जहां-तहां सीमेंट से जोड़ दिया है. जगह-जगह छोटा-छोटा मंदिर भी बनाया है. जहां कुछ नहीं हो सका, वहां लाल कपड़े में प्रतिमा को लपेट कर उसकी पूजा करते हैं. बावजूद इसके अभी भी प्रतिमाएं व कलाकृतियां जगह-जगह बिखरी पड़ी हैं. झारखंड के कला-संस्कृति विभाग ने वर्षों पहले इसकी सुध ली और कुछ आधे-अधूरे काम कराये. विभाग द्वारा जो बोर्ड भी लगवाया गया, उस पर मंदिर का नाम गलत लिखा हुआ है. उपायुक्त अौर पुरातत्व विभाग के लोगों ने भी इलाके का निरीक्षण किया, पर हुआ कुछ नहीं. सबसे ज्यादा काम किया कोडरमा के पूर्व उपविकास आयुक्त अभय कुमार सिन्हा (वर्तमान में शिक्षा मंत्री नीरा यादव के आप्त सचिव) ने. उन्होंने पर्यटन विभाग को एक रिपोर्ट भी सौंपी थी, पर उस पर भी विभाग ने संज्ञान नहीं लिया. मंदिर की जमीन पर कुछ लोग कब्जा भी करने लगे हैं. लोगों को आशा है कि आज नहीं तो कल सरकार इसे जरूर धरोहर मानेगी.
दूसरा देवघर मानते हैं सब : दुमदुमा गांव के लोगों के अनुसार यह इलाका दूसरा देवघर है. इसके पीछे उनका तर्क है कि यहां शिवलिंगों की भरमार है. देवघर की तरह ही यहां भी सुइया पहाड़ी, शिवगंगा, दर्शनीय नाला, गोविंदपुर, माधवपुर, विशुनपुर नाम से इलाके हैं. मंदिर के पुस्तैनी पुजारी विवेकानंद पंडा के अनुसार उनका कई पुस्त लगातार इस मंदिर की सेवा कर रहा है. उनके अनुसार उनके पूर्वज नवादा के रौट रुपौल से आकर यहां बसे थे. मंदिर के पास स्थित बैजूनाथ पहाड़ी के बनौत राजा जयदेव व सुखदेव ने उनके पूर्वजों को यह मंदिर सौंपा था.
प्रकृति की गोद में है मंदिर : सकरी नदी के किनारे है मंदिर. नदी का दूसरा किनारा बिहार के नवादा जिले के रोह प्रखंड को छूता है. उस पार पर्वत अौर इस पार भगवान की प्रतिमाएं व कलाकृतियां मन मोह लेती हैं. सावन व फागुन के महीने में श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है. बिहार बॉर्डर पर स्थित ककोलत जलप्रपात से जल लेकर भक्त यहां आते हैं.
कहते हैं ग्रामीण
यहां के लोग डरे रहते हैं
मुन्ना पंडा के अनुसार गांव के लोग प्रतिमाओं की रक्षा करते हैं, पर उन्हें छूते नहीं. इसके पीछे उनके मन में यह भय होता है कि भगवान का शाप लग जायेगा. इसी कारण जो प्रतिमा जहां है, वहीं पड़ी हुई है.
चार फीट खोदा, कलाकृति निकली
चार दिन पहले गांव में ट्यूब बेल के लिए विजय गड्ढा खोद रहा था. इसी दौरान वहां से विशाल कलाकृति निकलने लगी. डर कर उसने गांव के लोगों को बुलाया अौर फिर सबने तय किया कि ट्यूब बेल कहीं और लगे. अभी खुदाई से निकला पत्थर ऐसे ही पड़ा है.
हर ओर मूर्ति है, क्या करें
विंदेश्वरी यादव उर्फ झागो भगत के घर के पास भी एक प्रतिमा है. कहते हैं कि हर ओर प्रतिमा है. बाहर के लोग चुराना चाहते हैं, कितने लोगों से लड़ा जाये. हाल ही में दूसरे गांव में विष्णु भगवान की प्रतिमा ले जाना चाह रहे थे कुछ लोग, पर सबने उसे नहीं जाने दिया. अभी लाल कपड़े में बांध कर रखे हुए हैं.
जाने कटैया पंचायत को
मंदिर कटैया पंचायत के घोरसीमर गांव में है. इससे सटा हुआ गांव है दुमदुमा. इसकी आबादी 726 है. पूरी पंचायत की आबादी 6447 है. खेती कर जीविका चलाते हैं लोग. साक्षरता दर भी काफी कम है. भले खाने को न हो, पर गांव के लोग मंदिर का भला करना चाहते हैं.
(कोडरमा से गौतम व सतगांवा से सुधीर सिंह, तसवीर विजय की)
झारखंड का दूसरा देवघर सतगावां का घुश्वमेश्वर धाम
कैसे पहुंचे मंदिर : पहले सतगांवा जाना कठिन था. बिहार होकर रास्ता था. तब दूरी लगभग 125 किमी थी, पर अब सड़क बन जाने से कोडरमा से सतगांवा की दूरी 60 किमी है. यह सड़क गिरिडीह के गांवा प्रखंड से होकर गुजरती है. सतगांवा मुख्यालय से मंदिर छह किमी की दूरी पर है. कोडरमा से सतगांवा तक चलनेवाले वाहन भी गिने-चुने हैं. रविवार को वो भी नहीं चलते.
आज भी बिहार के नवादा होकर सतगांवा आना आसान है. नवादा-देवघर मार्ग पर नवादा से 30 किमी दूर है सतगांवा. इस मार्ग पर वाहनों की संख्या ज्यादा है. सतगांवा से मंदिर जाने के लिए कोई सार्वजनिक साधन नहीं है. पैदल या खुद की गाड़ी से जाया जा सकता है. रेल की सुविधा कोडरमा और नवादा तक ही है. सड़क के उग्रवाद प्रभावित होने के कारण भी यात्रा सहज नहीं.

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