आदिवासी जमीन पर 1969 के बाद मुआवजा अवैध : महासभा

रांची. आदिवासी सरना महासभा ने कहा कि सीएनटी एक्ट की धारा 71- ए के अनुसार 1969 के बाद जमीन के किसी अंतरण को वैध बनाने का कोई प्रावधान नहीं है. विधायक चमरा लिंडा ने (कहा था कि 1969 से 1999 तक आदिवासी जमीन का मुआवजा वैध है) लोगों को भ्रमित किया है़. राज्य गठन के […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 8, 2016 6:54 AM
रांची. आदिवासी सरना महासभा ने कहा कि सीएनटी एक्ट की धारा 71- ए के अनुसार 1969 के बाद जमीन के किसी अंतरण को वैध बनाने का कोई प्रावधान नहीं है. विधायक चमरा लिंडा ने (कहा था कि 1969 से 1999 तक आदिवासी जमीन का मुआवजा वैध है) लोगों को भ्रमित किया है़.

राज्य गठन के बाद आदिवासी जमीनों के अवैध हस्तांतरण के खिलाफ आदिवासी सरना महासभा 14 मार्च को राजस्व, निबंधन व भूमि सुधार मंत्री के आवास का घेराव करेगी़ महासभा के संयोजक, पूर्व मंत्री देवकुमार धान, शिवा कच्छप, वीरेंद्र भगत व बुधवा उरांव ने सोमवार को होटल संगम गार्डेन,माेरहाबादी में प्रेस वार्ता में कहा कि सीएनटी एक्ट में 30 वर्षों की जो गणना की गयी है, वह जमीन वापसी के लिए केस दाखिल की समय सीमा है़ सिर्फ 1969 के पहले बने घर- मकान का ही कंपनसेशन हो सकता है़ इसके बाद का नहीं. विधायक चमरा लिंडा मामला दर्ज करने के तीस वर्ष को 1969 से तीस वर्ष गिन रहे है़ं.

उन्होंने कहा कि सीएनटी एक्ट या शिड्यूल एरिया रेगुलेशन (एसएआर) 1969 में प्रावधान है कि 1969 से पहले बने घर- मकान का ही कंपनसेशन (मुआवजा) हो सकता है, यदि 1969 से 1999 के बीच घर- मकान बना है, तो वह किसी भी तरह वैध नहीं हो सकता़ सरकार से मांग की है कि यदि 1969 के बाद बने घर- मकान का कंपनसेशन एसएआर कोर्ट के माध्यम से हुआ है, तो इसे अविलंब रद्द कर जमीन के वास्तविक मालिक को जमीन वापस दिलाये़ं यदि 1969 के बाद बने घर- मकान को कंपनसेशन के आधार पर वैध घोषित करने का प्रयास किया गया, तो आदिवासी समाज इसे बरदाश्त नहीं करेगा़.

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