आदिवासी महिला नेतृत्व के गुण से परिपूर्ण : शालिनी

रांची: सामाजिक कार्यकर्ता शालिनी संवेदना ने कहा कि आदिवासी महिलाओं को कहीं बाहर से नेतृत्व सीखने की जरूरत नहीं है़ संघर्ष और बलिदान झारखंडियों की विरासत है. यहां के इतिहास, सांस्कृतिक परंपरा व आदिवासी दर्शन को ध्यान में रखने की जरूरत है़ वह ‘स्थानीय स्वशासी व्यवस्था, सामुदायिक संगठन और अधिकारों के संघर्ष में महिला नेतृत्व’ […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 17, 2015 6:00 AM

रांची: सामाजिक कार्यकर्ता शालिनी संवेदना ने कहा कि आदिवासी महिलाओं को कहीं बाहर से नेतृत्व सीखने की जरूरत नहीं है़ संघर्ष और बलिदान झारखंडियों की विरासत है. यहां के इतिहास, सांस्कृतिक परंपरा व आदिवासी दर्शन को ध्यान में रखने की जरूरत है़ वह ‘स्थानीय स्वशासी व्यवस्था, सामुदायिक संगठन और अधिकारों के संघर्ष में महिला नेतृत्व’ विषयक सेमिनार में बोल रही थी़ं यह आयोजन बिरसा एमएमसी और अद्दी हक महिला मोर्चा ने एचआरडीसी सभागार में किया़.

महिलाओं के मुद्दे पूरे समाज के
दिल्ली से आयी महिला नेत्री असीमा ने कहा कि महिलाओं के मुद्दे केवल उनके ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के है़ं उनके सवालों पर पूरे समाज को मुखर होना चाहिए़ बसनी मुर्मू ने कहा कि ऐसी मुखिया चुनें जो सरकार की पिट्ठू न हो़ स्वतंत्र रूप से अपनी जिम्मेवारी संभालें और पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था का भी ध्यान रखे़ं दुमका से आयी मर्सेला मुर्मू ने कहा कि महिला नेतृत्व की पहली लड़ाई घर से शुरू होती है.

विपुल दिव्य ने कहा कि महिला नेतृत्व में पितृसत्तात्मक मानसिकता बाधक है़ . महिलाओं को वैचारिक जड़ता और गुलामी से बचना चाहिए. कार्यक्रम की अध्यक्षता एलिस चेरोवा ने की़ इस मौके पर बीना लिंडा, करुणा कुमारी, फरजाना फारूकी, रेखा नगेसिया, नेहा कुजूर, मेरी निशा हंसदा, प्रिंया कुंकल, अलका बारजो, छेनो लकड़ा, राजमति देवी, रोशनी होरो, असरिता सुरीन, सिलवंती देवी, सुमरेन मिंज, रीता सोरेन, डॉली मिंज, संध्या कुमारी व अन्य ने भी विचार रखे़ मंच का संचालन लक्ष्मी कुमारी व धन्यवाद ज्ञापन मार्था तिग्गा ने किया. कार्यशाला में रांची, लातेहार, चतरा, खूंटी, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, दुमका, गोड्डा, सिमडेगा, हजारीबाग, सरायकेला और ओड़िशा के सुंदरगढ़ जिले की महिलाएं मौजूद थी़ं.

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