कभी शहर में कदम नहीं रखा, अभावों में निखारी प्रतिभा, अब हॉकी में अपनी प्रतिभा दिखाने झारखंड की पांच बेटियां जा रही हैं अमेरिका

कहते हैं जब हौसलों में पंख लग जाये, तो मुकाम तक पहुंचना आसान हो जाता है. कुछ ऐसा ही किया है झारखंड की पांच बेटियाें ने. इन बेटियों ने आज तक शहर का दीदार नहीं किया, लेकिन जब इनके हौसलों को पंख लगे, तो ये अब सीधे अमेरिका के लिए उड़ान भरेंगी. 300 लड़कियों में […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 15, 2020 6:28 AM
कहते हैं जब हौसलों में पंख लग जाये, तो मुकाम तक पहुंचना आसान हो जाता है. कुछ ऐसा ही किया है झारखंड की पांच बेटियाें ने. इन बेटियों ने आज तक शहर का दीदार नहीं किया, लेकिन जब इनके हौसलों को पंख लगे, तो ये अब सीधे अमेरिका के लिए उड़ान भरेंगी. 300 लड़कियों में इन पांचों का चयन अमेरिका जाने के लिए हुआ है.
अप्रैल में ये अपने गांव से निकल कर सीधे रांची से हवाई जहाज में बैठकर दिल्ली और उसके बाद 19 घंटे की हवाई यात्रा करके अमेरिका की धरती पर कदम रखेंगी. इसमें खूंटी की पुंडी सारू, गुमला की प्रियंका, सिमडेगा की पूर्णिमा नीति, तोरपा की जूही कुमारी और सिमडेगा की ही हरनिता टोप्पो शामिल हैं. इनके जुनून और संघर्ष को बताती दिवाकर सिंह और सनी शरद की रिपोर्ट
हॉकी में अपनी प्रतिभा दिखाने झारखंड की पांच बेटियां जा रही हैं अमेरिका
रांची : झारखंड के अलग-अलग इलाकों से अमेरिका जानेवाली ये बेटियां बाकी लड़कियों की तरह सामान्य ही हैं. इनके घरों की स्थिति ऐसी है कि मुश्किल से दो वक्त के खाने का जुगाड़ हो पाता है. लेकिन इन पांचों ने अपने गांव की सीनियर हॉकी खिलाड़ियों को देखकर एक सपना देखा. खुद को और परिवार को अपने दम पर गरीबी से बाहर निकालने का सपना.
हॉकी खेलना शुरू किया. किसी ने आठ किमी साइकिल से जाकर तो किसी ने गांव में सीनियर खिलाड़ियों के साथ मिलकर हॉकी खेलना शुरू किया. कुछ महीनों बाद ही इन्हें शक्ति वाहिनी संस्था का साथ मिला, जिन्होंने इनको रांची में आयोजित कैंप में शामिल किया और ऑस्ट्रेलिया की कोच से प्रशिक्षण दिलवाया. इनकी प्रतिभा में निखार आया और चयन प्रक्रिया के बाद इन्हें सीधे अमेरिका जाने का टिकट मिल गया. आज इनके परिवार और गांव के लोग इनपर गर्व करते हैं.
मड़ुआ बेचकर खरीदी हॉकी स्टिक
रांची : झारखंड के घोर नक्सल प्रभावित जिला खूंटी के एक छोटे से गांव हेसल की पुंडी सारू गांव से निकल कर सीधे अमेरिका जानेवाली है. उसकी इस सफलता के पीछे संघर्ष की एक लंबी कहानी है.
पुंडी पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर है. पुंडी के तीन भाई और एक बहन हैं. बड़ा भाई सहारा सारू इंटर तक की पढ़ाई कर छोड़ चुका है. पुंडी नौंवी कक्षा की छात्रा है. पुंडी की एक और बड़ी बहन थी, जो अब नहीं रही. पिछले साल मैट्रिक की परीक्षा में फेल हो जाने के कारण फांसी लगाकर उसने आत्महत्या कर ली. उस वक्त पुंडी टूट चुकी थी.
दो महीने तक हॉकी से दूर रही. पुंडी के पिता एतवा उरांव कुछ नहीं कर पाते हैं. पहले वे दिहाड़ी मजदूरी का काम करते थे. मजदूरी करने के लिए हर दिन साइकिल से खूंटी जाते थे. 2012 में एक दिन साइकिल से लौटने के दौरान किसी अज्ञात वाहन ने टक्कर मारी दी जिससे उनका हाथ टूट गया. तीन साल पहले जब पुंडी ने हॉकी खेलना शुरू किया, तो उसे अच्छे हॉकी स्टिक की जरूरत पड़ी.
घर में खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, तब घर का मड़ुआ बेचा और छात्रवृत्ति में मिले 1500 रुपये जोड़कर हॉकी स्टिक खरीदी. अमेरिका जाने के लिए चयनित होने के बाद पुंडी कहती है, हॉकी खरीदने से लेकर मैदान में खेलने तक के लिए काफी जूझना पड़ा है. लक्ष्य सिर्फ अमेरिका जाना नहीं है. हमें निक्की दीदी (भारतीय हॉकी टीम की सदस्य निक्की प्रधान) जैसा बनना है. देश के लिए हॉकी खेलना है. पुंडी कहती है कि पहले पापा बोलते थे, इतना खेलने में मेहनत कर रही हो, क्या फायदा होगा.
हरनिता टोप्पो
सिमडेगा की हरनिता टोप्पो ने अपने घर की गरीबी देखकर इसे दूर करने का सपना देखा. हॉकी स्टिक उठाकर अपने सीनियर खिलाड़ियों के साथ हॉकी खेलने में लग गयी. हरनिता की मां मजदूरी करके घर का खर्च चलाती हैं. शक्ति वाहिनी ने इस खिलाड़ी की प्रतिभा को पहचाना और इसे सिमडेगा से लेकर रांची पहुंची. हटिया के एस्ट्रोटर्फ कैंप में इस खिलाड़ी को खेलने का मौका मिला और यहीं से अमेरिका जाने का टिकट भी.
प्रियंका कुमारी
गुमला के जंपटी गांव की रहनेवाली प्रियंका के पिता को लकवा हो गया है. वहीं इसकी मां घरों में बाथरूम साफ करने का काम करती हैं. वहीं ये खिलाड़ी बांस की लकड़ी से हॉकी स्टिक बनाकर हॉकी का अभ्यास करती थी. कुछ साल पहले जंपटी गांव से प्रियंका और इसके पूरे परिवार को निकाल दिया गया था. नक्सलियों के आतंक के कारण पूरे गांव को खाली कराया गया था. बाद में फिर से प्रियंका का परिवार अपने गांव लौटा.
पूर्णिमा नीति
सिमडेगा के एक गांव की रहने वाली पूर्णिमा नीति की कहानी भी बाकी लड़कियों से मिलती जुलती है. पिता किसान हैं, लेकिन किसी तरह घर का गुजारा चलता है. इस कारण पूर्णिमा की मां को दूसरे के खेतों में मजदूरी का काम करना पड़ता है. बचपन से हॉकी का शौक रहने के कारण पूर्णिक ने हॉकी स्टिक थामा और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी असुंता लकड़ा से प्रभावित पूर्णिमा ने गांव में ही हॉकी सीखी.
जूही कुमारी
तोरपा की जूही कुमारी की हालत और भी दयनीय है. पिताजी हड़िया पीकर घर में रहते हैं. वहीं इनकी माता खेतों में मजदूरी करके घर में रोटी का जुगाड़ करती हैं. हॉकी की ओलिंपियन निक्की प्रधान को देखकर यह खिलाड़ी हॉकी खेल से आगे बढ़ने का सपना देखने लगी. अपने घर की स्थिति सुधारने के लिए जी जान लगाकर हॉकी खेलने लगी. जिसके बाद रांची में लगने वाले कैंप में इनका चयन किया गया.
इधर प्रशिक्षण केंद्र बदहाल
पदमा साईं सेंटर की कटेगी बिजली प्रशिक्षण पर ग्रहण
पदमा : भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) की ओर से पदमा में संचालित साई सेंटर में कभी भी बिजली कट सकती है. सेंटर पर बिजली विभाग का करीब 1.84 करोड़ बकाया है. बकाया बिल का भुगतान करने के लिए बिजली विभाग ने सेंटर को नोटिस जारी किया है. यदि सेंटर की बिजली काट दी गयी, तो 35 प्रशिक्षुओं के प्रशिक्षण पर ग्रहण लग सकता है. साई के अधिकारी सज्जन कुमार ने बताया कि बिजली बिल काफी अधिक बकाया हो गया है. हम लोगों ने सेंटर चालू होने के पूर्व बिजली कनेक्शन काट देने को लेकर आवेदन दिया था, पर नहीं काटा गया. इससे लगातार बिल जोड़ कर भेजा जा रहा है.
बिल में भी काफी गड़बड़ी भी है. सुधार के लिए बिजली विभाग को दर्जनों बार पत्र लिखे गये, लेकिन गंभीरता नहीं दिखी. सेंटर का बिल एक माह में लगभग डेढ़ लाख तक आना चाहिए था, लेकिन 10 से 12 लाख रुपये आ रहा है. इसकी जांच कर सुधार करने की मांग को लेकर उच्च अधिकारी को पत्र लिखा गया है. इसी माह तीन तारीख को 72 हजार रुपये के बिल का भुगतान किया गया है.

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