आगमन का पुण्यकाल-12 : अंत की सोच कर जीवन बितायें

एक पेड़ पर दो बाज रहते थे़ दोनों साथ में शिकार की तलाश में निकलते थे और जो भी पकड़ लाते उसे साथ बैठ कर खाते थे़ एक दिन दोनों शिकार पकड़ कर लौटे़ एक की चोंच में जीवित चूहा और दूसरे की चोंच में जीवित सांप था़ पेड़ पर पहुंचकर दोनाें बाज डाल पर […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 12, 2019 8:47 AM
एक पेड़ पर दो बाज रहते थे़ दोनों साथ में शिकार की तलाश में निकलते थे और जो भी पकड़ लाते उसे साथ बैठ कर खाते थे़ एक दिन दोनों शिकार पकड़ कर लौटे़ एक की चोंच में जीवित चूहा और दूसरे की चोंच में जीवित सांप था़ पेड़ पर पहुंचकर दोनाें बाज डाल पर बैठ गये.
तब सांप ने चूहे को देखा और चूहे ने सांप को़ सांप चूहे को देख कर उसे अपना भोजन समझकर जीभ लपलपाने लगा, वहीं चूहा भी बाज के पास छिपने की कोशिश करने लगा़ यह देख पहले बाज ने सांप की ओर संकेत करते हुए कहा कि यह कैसा मूर्ख है, जो जीभ के स्वाद के आगे मौत को ही भूला बैठा है? यह सुन कर दूसरे बाज ने भी चूहे के बारे में कहा कि इस नासमझ को देखो. इसे प्रत्यक्ष मौत से भी अधिक डर लग रहा है.
हम भी सांप और चूहे की तरह स्वाद व भय को बड़ा समझते हैं और मौत को भूल जाते हैं. इस जीवन में स्वाद और डर दोनों है़ स्वाद सिर्फ जीभ का ही नहीं है़ लालच, ईर्ष्या, घमंड सब स्वाद के दूसरे रूप है़ं
वहीं इनसान को कई तरह के डर भी हैं, जैसे अनहोनी का डर, असफलता का डर, दिल टूटने का डर आदि. जीवन में स्वाद और डर का आना-जाना लगा रहता है़ पर जिस इनसान को अपने अंत का एहसास नहीं है, वह अपनी जिंदगी बिना किसी अनुशासन, नियम-कानून के जीता है़ आगमन काल हमें इस बात का संदेश देता है कि यीशु दोबारा आयेंगे़ इसलिए अंत की सोच कर जीवन बितायें.
फादर अशोक कुजूर, डॉन बास्को यूथ एंड एजुकेशनल सर्विसेज बरियातू के निदेशक

Next Article

Exit mobile version