जलकुंभी से खाद बनाने की तकनीक खोजी

रांची : पाकुड़ में केकेएम कॉलेज के वनस्पति शास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ प्रसेन्नजीत मुखर्जी ने जलकुंभी से छुटकारा दिलाने के लिए उससे ग्रीन खाद बनाने की विधि इजाद की है. इससे तालाबों को जलकुंभी के जकड़न से बचाने में काफी मदद मिलेगी. इस विधि से राज्य के तालाबों में जलकुंभी पर नियंत्रण रखा जा सकेगा. साथ […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 1, 2019 6:51 AM

रांची : पाकुड़ में केकेएम कॉलेज के वनस्पति शास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ प्रसेन्नजीत मुखर्जी ने जलकुंभी से छुटकारा दिलाने के लिए उससे ग्रीन खाद बनाने की विधि इजाद की है. इससे तालाबों को जलकुंभी के जकड़न से बचाने में काफी मदद मिलेगी. इस विधि से राज्य के तालाबों में जलकुंभी पर नियंत्रण रखा जा सकेगा. साथ ही स्थानीय स्तर पर किसानों को सस्ती दर पर ग्रीन खाद भी उपलब्ध होगी.डॉ मुखर्जी ने डॉक्टर ऑफ साइंस (बाॅटनी) की उपाधि हासिल की है.

वह राज्य के दूसरे व्यक्ति हैं, जिन्होंने यह उपाधि प्राप्त की है. डॉ मुखर्जी ने रांची विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार और यूनिवर्सिटी प्रोफेसर डॉ ज्योति कुमार के निर्देशन पर ‘दी फ्लोरिस्टिक स्टडीज आॅफ एक्वेटिक एंजियोसर्पम्स आॅफ मेजर वाटर बाडीज इन झारखंड विथ स्पेशल रेफरेंस टू देयर इकोनॉमिक इमपोर्टेंस’ विषय पर अपना शोध किया था.
शोध के दौरान राज्य के जलीय वनस्पतियों का अध्ययन कर इजाद की है तकनीक
24 जिलों में जलीय क्षेत्रों के वनस्पतियों का किया अध्ययन
डॉ मुखर्जी ने डीएससी शोध के दौरान राज्य के सभी 24 जिलों में जलीय क्षेत्रों के वनस्पतियों का विस्तृत अध्ययन किया. उन्होंने झारखंड के जलीय क्षेत्र में मिले वनस्पतियों के आर्थिक महत्व को रेखांकित किया है. इससे राज्य को काफी लाभ मिलेगा. साथ ही बाॅटनी के विद्यार्थियों को नये अनुसंधान में सहायता भी मिलेगी.
मूल रूप से लोहरदगा के रहनेवाले हैं डॉ मुखर्जी
डॉ प्रसेन्नजीत मुखर्जी मूल रूप से लोहरदगा के रहनेवाले हैं. उनके माता-पिता का नाम रोहिणी व श्यामापद मुखर्जी है. वह डीएससी की उपाधि हासिल करनेवाले राज्य के दूसरे व्यक्ति हैं. उनके पहले विनोबा भावे विश्वविद्यालय के प्रो वीसी डॉ कुनाल कुंदिर वर्ष 2009 में यह उपलब्धि हासिल कर चुके हैं.

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