रांची : बिरसा एग्रीकल्चर विवि देश के टॉप-60 सूची से बाहर

संजीव सिंह, रांची : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) द्वारा जारी नेशनल रैंकिंग से झारखंड का एकमात्र कृषि विश्वविद्यालय बिरसा कृषि विवि (बीएयू) बाहर हो गया है. आइसीएआर की नेशनल रैंकिंग, 2018 में देश के टॉप 60 कृषि विवि में भी बीएयू को जगह नहीं मिली.बीएयू का स्थान 2017 में टॉप 60 में 53वां था. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 28, 2019 8:41 AM

संजीव सिंह, रांची : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) द्वारा जारी नेशनल रैंकिंग से झारखंड का एकमात्र कृषि विश्वविद्यालय बिरसा कृषि विवि (बीएयू) बाहर हो गया है. आइसीएआर की नेशनल रैंकिंग, 2018 में देश के टॉप 60 कृषि विवि में भी बीएयू को जगह नहीं मिली.बीएयू का स्थान 2017 में टॉप 60 में 53वां था. इस बार बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, सबौर को 18वां व डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी समस्तीपुर को 35वां स्थान मिला है.

2017 में सबौर 31वें स्थान पर था. नेशनल रैंकिंग में नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (करनाल) को पहली, इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट (नयी दिल्ली) को दूसरी और जीबी पंत यूनिवर्सिटी अॉफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी (पंतनगर) को तीसरी रैंकिंग मिली है.
1981 में हुई थी बीएयू की स्थापना : 1945 में बिहार एग्रीकल्चर कॉलेज, सबौर (भागलपुर) से संचालित और 1955 में रांची एग्रीकल्चर कॉलेज की स्थापना हुई. इसके बाद 1961 में रांची वेटनरी कॉलेज और 1980 में रांची फॉरेस्ट्री कॉलेज की स्थापना हुई. 26 जून 1981 में बीएयू की स्थापना हुई. इसका उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था.
बीएयू के रैंकिंग से बाहर जाने के अहम कारणों में शिक्षकों की कमी, पठन-पाठन की गुणवत्ता पर असर, विवि में नियुक्ति विवाद, शोध समेत राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट की कमी शामिल है.बीएयू में राज्य सरकार प्रति वर्ष 99.63 करोड़ तथा आइसीएआर 43.11 करोड़ रुपये वेतन और शोध आदि पर खर्च करते हैं.
कृषि शिक्षा का हाल
आइसीएआर की जारी नेशनल रैंकिंग में नहीं मिली जगह
2017 की रैंकिंग में 53वां स्थान था बिरसा कृषि विवि का
बिहार कृषि विवि सबौर 18वें और सेंट्रल कृषि विवि समस्तीपुर 35वें स्थान पर
मापदंड का आधार
आइसीएआर ने रैंकिंग के लिए कई मापदंड तय कर रखे थे. इसमें आधारभूत संरचना, शिक्षकों, वैज्ञानिकों व कर्मचारियों की स्थिति, पठन-पाठन की गुणवत्ता, विद्यार्थियों की संख्या, प्लेसमेंट, शोध, इंटरनेशनल व नेशनल प्रोजेक्ट, शिक्षकों व वैज्ञानिकों का विदेश दौरा, किसानों के हित व सामाजिक दायित्व के तहत कार्य, नेशनल, स्टेट व इंटरनेशनल फंड की स्थिति शामिल थे.

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