त्याग और बलिदान का पर्व है टुसू

मनोज कुमार महतो टुसू पर्व : वर्ष 2002 में पहली बार रांची में टुसू मेला का आयोजन किया गया था टुसू पर्व झारखंड की संस्कृति का प्रतीक है. बहुत कम लोग जानते हैं कि इस संस्कृति अौर ऐतिहासिक मेला का प्रचलन कहां से हुआ. इसके पीछे टुसू की कहानी है. सैकड़ों वर्ष पहले चरकुडीह गांव […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 14, 2019 6:30 AM
मनोज कुमार महतो
टुसू पर्व : वर्ष 2002 में पहली बार रांची में टुसू मेला का आयोजन किया गया था
टुसू पर्व झारखंड की संस्कृति का प्रतीक है. बहुत कम लोग जानते हैं कि इस संस्कृति अौर ऐतिहासिक मेला का प्रचलन कहां से हुआ. इसके पीछे टुसू की कहानी है. सैकड़ों वर्ष पहले चरकुडीह गांव के चारकू महतो (कुरमी) की एक बहुत ही सुंदर अौर सुशील कन्या थी, जिसका नाम टुसू था.
उसकी सुंदरता का बखान पूरे इलाके में था. इससे इलाके का राजा अंदर ही अंदर क्रोधित होने लगा, क्योंकि उस जमाने में सिर्फ राजा-महाराजाअों की बहू-बेटियों की खूबसूरती का बखान हुआ करता था. ऐसे में उसने टुसू को अपना बनाना चाहा अौर उससे शादी को घोषणा पूरे इलाके में करा दी. इस घोषणा से कुरमी समाज के लोग आक्रोशित हो गये अौर उन्होंने एक आपात बैठक रखी. इसमें तय हुआ कि राजा की इस कायरता का जवाब हर हालत में दिया जायेगा. इसके बाद राजा अौर कुरमियों के बीच संघर्ष हुआ.
सतीघाट के मैदान पर भीषण लड़ाई हुई. कुरमियों की सेना को कमजोर पड़ता देख टुसू को काफी दुख हुआ अौर वह स्वर्णरेखा नदी में यह कह कर कूद गयी कि मां अपनी बच्ची को अपनी कोख में समा लो अौर अपनी संतान की रक्षा करना.
टुसू के स्वर्णरेखा में कूदते ही लड़ाई बंद हो गयी अौर मायूसी से सब एक-दूसरे को देखते रहे. इस घटना के बाद राजा को भी अपनी गलती का एहसास हुआ. उसने अपनी गलती स्वीकारते हुए सबसे माफी मांगी. राजा ने टुसू के पिता चरकु महतो से माफी मांगते हुए कहा कि आज से उस गांव का नाम चरकुडीह होगा एवं वो उस गांव का मालिक होगा.
उसके बाद से ही कहा जाता है कि प्रत्येक साल लोग स्वर्णरेखा नदी में नहा कर टुसू को श्रद्धांजलि देने लगे. इससे धीरे-धीरे टुसू मेला की शुरुआत हुई. प्रत्येक साल सतीघाट में मेला लगता है अौर इलाके में 13 जनवरी से 15 फरवरी के बीच में टुसू मेला का आयोजन किया जाता है.
यह महोत्सव झारखंड के अलावा प बंगाल, ओड़िशा अौर असम में जहां भी कुरमी बहुल क्षेत्र है, वहां मनाया जाता है. यह ऐतिहासिक मेला/महोत्सव है, जिसमें त्याग अौर बलिदान की भावना है. इस महोत्सव में सभी जाति-जनजाति के लोग शामिल होते हैं अौर अपनी एकता का परिचय देते हैं.
समाजसेवी अौर कुरमाली भाषा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ राजा राम महतो के प्रयास से अौर तत्कालीन ऊर्जा मंत्री लालचंद महतो की पहल पर वर्ष 2002 में पहली बार रांची में टुसू मेला का आयोजन किया गया था. इसके बाद से हर वर्ष राजधानी में टुसू महोत्सव का आयोजन 13 जनवरी को किया जा रहा है.

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