रिनपास गड़बड़ी: काेर्ट ने दिया आदेश, डॉ नाग जेल से रिहा

रिनपास गड़बड़ी. केस निरस्त हाेने के बाद भी एसीबी ने भेज िदया था जेल रांची : रिनपास के पूर्व निदेशक व अधीक्षक डॉ अशोक कुमार नाग को शनिवार को बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा, होटवार से रिहा कर दिया गया. उन्हें दोपहर करीब 3.30 बजे रिहा किया गया. उनकी रिहाई का आदेश दिन के 2.30 बजे […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 8, 2018 2:52 AM

रिनपास गड़बड़ी. केस निरस्त हाेने के बाद भी एसीबी ने भेज िदया था जेल

रांची : रिनपास के पूर्व निदेशक व अधीक्षक डॉ अशोक कुमार नाग को शनिवार को बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा, होटवार से रिहा कर दिया गया. उन्हें दोपहर करीब 3.30 बजे रिहा किया गया. उनकी रिहाई का आदेश दिन के 2.30 बजे बिरसा मुंडा जेल पहुंचा था.
इससे पहले भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के विशेष न्यायाधीश संतोष कुमार (नंबर-दो) की अदालत ने मामले में आरोपी बनाये गये रिनपास के चिकित्सा अधीक्षक डॉ नाग की रिहाई से संबंधित आदेश जेल अधीक्षक के पास भेज दिया. रिनपास में हुई अवैध नियुक्ति व वित्तीय अनियमितता मामले में झारखंड हाइकोर्ट द्वारा पारित आदेश की प्रति शनिवार को ही दिन के लगभग 10.30 बजे एसीबी के विशेष न्यायाधीश की अदालत में पहुंची. इसके बाद न्यायिक हिरासत में बंद डॉ नाग को रिहा करने की कार्रवाईशुरू हुई.
उल्लेखनीय है कि एसीबी ने डॉ नाग को श्मशान घाट से 23 फरवरी 2017 को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. तब से वे न्यायिक हिरासत में थे, जबकि एसीबी द्वारा दर्ज प्राथमिकी को हाइकोर्ट पहले ही निरस्त कर चुका था. हाइकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय की अदालत ने 19 दिसंबर 2017 को पूर्व स्वास्थ्य सचिव बीके त्रिपाठी की क्रिमिनल रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए मामले से संबंधित एसीबी के विशेष न्यायाधीश की अदालत से पारित आदेश व एसीबी द्वारा दर्ज प्राथमिकी को निरस्त कर दिया था.
काेर्ट ने दिया आदेश..
डॉ अमूल के अधिवक्ता पहुंचे एसीबी अदालत : हाइकोर्ट के आदेश के बाद रिनपास के पूर्व प्रभारी निदेशक डॉ अमूल रंजन की अोर से अधिवक्ता जसमिंदर मजूमदार शनिवार को एसीबी की विशेष अदालत पहुंची. हाइकोर्ट से 19 दिसंबर 2017 को पारित आदेश की प्रति पहुंचने के बाद अदालत ने अग्रेतर कार्रवाई नहीं की. एसीबी अदालत ने पूर्व में डॉ रंजन के खिलाफ वारंट जारी किया था. उसका तामिला नहीं हो पाया. एसीबी ने डॉ अमूल रंजन को फरार घोषित करते हुए धारा 82 के तहत रिनपास परिसर स्थित आवास पर इश्तेहार चिपका दिया था. धारा 82 का समय छह अप्रैल को समाप्त हो गया.
गाैरतलब है कि रिनपास में अवैध नियुक्ति व वित्तीय गड़बड़ी से संबंधित प्राथमिकी 19 दिसंबर 2017 को ही निरस्त हो गयी है, उसका खुलासा छह अप्रैल को मामले में बनाये गये आरोपी पूर्व प्रभारी निदेशक डा अमूल रंजन की क्वैशिंग याचिका पर सुनवाई के दाैरान हुआ था. जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय की अदालत ने 19 दिसंबर के आदेश का हवाला देते हुए याचिका निष्पादित कर दिया.
दो पूर्व स्वास्थ्य मंत्री भी थे आरोपी : रिनपास में नियुक्ति घोटाले अौर वित्तीय अनियमितता को लेकर सात सितंबर 2016 को निगरानी में प्राथमिकी दर्ज (कांड संख्या 62/16) की गयी थी. घोटाले के आरोप में एसीबी ने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री हेमलाल मुरमू व राजेंद्र प्रसाद सिंह, तत्कालीन सचिव बीके त्रिपाठी, प्रभारी निदेशक डॉ अमूल रंजन, डॉ अशोक कुमार नाग, डॉ सुभाष सोरेन, डॉ पवन कुमार सिंह, क्लिनिक साइकोलॉजिस्ट डॉ मसरूह जहां, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ मनीषा किरण, डॉ बलराम प्रसाद, डॉ कैप्टन सिंह सेंगर, कर्मचारी अनिल कुमार साहू, दिवाकर सिंह, रंजन कुमार दास, पुरुष नर्स सुरेंद्र कुमार रोहिल्ला को आरोपी बनाया गया था.
40 दिन जेल में रहा, उसका हर्जाना कौन भरेगा!
रिहाई के बाद रिनपास के चिकित्सा अधीक्षक डॉ अशोक कुमार नाग अपने सरकारी आवास पहुंचे, कहा : न्यायालय पर विश्वास था. डॉ नाग ने बताया कि निर्णय की सूचना शनिवार को जेल अधीक्षक के माध्यम से दोपहर 2.30 बजे मिली. 40 दिन मैं बिना वजह जेल में रहा. मुझे इन दिनों काफी मानसिक तनाव हुआ. साथ ही स्वास्थ्य की समस्या भी हुई. माननीय उच्च न्यायालय का निर्णय जब 19 दिसंबर को ही आ गया था, तब एसीबी की गलती के कारण मुझे जेल में रहना पड़ा. संस्थान में पदस्थापित सभी वरीय पदाधिकारीयों से वे 15 वर्ष सीनियर हैं. वह निदेशक नहीं बनें, इसके लिए षड्यंत्र के तहत एक तथाकथित ठेकेदार के द्वारा संस्थान के लोगों ने ही मिल कर एसीबी में मुकदमा कराया. यह ठेकेदार वर्तमान निदेशक के यहां अक्सर आकर बैठता है. यह संस्थान में लगे सीसीटीवी के फुटेज में भी देखा जा सकता है. मेरी मान-मर्यादा व प्रतिष्ठा धूमिल की गयी. श्मशान घाट से एसीबी द्वारा की गयी गिरफ्तारी मेरी प्रतिष्ठा पर एक बदनुमा दाग है. जब न्यायालय का आदेश तीन माह पूर्व ही आ गया था, तब मैंने जो प्रताड़ना झेली, उसका हर्जाना कौन भरेगा?

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