हंसते-हंसते फांसी पर झूल गये थे रामगढ़ कैंप को अंग्रेजों से मुक्त कराने वाले देश के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी तिलका मांझी

रांची : रोम के आदिवासियोंके पुरखा और लड़ाका स्पार्टाकस को दुनिया का पहला आदिविद्रोही माना जाता है. इसी तरह भारत में अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ने वाला शख्स भी एक आदिवासी था. जबरा या जौराह पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी को भारत के औपनिवेशिक युद्धों के इतिहास में पहला आदिविद्रोही होने का श्रेय जाता है. पहाड़िया […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 11, 2018 12:41 PM

रांची : रोम के आदिवासियोंके पुरखा और लड़ाका स्पार्टाकस को दुनिया का पहला आदिविद्रोही माना जाता है. इसी तरह भारत में अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ने वाला शख्स भी एक आदिवासी था. जबरा या जौराह पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी को भारत के औपनिवेशिक युद्धों के इतिहास में पहला आदिविद्रोही होने का श्रेय जाता है. पहाड़िया आदिम जनजाति के समुदाय के लड़ाकों नेतिलका मांझी के नेतृत्व में राजमहल, झारखंड (तब बिहार) की पहाड़ियों पर ब्रितानी हुकूमत से लोहा लिया.

तिलका मांझी ने आदिवासियों द्वारा किये गये प्रसिद्ध ‘आदिवासी विद्रोह’ का नेतृत्व किया. वर्ष 1771 से 1784 तक अंग्रेजों से लंबी लड़ाई लड़ी और वर्ष 1778 में पहाड़िया सरदारों के साथ मिलकर रामगढ़ कैंप को अंग्रेजों से मुक्त कराया. तिलका मांझी भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानीथे.सन् 1857 की क्रांति से लगभग सौ साल पहले स्वाधीनता का बिगुल फूंकने वाले तिलका मांझी को इतिहास में खास तवज्जो नहीं दी गयी.

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वर्ष 1784 में तिलका मांझी ने राजमहल के मजिस्ट्रेट क्लीवलैंड को मार डाला. इसके बाद आयरकुट के नेतृत्व में तिलका मांझी की गुरिल्ला सेना पर जबरदस्त हमला हुआ. उनके कई लड़ाके मारे गये. कहते हैं कि तिलका मांझी को अंग्रेज चार घोड़ों में एक साथ बांधकर घसीटते हुए भागलपुर लाये. मीलों घसीटे जाने की वजह से उनका पूरा शरीर खून से लथपथ हो गया था. लेकिन, अंग्रेजों के खिलाफ उनका क्रोध कम नहीं हुआ था. 13 जनवरी, 1785 को भागलपुर के चौराहे पर स्थित एक विशाल वटवृक्ष में लटकाकर अंग्रेजों ने उन्हें फांसी दे दी. हजारोंलोगों के सामने जबरा पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी हंसते-हंसते फांसी पर झूल गये.

भारत में ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने वाले पहाड़िया समुदाय के वीर आदिवासी तिलका मांझी के बारे में कहा जाता है कि सिंगारसी पहाड़, पाकुड़ में उनका जन्म 11 फरवरी, 1750 में हुआ. 1771 से 1784 तक उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लंबी और कभी न समर्पण करने वाली लड़ाई लड़ी. इस दौरान उन्होंने स्थानीय महाजनों-सामंतों व अंग्रेजी शासन की नींद उड़ारखीथी. पहाड़िया लड़ाकों में सरदार रमना अहाड़ी और अमड़ापाड़ा प्रखंड (पाकुड़, संताल परगना) के आमगाछी पहाड़ निवासी करिया पुजहर और सिंगारसी पहाड़ निवासी जबरा पहाड़िया को भारत का आदिविद्रोही माना जाता है.

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पहाड़िया समुदाय का यह गुरिल्ला लड़ाका एक ऐसी किंवदंती है, जिसके बारे में ऐतिहासिक दस्तावेज सिर्फ नाम भर का उल्लेख करते हैं. पूरा विवरण नहीं देते. वहीं, पहाड़िया समुदाय के पुरखा गीतों और कहानियों में इसकी छापामार जीवनी और कहानियां सदियों बाद भी उसके आदिविद्रोही होने का अकाट्य दावा पेश करती हैं. इतिहास के इस महानायक का कोई चित्र भारत के किसी इतिहास में उपलब्ध नहीं है. हालांकि, तिलका मांझी के नाम पर भागलपुर में तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी है.

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