झारखंड : साइबर अपराधियों का खुलासा, पहले बवासीर की दवा देते, फिर लॉटरी के नाम पर करते थे ठगी

पूछताछ में बिहार के साइबर अपराधियों ने किया खुलासा रांची : अभी तक बैंक से जुड़े मामलों में लोगों को साइबर अपराधियों द्वारा निशाना बनाया जाता रहा है. लेकिन दवा बेचने के बहाने लॉटरी के नाम पर सैकड़ों लोगों से साइबर अपराधियों द्वारा लाखों रुपये की ठगी करने का मामला पहली बार सामने आया है. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 24, 2017 7:18 AM
पूछताछ में बिहार के साइबर अपराधियों ने किया खुलासा
रांची : अभी तक बैंक से जुड़े मामलों में लोगों को साइबर अपराधियों द्वारा निशाना बनाया जाता रहा है. लेकिन दवा बेचने के बहाने लॉटरी के नाम पर सैकड़ों लोगों से साइबर अपराधियों द्वारा लाखों रुपये की ठगी करने का मामला पहली बार सामने आया है. रांची के सुखदेवनगर थाना क्षेत्र के हरमू स्थित एक फ्लैट से गिरफ्तार बिहार के शातिर अपराधियों ने पुलिस की पूछताछ में यह खुलासा किया है.
अपराधियों ने पुलिस को बताया है कि वे लोग बवासीर (पाइल्स) से हमेशा के लिए छुटकारे के नाम पर लोगों से संपर्क करते थे. फिर डिमांड के मुताबिक उन्हें तीन माह की दवा देते थे.
दवा डिलिवरी के 15 दिनों के बाद उक्त लोगों को फिर फोन कर कहा जाता था कि जो लोग भी बवासीर की दवा लिये हैं उनके बीच कंपनी की ओर से लॉटरी करायी जा रही है. इसके तहत 55 से 65 हजार रुपये की मोटरसाइकिल विजेताओं को दी जायेगी. इस प्रक्रिया में शामिल होने के लिए लोगों को महज 100 रुपये देने होंगे. इस झांसे में आकर लोग आसानी से 100-100 रुपये दे देते थे.
फिर 15-20 दिनों बाद बारी-बारी से लोगों को फोन कर यह जानकारी दी जाती थी कि उन्हें लॉटरी में मोटरसाइकिल मिली है. लेकिन इसकी डिलिवरी से पहले उन्हें 10 हजार रुपये विभिन्न टैक्सों के मद में जमा करना होगा. पैसा जमा करने के एक सप्ताह के अंदर मोटरसाइकिल उनके पास पहुंच जायेगी. इसके बाद लोग लोभ में आकर उक्त पैसे भी इन्हें दे देते थे. फिर पैसा समेट कर वे लोग अपना ठिकाना बदल देते थे. साथ ही मोबाइल आैर उसमें लगा सिम को नष्ट कर देते थे. उल्लेखनीय है कि पुलिस ने अमित कुमार, गुड्डू कुमार, दीपक कुमार, रंजन कुमार, शिशुपाल कुमार और उत्तम कुमार बिहार के नवादा और शेखपुरा निवासी पवन दास को पकड़ा था.
फर्जी सिम का करते थे इस्तेमाल
साइबर अपराधियों ने बताया कि वे लोग अपराध तो झारखंड में करते थे, लेकिन मोबाइल और सिम कार्ड बिहार के पटना और दूसरे जिलों से फर्जी दस्तावेजों के सहारे खरीद कर उसका इस्तेमाल करते थे. काम होने के बाद ठिकाना बदल लेते थे. इस वजह से भुक्तभोगी और पुलिस उन तक नहीं पहुंच पा रही थी.

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