पलामू में IPTA ने किया सांस्कृतिक पाठशाला का आयोजन, लेखक तरुण कांति बोस ने कही यह बात

पलामू में अब हर रविवार की शाम को छह से सात बजे तक इप्टा कार्यालय में सांस्कृतिक पाठशाला संचालित होगा, जिसमें जिले भर से विभिन्न संगठनों से जुड़े कलाकार, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, वो छात्र भाग लेंगे.

By Prabhat Khabar Print Desk | April 25, 2023 9:08 AM

पलामू, सैकत चटर्जी : भारत के अंतरराष्ट्रीय फिल्मकार, निर्देशक व लेखक सत्यजीत रे की स्मृति दिवस में इप्टा ने पलामू में सांस्कृतिक पाठशाला शुरू किया है. रविवार की शाम में मेदिनीनगर के रेड़मा स्थित इप्टा कार्यालय में इसकी शुरुआत हुई. इप्टा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रविशंकर ने बताया की प्रत्येक रविवार की शाम को छह से सात बजे तक इप्टा कार्यालय में सांस्कृतिक पाठशाला संचालित होगा, जिसमें जिले भर से विभिन्न संगठनों से जुड़े कलाकार, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, वो छात्र भाग लेंगे. पाठशाला के पहले सत्र में उदघाटन समारोह का उदघाटन किया गया जिसमे मुख्य अतिथि के रूप में राजस्थान के लोकप्रिय सामाजिक कार्यकर्ता वीरेन लोबो एवं देश के वरिष्ठ पत्रकार व लेखक तरुण कांति बोस मौजूद थे.

सामाजिक संरचनाओं को समझना बेहद जरूरी

प्रेम प्रकाश ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए विषय प्रवेश कराया और पाठशाला के उद्देश्य के बारे में विस्तार पूर्वक बताया. प्रकाश ने कहा कि समाज की संरचना को समझे बगैर वर्तमान समय की कहानी, नाटक, गीत-ग़ज़ल, आलेख और राजनीतिक घटनाओं और परिघटनाओं को नहीं समझ सकते. समाज की संरचनाओं को समझना जरूरी है. यह वर्तमान समय की मांग है.

प्रेम भसीन और नंदलाल सिंह ने किया अध्यक्षता

पलामू के वरिष्ठ वुड ड्राफ्ट कलाकार प्रेम भसीन और वरिष्ठ अधिवक्ता नंदलाल सिंह की संयुक्त रूप से सांस्कृतिक पाठशाला की अध्यक्षता की. प्रेम भसीन ने कहा कि सत्यजीत रे का गहरा जुड़ाव पलामू से रहा है. फिल्म निर्माण के दौरान वे पलामू आए थे . पलामू में बनी उनकी बंगला फिल्म अरण्य रात्रि जैसी काफी लोकप्रिय रही. वास्तव में उसी फिल्म के बाद फिल्मकारों की रुचि पलामू के प्रति जगी. उन्होंने कहां की रे की फिल्मों में इंसानी रिश्ते , पारिवारिक बंधन और सामाजिक तानाबाना का गजब मेल देखने को मिलता था, यह मेल अब बेमेल हो जा रहा है, इसे समझने की जरूरत है.

सामाजिक संरचना को समझने के लिए सामाजिक विभाजन को समझना होगा

नंदलाल सिंह ने कहा की भारतीय समाज एक जटिल समाज है. समाज की जटिलता को समझने के लिए सभी लोगों की दृष्टि को समझना पड़ेगा. समाज कई भागों में बटा है. समाज जाति , धर्म ,अमीरी, गरीबी के आधार पर बटा हुआ है. इसलिए समाज के हर पहलू को समझने के लिए गंभीर अध्ययन और चिंतन की जरूरत है, जो इस पाठशाला के माध्यम से किया जा सकता है.

बिखराव पैदा करने वाले तत्वों को चिन्हित करना होगा

राजस्थान के लोकप्रिय सामाजिक कार्यकर्ता वीरेन लोबो ने वर्तमान समय में हो रही घटनाओं की चर्चा करते हुए समाज में बिखराव पैदा करने वाले तत्वों को चिन्हित करने की जरूरत बताया. उन्होंने कहा कि जिसे हम वोट देते हैं उससे मिलने के लिए बिचौलिया के माध्यम से जाना पड़ता है. यह कौन सा सिस्टम है जिसे डेवलप कर दिया गया है. इसी तरह और भी कई सिस्टम डेवलप किया गया है जो समाज में बिखराव पैदा करता है. इन सिस्टमों को डिसिस्टमाइज कर भारतीय समाज को स्थापित करने के लिए सभी वर्गो को एकसूत्र में जोड़ना होगा. इसी की पहली कड़ी सांस्कृतिक पाठशाला है.

Also Read: अब WhatsApp बन रहा स्कूल डायरी, कोरोना काल के बाद तेजी से बदला यह कांसेप्ट
फासिज्म का प्रभाव समाज को हिंसक बना रही

वरिष्ठ पत्रकार व लेखक तरुण कांति बोस ने कहा कि कम्युनल कॉर्पोरेट फासिज्म का प्रभाव समाज पर है. यह जिस संस्कृति को पैदा कर रहा है , वह नशीली व बदबूदार संस्कृति है, जो हमारे समाज को हिंसक बना रहा है.

ये थे मौजूद

पाठशाला में शब्बीर अहमद, गौतम कुमार, चंद्रकांति कुमारी, ओंकार नाथ तिवारी, ललन प्रजापति, अच्छेलाल प्रजापति, हेमंत दास, मनीष कुमार, रवि शंकर, संजीव कुमार संजू, कुलदीप राम, जावेद अख्तर, नुदरत नवाज, घनश्याम कुमार सहित अन्य लोग मौजूद थे.

Next Article

Exit mobile version