गांव में नहीं मिलता रोजगार, मजबूरी में छोड़ना पड़ता है घर

गांव में नहीं मिलता रोजगार, मजबूरी में छोड़ना पड़ता है घर

By SHAILESH AMBASHTHA | June 28, 2025 10:05 PM

कैरो़ लोहरदगा जिले का कैरो प्रखंड बेरोजगारी की मार झेल रहा है. गांवों में सालभर रोजगार नहीं मिलता है. नतीजतन लोग काम की तलाश में दूसरे जिले या राज्य की ओर पलायन कर जाते हैं. सरकार मजदूरों को सालभर काम देने की बात करती है. मनरेगा के तहत प्रति मजदूर 100 दिनों का रोजगार देने की योजना है. परंतु सच्चाई यह है कि गांव के कई घरों में ताले लटके हुए हैं जो इस योजना की असफलता बयां करते हैं. नवंबर-दिसंबर में किसान धान काटने के बाद बड़ी संख्या में लोग ईंट भट्ठों या अन्य काम के लिए हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडु, पुणे आदि राज्यों में चले जाते हैं. बरसात का मौसम आते ही लोग वापस लौटते हैं. टुसू राम बताते हैं कि गांव में नियमित रोजगार नहीं मिलता. सरकार की योजनाएं हैं, लेकिन कार्य या तो नियमित नहीं मिलता या मजदूरी दर बहुत कम होती है. गांव में 300 से 400 रुपये की मजदूरी मिलती है, जबकि बाहर 500 से 700 रुपये तक. शंकर राम कहते हैं कि गांव में सालभर रोजगार नहीं मिलने से परिवार चलाना मुश्किल हो जाता है. ईंट भट्ठे में रोजाना काम मिल जाता है जिससे बच्चों की पढ़ाई और अन्य ज़रूरतें पूरी होती हैं. बंधन रविदास कहते हैं कि कोई भी अपना गांव छोड़ना नहीं चाहता. लेकिन बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और घर चलाने के लिए बाहर जाना मजबूरी है. बाहर रहकर अपने परिवार की चिंता हमेशा सताती है. गांव में यदि स्थायी रोजगार की व्यवस्था हो जाए तो लोग खुशी-खुशी यहीं रहकर काम करेंगे.

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