कैरो प्रखंड में योजनाएं बनीं शोपीस, सपने होते जा रहे दफन
कैरो प्रखंड में योजनाएं बनीं शोपीस, सपने होते जा रहे दफन
कैरो़ समय के साथ कैरो प्रखंडवासियों के सपने दफन होने के कगार पर हैं. प्रखंड बने लगभग 15 वर्ष गुजर चुके हैं, लेकिन आज भी करोड़ों रुपये की लागत से बनी कई महत्वपूर्ण योजनाएं संचालन के अभाव में उपेक्षा की शिकार हैं. प्रखंड गठन के बाद बेहतर स्वास्थ्य सुविधा बहाल करने के उद्देश्य से वर्ष 2010-11 में 1 करोड़ 11 लाख रुपये की लागत से अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण कराया गया था, लेकिन आज तक इसका समुचित संचालन शुरू नहीं हो सका. इसी तरह वर्ष 2017-18 में सढ़ाबे पंचायत अंतर्गत एड़ादोन कोयल नदी के समीप छात्र-छात्राओं को उच्च तकनीकी शिक्षा देने के उद्देश्य से लगभग चार करोड़ रुपये की लागत से आइटीआइ भवन और छात्रावास का निर्माण कराया गया. दो कंपनियों द्वारा निर्मित यह भवन आज भी वीरान पड़े हैं और एक भी सत्र की पढ़ाई शुरू नहीं हो सकी है. करोड़ों खर्च नतीजा शून्य : प्रखंड मुख्यालय स्थित जलापूर्ति योजना भी कैरोवासियों के लिए एक अधूरा सपना बनकर रह गयी है. करीब 11 करोड़ रुपये की लागत से इंटक वेल और जलमीनार का निर्माण कर कैरो पंचायत के लगभग 1300 परिवारों और कुड़ू प्रखंड के कोलसिमरी पंचायत के लाभुकों को कनेक्शन दिया गया. निर्माण कंपनी ने ट्रायल के तौर पर कुछ दिनों तक पानी भी सप्लाई की, लेकिन फिलहाल यह योजना पूरी तरह बंद पड़ी है. कैरो प्रखंड के विभागों का संचालन दूसरे प्रखंडों से : हालात यह हैं कि प्रखंड बने 14 वर्ष बीत जाने के बाद भी खाद्य आपूर्ति, स्वास्थ्य, आंगनबाड़ी जैसे कई विभागों का संचालन दूसरे प्रखंड से हो रहा है. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार कैरो की आबादी 44 हजार थी, जो अब बढ़कर 55 से 60 हजार के करीब पहुंच चुकी है. इसके बावजूद लोगों को बेहतर इलाज और उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाना पड़ता है, जिससे अभिभावकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. प्रखंडवासियों का कहना है कि हर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मंत्री, विधायक और सांसद आश्वासन देते हैं, लेकिन चुनाव बीतते ही समस्याएं जस की तस बनी रहती हैं. ग्रामीणों ने कई बार मौखिक रूप से जनप्रतिनिधियों को इस ज्वलंत मुद्दे से अवगत कराया है, फिर भी ठोस पहल नहीं हो सकी है.
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