झारखंड के इस जोड़ा शिवलिंग पर चढ़ाते हैं ‘पाताल गंगा’ का जल, तीन फुट के कुएं से निकलता रहता है पानी

स्थानीय लोग बताते हैं कि इस कुएं को किसी ने नहीं बनाया है बल्कि यह खुद से निकला है. इसलिए इसे गुप्त व पाताल गंगा का नाम दिया गया है. इसी कुएं का जल कालेश्वर शिवलिंग पर चढ़ाने की परंपरा है. प्रचंड गर्मी में भी इस कुएं में न केवल पानी रहता है बल्कि उसी धार से बाहर निकलता रहता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 5, 2021 5:36 PM

Jharkhand News, जमशेदपुर न्यूज (विकास कुमार श्रीवास्तव) : झारखंड के कोल्हान की धरती कई रहस्य समेटी हुई है. यहां के पहाड़, जंगलों में ऐसी कई कहानियां छुपी हैं, जिनका संबंध सैकड़ों वर्ष पुराने इतिहास व धर्मग्रंथ से रहा है. आज हम आपको पूर्वी सिंहभूम के आसनबनी की हाथीबिंदा पंचायत के साधुडेरा गांव में स्थित ऐसे ही कालेश्वर मंदिर के बारे में बतायेंगे. यह मंदिर न केवल 250 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है, बल्कि इसके बनने की कहानी भी काफी रोचक व रहस्यमयी है. इस कालेश्वर मंदिर में जोड़ा शिवलिंग है. एक ही स्थान में दो शिवलिंग यहां खुद से जागृत हुए हैं. इस शिवलिंग की खोज राम लखन नाम के एक साधु ने की थी.

बताया जाता है कि राम लखन साधु ने ही इस शिवलिंग की पूजा आरंभ की थी. उसके बाद आसपास के गांव वाले भी पूजा अर्चना करने लगे. गुर्रा नदी के किनारे इस प्राचीन मंदिर में ऐसे तो हर दिन पूजा होती है, लेकिन सावन और शिवरात्रि में विशेष पूजा का आयोजन होता है. मंदिर को भव्य तरीके से सजाया जाता है. वहीं प्रत्येक सोमवार को स्थानीय लोग जल चढ़ाने के लिए आते हैं. इस जोड़ा शिवलिंग की महिमा को यहां स्थित गुप्त गंगा (पाताल गंगा) भी स्थापित करती है. महज तीन फुट गहरे कुएं से अनवरत पानी का बहाव बाहर की ओर होता रहता है. कुएं से निकलने वाले पानी से सामने तालाब बन गया है.

Also Read: Jharkhand Panchayat Chunav 2021 : झारखंड में पंचायत चुनाव पर क्या बोले राज्य निर्वाचन आयुक्त डॉ डीके तिवारी
झारखंड के इस जोड़ा शिवलिंग पर चढ़ाते हैं 'पाताल गंगा' का जल, तीन फुट के कुएं से निकलता रहता है पानी 2

स्थानीय लोग बताते हैं कि इस कुएं को किसी ने नहीं बनाया है बल्कि यह खुद से निकला है. इसलिए इसे गुप्त व पाताल गंगा का नाम दिया गया है. इसी कुएं का जल कालेश्वर शिवलिंग पर चढ़ाने की परंपरा है. प्रचंड गर्मी में भी इस कुएं में न केवल पानी रहता है बल्कि उसी धार से बाहर निकलता रहता है. इस कालेश्वर शिव की पूजा करने वाले महंत रमेश चंद्र पांडा ने बताया कि उनके पिता अनंत पांडा और उनके पूर्वज यहां पूजा कराते आ रहे हैं.

Also Read: Jharkhand News : झारखंड में जब ग्रामीणों की नहीं सुनी गयी फरियाद, तो खुद नदी पर बना डाला लकड़ी का पुल

साधु राम लखन जब अपनी यात्रा के दौरान इस क्षेत्र में आये थे, तो उन्हें यह जोड़ा शिवलिंग होने की जानकारी हुई. उन्होंने इसकी पूजा शुरू की. कुछ लोगों ने यह मान्यता दे दी कि शिव अकेले नहीं हो सकते हैं. उनके साथ माता पार्वती हैं. दोनों ठीक अगल बगल में स्थापित हैं. इस तरह का जोड़ा शिवलिंग अपने आप में अद्भुत है. एक साथ ऐसा शिवलिंग किसी मंदिर में होने की जानकारी नहीं मिली है. कई स्थानों में दो शिवलिंग होने की बात है, लेकिन एक ही स्थान में महज छह इंच की दूरी पर खुद से जागृत दो शिवलिंग अपने आप में अनोखा है.

जोड़ा शिवलिंग की खोज करीब 250 वर्ष पूर्व हुई थी. उसके करीब 100 साल बाद हावड़ा-मुंबई रेल लाइन (टाटानगर होते हुए) बिछाने का काम शुरू हुआ था. उस लाइन बिछाने के लिए लगे ठेकेदार जब इस क्षेत्र में आये, तो उन्होंने अपने कार्य को सफलता पूर्वक होने के बाद शिव मंदिर बनाने की मन्नत मांगी थी. काम होने के दौरान ही ठेकेदार द्वारा मंदिर बनवाया गया था.

Also Read: Jharkhand News : पीएलएफआई सुप्रीमो दिनेश गोप का साथी मनीष गोप गिरफ्तार, झारखंड की कई मुठभेड़ में रहा है शामिल

वर्तमान में इस मंदिर तक पक्की सड़क तो पहुंच गयी, लेकिन आज भी यह क्षेत्र काफी दुर्गम और सुदूर है. जमशेदपुर शहर से यह 15 किलोमीटर दूरी पर है. गोविंदपुर रेलवे फाटक से खैरबनी होते हुए आसनबनी के रास्ते यह मुख्य सड़क से करीब चार किलोमीटर अंदर साधुडेरा गांव है. आसनबनी रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी एक से डेढ़ किलोमीटर पर है. यहां आने के लिए सार्वजनिक वाहन की कोई सुविधा नहीं है. खुद की बाइक, कार या ऑटो से यहां पहुंचा जा सकता है.

Posted By : Guru Swarup Mishra

Next Article

Exit mobile version