श्रीमदभागवत कथा के दूसरे दिन सुनी शुकदेव व राजा परीक्षित की कथा
कथावाचक शिवमकृष्ण महाराज ने शुकदेव के जन्म की कथा का वर्णन किया. कहा कि कलयुग में भागवत महापुराण कल्पवृक्ष से भी बढ़कर है.
दलाही. मसलिया प्रखंड के मोहलीडीह गांव में श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन वृंदावन से आए कथावाचक शिवमकृष्ण महाराज ने शुकदेव के जन्म की कथा का वर्णन किया. कहा कि कलयुग में भागवत महापुराण कल्पवृक्ष से भी बढ़कर है. कथा अर्थ, धर्म, काम के साथ-साथ भक्ति और मुक्ति प्रदान कर जीव को परम पद प्राप्त कराती है. श्रीमदभागवत पुस्तक नहीं, साक्षात भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप है. इसके एक-एक अक्षर में भगवान समाए हुए हैं. इस कथा को सुनना दान, व्रत, तीर्थ से भी बढ़कर है. उन्होंने बताया कि इस कथा के ध्यानपूर्वक श्रवण और इससे प्राप्त ज्ञान को आत्मसात करने मात्र से ही धुंधकारी जैसे महापापी, प्रेतात्मा का उद्धार हो जाता है. उन्होंने बताया कि मनुष्य से गलती होना बड़ी बात नहीं है, लेकिन गलती को समय रहते सुधार करना जरूरी है. ऐसा नहीं किया तो गलती पाप की श्रेणी में आ जाती है. उन्होंने कहा कि श्रीमदभागवत केवल सुन लेना भी काफी नहीं है. भागवत के श्रोता के अंदर जिज्ञासा और श्रद्धा होनी चाहिए. परमात्मा दिखायी नहीं देता पर हर किसी में बसता है. हमारे पूर्वजों ने सदैव ही पृथ्वी का पूजन और रक्षा की. इसके बदले पृथ्वी ने मानव का रक्षण किया. कथावाचक शिवम कृष्ण ने कहा कि वैसे तो श्रीकृष्ण ने शुकदेव महाराज को धरती पर भेजा है भागवत कथा का ज्ञान कराने के लिए ताकि कलयुग के लोगों का कल्याण हो सके. उन्होंने राजा परीक्षित को श्राप लगने का प्रसंग भी सुनाया और कहा कि राजा परीक्षित की मृत्यु सातवें दिन सर्पदंश से होनी थी. जिस व्यक्ति को पता चल जाएगा, उसकी मृत्यु सातवें दिन होगी. वह क्या करेगा, क्या सोचेगा? राजा परीक्षित यह जानकर अपना महल छोड़ दिए. महाराज ने बताया कि श्रीकृष्ण की ओर से राजा परीक्षित को दिए गए श्राप से मुक्ति के लिए उन्हें भाई शुकदेव से मिलने की सलाह दी. भागवत कथा का श्रवण आत्मा पर परमात्मा से मिलन करवाता है. संसार में जितने भी प्राणी हैं, सभी मरणशील हैं. सब की मृत्यु एक-न-एक दिन होनी तय है और जो मनुष्य एक बार श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण कर ले उसे सुनकर जीवन में उतार ले तो उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं.
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