Dhanbad News: संविधान सभा में आदिवासी अधिकारों की सुरक्षा को ले विशेष प्रावधानों पर हुई थी चर्चा

देश 26 नवंबर 2025 को संविधान दिवस मना रहा है. इसी तारीख को 1949 में संविधान सभा ने भारत के संविधान को अंतिम स्वीकृति दी थी.

By ASHOK KUMAR | November 26, 2025 1:38 AM

संविधान बनने से पहले दो वर्ष से अधिक समय तक हुए गहन विमर्श में कई ऐसे मुद्दे उठे, जिनका सीधा संबंध आज के झारखंड क्षेत्र से था. इन्हीं चर्चाओं में से एक मानभूम जिला यानी आज के धनबाद, चास और चंदनकियारी क्षेत्र से जुड़ा सवाल भी था. जिसकी चर्चा संविधान सभा की 4 नवंबर 1948 की बैठक में हुई थी.

आदिवासियों की रक्षा के लिए थानों की हुई थी अनुशंसा

उस वक्त धनबाद, चंदनकियारी और चास बिहार के मानभूम जिले में आते थे. इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग रहते थे. संविधान सभा में अनुसूचित जनजातियों एवं जनजातीय क्षेत्रों के संरक्षण पर विस्तृत चर्चा हुई. बहस के दौरान सदस्यों ने विशेष रूप से ध्यान दिलाया कि मानभूम के कई इलाकों में रह रहे आदिवासी समुदाय बाहरी दबाव, शोषण और जमीन से जुड़े विवादों से प्रभावित हो सकते हैं. इसलिए ऐसे क्षेत्रों में प्रशासनिक नियंत्रण मजबूत करने के लिए अलग पुलिस थानों की आवश्यकता जतायी गयी. संविधान सभा ने उस समय जिन क्षेत्रों का उल्लेख किया, उनमें धनबाद, चास और चंदनकियारी भी शामिल थे. बहस में कहा गया कि यहां पुलिस थाना गठन केवल कानून-व्यवस्था का प्रश्न नहीं है, बल्कि आदिवासी सुरक्षा, जमीन के अधिकारों की रक्षा और सामाजिक ढांचे को सुरक्षित रखने का संवैधानिक कदम है. पॉलिटिक्स ऑफ शेड्यूलिंग यानी किन क्षेत्रों को अनुसूचित घोषित किया जाए, इस बहस में भी मानभूम का उल्लेख हुआ. इस चर्चा के आधार पर यह स्पष्ट हुआ कि यहां रहने वाले आदिवासी समुदायों को विशेष प्रशासनिक संरक्षण की जरूरत है.

सामाजिक, सांस्कृतिक और भूमि अधिकारों की रक्षा की नींव रखी गयी

1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत मानभूम जिले का विभाजन किया गया. धनबाद, चास और चंदनकियारी बिहार का हिस्सा बने. जबकि पुरुलिया और उससे जुड़े थाना क्षेत्र पश्चिम बंगाल में शामिल कर दिए गए. आज चास और चंदनकियारी बोकारो जिला में हैं. धनबाद अलग जिला है. संविधान दिवस के मौके पर यह ऐतिहासिक तथ्य अहम इसलिए है क्योंकि यह बताता है कि देश के संविधान ने आदिवासी क्षेत्रों की सामाजिक, सांस्कृतिक और भूमि अधिकारों की रक्षा की नींव बहुत पहले ही डाल दी थी. धनबाद, चंदनकियारी और चास में पुलिस थानों का गठन महज प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि संविधान सभा की सोच का परिणाम था, जिसमें आदिवासी समुदायों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई थी.

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