देवघर: बेहिसाब-अवैज्ञानिक मैथड से बालू उठाव के कारण खत्म हो रहा नदियों का वजूद, इन नदियों में अब संभव नहीं खनन

देवघर की नदियों से पिछले 10 सालों से बालू के बेहिसाब खनन के कारण नदियों का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है. यही स्थिति रही तो आनेवाले कुछ वर्षों में नदियां गायब हो जायेंगी. मनमाने और अवैज्ञानिक तरीके से बालू उठाव की वजह से नदियों में वाटर होल्डिंग कैपेसिटी खत्म होती जा रही है.

By Prabhat Khabar | June 5, 2023 9:25 AM

World Environment Day 2023: पिछले 10 वर्षों के दौरान देवघर की नदियों से बालू के बेहिसाब खनन से नदियों का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है. यही स्थिति रही तो आनेवाले कुछ वर्षों में नदियां गायब हो जायेंगी. दरअसल, इन नदियों से बेहिसाब और अवैज्ञानिक तरीके से बालू का उठाव हो रहा है, जिससे नदियों में वाटर होल्डिंग कैपेसिटी खत्म होती जा रही है.

मनमाने तरीके से हो रहा बालू का उठाव

देवघर और मधुपुर इलाके से गुजरने वाली प्रमुख नदियों में अजय नदी, डढ़वा नदी, चांदन नदी, पतरो नदी और जयंती नदी है. इनमें देवघर शहर से सटे अजय नदी और डढ़वा नदी से बालू का मनमाने तरीके से बालू का उठाव किये जाने से इन नदियों में बालू की मात्रा काफी घट गयी है. इन दोनों नदियों का जलस्तर चार से सात फीट नीचे गिर गया है.

घट रही है वाटर होल्डिंग कैपेसिटी

मानसून के दिनों में भी नदियों से बालू का खनन करने से वाटर होल्डिंग कैपेसिटी घटती जा रही है. अजय और डढ़वा नदी से देवघर प्रखंड क्षेत्र में बालू का खनन होने से अधिकांश इलाके में मिट्टी ही बची है, जिससे बरसात में भी पानी नहीं रुक पा रहा है. मिट्टी की वजह से अजय और डढ़वा नदी में घास उग आये हैं.

नदियों के बीच गुजरते हैं भारी वाहन

अजय नदी के बिरनियां, बसतपुर, चांदडीह, दोरही सहित डढ़वा नदी के टाभाघाट, बसमनडीह, सरासनी और केनमनकाठी इलाके में नदियों में अब सालों भर पानी नहीं, बल्कि घास उगे रहते हैं. नदियों के बीच भारी वाहन का परिचालन ने जलस्रोत को रौंद कर रख दिया गया है. सैकड़ों बालू लोड वाहनों का नदी के बीचों-बीच परिचालन होने से नदियों को नुकसान पहुंचा है.

क्या कहते हैं पर्यावरण एक्सपर्ट

तीन साल पहले पर्यावरण एक्सपर्ट ने भी सर्वे की रिपोर्ट में बता दिया था कि डढ़वा नदी में अब बालू नहीं बचा है. यहां से बालू खनन संभव नहीं है. पर्यावरणविद के अनुसार, बालू का यह उठाव पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है. साथ ही वाटर सर्कुलेशन काे धीरे-धीरे समाप्त कर रहा है. इससे सिंचाई के साथ-साथ पीने योग्य भी पानी नहीं मिल पायेगा.

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