कांवर यात्रा में आस्था के अलग-अलग रूप

श्रावणी मेला : अनूठी है सुल्तानगंज से बाबा नगरी तक की कांवर यात्रा देवघर : एक समय था जब शिव भक्त प्रसिद्ध कांवर गीत ‘हाथी न घोड़ा न कउनो सवारी, पैदल ही अयबै तोहर दुआरी…’ को गुनगुनाते हुए सुल्तानगंज से जल उठा कर पैदल बाबाधाम पहुंचते थे. समय बदलने के साथ भक्तों की आस्था के […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 19, 2019 2:55 AM

श्रावणी मेला : अनूठी है सुल्तानगंज से बाबा नगरी तक की कांवर यात्रा

देवघर : एक समय था जब शिव भक्त प्रसिद्ध कांवर गीत ‘हाथी न घोड़ा न कउनो सवारी, पैदल ही अयबै तोहर दुआरी…’ को गुनगुनाते हुए सुल्तानगंज से जल उठा कर पैदल बाबाधाम पहुंचते थे. समय बदलने के साथ भक्तों की आस्था के अलग-अलग रूप भी श्रावणी मेले में दिख रहे हैं.
सुल्तानगंज से बाबा बैद्यनाथ की नगरी तक 105 किलोमीटर की यात्रा में भक्त न सिर्फ पैदल बल्कि दंडवत, साइकिल, बाइक व अन्य वाहनों से गंगाजल लेकर पूरा कर रहे हैं. यह सिलसिला सावन के साथ भादो में भी जारी रहता है. इसमें से कई हठ योग भी कांवरिया पथ में देखने को मिलता है. कांवर यात्रा के लिए भक्तों बिहार-झारखंड ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों सहित नेपाल तक से देवघर पहुंचते हैं.

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