ग्लोबल वार्मिंग से पिघल रहे ग्लेशियर, बड़े खतरे का संकेत दे रहीं नदियों के बेसिन में बनी प्राकृतिक झीलें

Global warming, Climate change, Glacier : शिमला : उत्तराखंड की चमोली में ग्लेशियर स्खलित होने से कई सवाल उठने लगे हैं. हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं. ग्लेशियर के पिघलने से इलाके में कई प्राकृतिक झीलों का निर्माण हो गया है. हिमाचल प्रदेश के विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद के सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के मुताबिक वैश्विक तापमान बढ़ने से मौसम में तेजी से बदलाव हो रहा है. इस कारण सतलुज, रावी, चिनाब और ब्यास नदी बेसिन में 935 झीलें बन गयी हैं. ये झीलें बड़े खतरे की ओर इशारा कर रही हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 19, 2021 2:48 PM

शिमला : उत्तराखंड की चमोली में ग्लेशियर स्खलित होने से कई सवाल उठने लगे हैं. हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं. ग्लेशियर के पिघलने से इलाके में कई प्राकृतिक झीलों का निर्माण हो गया है. हिमाचल प्रदेश के विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद के सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के मुताबिक वैश्विक तापमान बढ़ने से मौसम में तेजी से बदलाव हो रहा है. इस कारण सतलुज, रावी, चिनाब और ब्यास नदी बेसिन में 935 झीलें बन गयी हैं. ये झीलें बड़े खतरे की ओर इशारा कर रही हैं.

वैश्विक जलवायु परिवर्तन का असर हिमाचल प्रदेश में भी देखने को मिल रहा है. यहां कभी अनियमित बारिश और बर्फबारी हो रही है, तो कभी सूखा की स्थिति हो जाती है. बर्फबारी के समय में भी बदलाव आया है. हिमाचल और हिमालयी इलाके की करीब 33 हजार स्क्वॉयर किलोमीटर में ग्लेशियर क्षेत्र का सेटेलाइट बेस्ड स्टडी अध्ययन किया गया. इसमें पता चला कि सतलुज बेसिन के ग्लेशियर में साल साल 2019 तक 562 प्राकृतिक झीलें बन गयी थीं.

चिनाब बेसिन में साल 2019 तक 242 झीलें, ब्यास बेसिन में साल 2019 तक 93 और रावी बेसिन में 38 नयी झीलें बन गयीं. अनुमान के मुताबिक, हर साल औसतन 80-100 नयी झीलें बन रही हैं. हिमालय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की वजह से पिछले 50 वर्षों में एक डिग्री तापमान की बढ़ोतरी हुई है. इसका असर कृषि, बागवानी, भूमिगत जल से लेकर प्रकृति और मानव जाति पर पड़ रहा है. राजधानी शिमला में बीते वर्षों में उत्पन्न जल संकट इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.

परिषद के सदस्य सचिव निशांत ठाकुर ने न्यूज 18 से बातचीत में बताया है कि विकासात्मक गतिविधियों को रोका नहीं जा सकता, लेकिन सतत विकास से कुछ हद तक खतरे को कम किया जा सकता है. निर्माण से लेकर कार्बन उत्सर्जन तक तमाम गतिविधियां सावधानीपूर्वक करनी होंगी. साल 1993 से 2001 के बीच ब्यास बेसिन में 51, पार्वती सब बेसिन में 36, सैंज सब बेसिन में 9, सतुलज बेसिन में 151, स्पीति सब बेसिन में 71, बास्पा सब बेसिन में 25 और चिनाब बेसिन में 457 ग्लेशियर हैं. ये सैकड़ों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं.

वहीं, सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के मुख्य विज्ञानी डॉ एसएस रंधावा ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों का आकार घट रहा है. नये अध्ययनों में ग्लेशियर के तेजी से पिघलने की बात सामने आयी है. ग्लेशियर पिघलने के तापमान बढ़ने के अलावा और भी कई कारण हैं. ग्लेशियर पिघलने से आकार भी घट रहा है. सतुलज बेसिन में अधिकतर झीलें तिब्बत इलाके में बनी हैं. इस क्षेत्र की झीलों का सीधा प्रभाव हिमाचल में ज्यादा है. हाई रेजॉल्यूशन की सेटेलाइन तस्वीरों में झीलें स्पष्ट नजर आ रही हैं. ये झीलें बड़े खतरे की ओर इशारा कर रही हैं.

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