क्या है रेमिशन पॉलिसी, जिसमें संशोधन कर आनंद मोहन की रिहाई हुई संभव

भारत में रेमिशन पॉलिसी के तहत हर राज्य का अलग कानून होता है. बिहार में सरकारी ड्यूटी पर तैनात कर्मी की हत्या के दोषी को सजा में कोई छूट नहीं दी जाती थी, लेकिन नीतीश सरकार ने 10 अप्रैल को बिहार कारा हस्तक 2012 के नियम 481 (I) (क) के प्रावधान को विलोपित कर दिया.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 27, 2023 7:19 PM

राज भूषण. पटना. भारत में रेमिशन पॉलिसी के तहत हर राज्य का अलग कानून होता है. दुष्कर्म और जघन्य अपराध करने वालों को कई राज्यों में सजा में कोई छूट नहीं दी जाती है. बिहार में सरकारी ड्यूटी पर तैनात कर्मी की हत्या के दोषी को सजा में कोई छूट नहीं दी जाती थी, लेकिन नीतीश सरकार ने 10 अप्रैल को बिहार कारा हस्तक 2012 के नियम 481 (I) (क) के प्रावधान को विलोपित कर दिया. कानून में इस बदलाव के साथ ही आनंद मोहन और 26 अन्य दोषियों की रिहाई का रास्ता साफ हो गया. दरअसल बिहार कारा हस्तक 2012 के नियम 481 (I) (क) के तहत यह प्रावधान था कि किसी सरकारी कर्मी की हत्या मामले में अगर किसी दोषी की उम्रकैद की सजा मिलती है तो उसे 20 साल की कैद के बाद माफी नहीं हो सकती है. नीतीश सरकार ने इसी नियम को हटा दिया है.

गुजरात की रेमिशन पॉलिसी में है पहले से प्रावधान

1994 में हुई गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैय्या की हत्या मामले में 2007 में आनंद मोहन को फांसी की सजा मिली थी. हालांकि, बाद में आनंद की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया. सरकारी कर्मी की हत्या के दोषी होने के कारण उनकी रिहाई मुश्किल थी. ऐसे में बिहार सरकार को कानून की इस पेंच को हटाने का रास्ता गुजरात सरकार की रेमिशन पॉलिसी से मिला. 9 जुलाई, 1992 में गुजरात सरकार ने छूट नीति तैयार की. इसके तहत समय से पहले रिहाई के लिए कैदी आवेदन कर सकते हैं.

इतने दिन के बाद दे सकते हैं सजा माफी का आवेदन

गुजरात सरकार की रेमिशन पॉलिसी के तहत 20 साल से ज्यादा, उम्र कैद वाले या सजायाफ्ता कैदी अपनी एक तिहाई सजा काट चुका है तो वह समय पहले रिहाई के लिए आवेदन कर सकता है. उसके आवेदन पर सरकार विचार करती है. आचरण और जांच रिपोर्ट के बाद उसे रिहा किया जा सकता है. बिहार सरकार ने बिहार जेल नियमावली 2012 में संशोधन किया है. नियमावली से ‘ड्यूटी पर तैनात सरकारी कर्मचारी के हत्यारे’ कैटिगरी को हटा दिया गया है. गुरुवार (27 अप्रैल) को वह जेल से बाहर आ गए.

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1894 में बना है कारागार कानून

1894 में बने कारागार अधिनियम के अनुसार कैदियों को दंड में छूट का प्रावधान किया गया है. आधुनिक दण्ड व्यवस्था के अन्तर्गत कारागार में कारावासी का आचरण अच्छा होने पर उसके दण्ड की अवधि पूरी होने के पहले ही उसे पैरोल पर छोड़ा जा सकता है. पैरोल के दौरान अगर वो शर्तों का उल्लंघन करता है, तो उसे पुनः कारागार में रखे जाने का प्रावधान है. इसके साथ ही कानून कहता है कि कारावधि से पहले भी कैदियों की रिहाई संभव है.

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किसके पास है सजा में छूट देने की शक्ति

कानून कारागार अधिनियम,1894 दंडित कैदियों को सजा में छूट के लिए संविधान के अनुच्छेद 72, राष्ट्रपति को ये शक्तियां प्रदान करता है कि वे सजा में छूट दें सकते हैं. इसी प्रकार, राज्यपाल के पास अनुच्छेद 161 के तहत छूट देने की शक्तियाँ हैं. राज्य सरकार के पास सीआरपीसी की धारा 432, 433, 434 और 435 में के तहत कानून बनाने का प्रावधान हैं. कारागार अधिनियम के तहत केवल राज्य सरकारों को ही कानून बनाने की छूट हैं. वैसे केंद्र सरकार इस संबंध में गैर-बाध्यकारी दिशा-निर्देश जारी कर सकती है.

सलाह देनेवाले अन्य प्राधिकार

राज्य सरकार आजीवन कारावास की सजा काट रहे दोषी के क्षमा आवेदन पर विचार करने के लिए एक बोर्ड का गठन कर सकती है. सीआरपीसी की धारा 432 कहती है कि राज्य सरकार छूट पर फैसला करने से पहले ट्रायल कोर्ट के जज से राय ले सकती है. सीआरपीसी की धारा 435 कहती है कि यदि अभियोजन एजेंसी केंद्र सरकार के अंतर्गत आती है, तो राज्य सरकार को छूट के आवेदन पर निर्णय लेने के लिए केंद्र से परामर्श करने की आवश्यकता है.

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