Samastipur News:सदर अस्पताल की इमरजेंसी में गंभीर मरीजों को इलाज के बदले डॉक्टर दे रहे रेफर का परचा

Samastipur News: सदर अस्पताल में गंभीर मरीजों को इलाज की जगह रेफर का पूर्जा थमा दिया जाता है. वैसे तो रेफर का पूर्जा बनाने का खेल जिले के पीएचसी से ही शुरू हो जाता है.

By PREM KUMAR | April 1, 2025 10:38 PM

Samastipur News:

समस्तीपुर : सदर अस्पताल में गंभीर मरीजों को इलाज की जगह रेफर का पूर्जा थमा दिया जाता है. वैसे तो रेफर का पूर्जा बनाने का खेल जिले के पीएचसी से ही शुरू हो जाता है. पीएचसी में पहुंचने वाले आग से झुलसे, दुर्घटना में जख्मी या अन्य गंभीर मरीजों को सीधे सदर अस्पताल रेफर कर दिया जाता है. सदर अस्पताल में भी मरीज को मलहम पट्टी यानि प्राथमिक उपचार के बाद सीधे दरभंगा मेडिकल कॉलेज या पटना मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया जाता है. कई बार तो मरीज की मौत दरभंगा या पटना जाने के क्रम में रास्ते में ही हाेती है. रेफर होने वाले शहर के निजी अस्पतालों में भी जाने को विवश हो जाते हैं, परिजन मरीज की जान बचाने के लिये शहर में बने अस्पतालों में चले जाते हैं, जहां मरीज की जान तो चली ही जाती है, उनकी जेब भी खाली हो जाती है. शहर में कुछ अस्पताल ड्रामा सेंटर भी खोल रखें हैं. जहां इलाज के नाम पर मोटी रकम लिये जाते हैं.सदर अस्पताल के इमरजेंसी रजिस्टर के मुताबिक औसतन हर दिन 80 से 100 मरीज इमरजेंसी में इलाज कराने आते हैं. मंगलवार को अपराह्न 3 बजे तक 64 मरीज इमरजेंसी वार्ड में आये थे. सदर अस्पताल में आने वाले मरीजों में हर दिन 10 से 15 मरीज गंभीर होते हैं,जिन्हें प्राथमिक उपचार के बाद रेफर कर दिया जाता है. खासकर वर्निंग के केस में यहां बहुत परेशानी होती है. वर्निंग वाले मरीजों को सीधे यहां से रेफर कर दिया जाता है. सदर अस्पताल में वर्निंग वार्ड की व्यवस्था नहीं है. वर्निंग वाले मरीजों को सबसे अधिक इंफेक्शन का खतरा रहता है. इस अन्य मरीजों के साथ रखने में इंफेक्शन का खतरा रहता है. इस कारण इसे सदर अस्पताल में रखना असुरक्षित रहता है. वहीं हेड इंज्यूरी का तो यहां कोई इलाज ही नहीं है. सदर अस्पताल में आर्थोपेडिक वार्ड भी नहीं है. यहां हड्डी के टूटने के बाद रॉड लगाने की व्यवस्था नहीं ऐसे मरीज भी यहां से रेफर कर दिये जाते हैं, वे या तो यहां निजी अस्पतालों में जाते हैं, या फिर कहीं अन्यंत्र जाकर इलाज कराते हैं. ऐसे में सबसे अधिक परेशानी गरीब मरीजों को होती है.

बोले सिविल सर्जन

वर्निंग केस में इंफेक्शन का खतरा रहता है, यहां वर्निंग वार्ड नहीं हैं, ऐसे में मरीजों को रेफर करना पड़ता है,ऐसे गरीब जिनके पास कोई सुविधा नहीं होती है, मजबूरी में उन्हें यहां रखकर उपब्ध सुविधाओं से इलाज किया जाता है. ऑर्थोपेडिक वार्ड नहीं है, हड्डी में रॉड लगाने की आवश्यकता वाले मरीजों को रेफर कर दिया जाता है. गंभीर हेड इंज्यूरी वाले मरीजों को रेफर कर दिया जाता है. रेफर करने से पूर्व मरीजों को उपलब्ध सुविधाओं से इतना उपचार कर दिया जाता है कि व अगले गंतव्य तक पहुंच सके.

डॉ. गिरीश कुमार, उपाधीक्षक, सदर अस्पताल, समस्तीपुर

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