bihar assembly elections news 2025 : पूर्णिया के डाॅ लक्ष्मी नारायण सुधांशु के नेतृत्व में कांग्रेस ने लड़ा था पहला विस चुनाव
bihar assembly elections news 1952 पंडित जवाहर लाल नेहरू ने डाॅ सुधांशु को सौंपी थी बिहार कांग्रेस की कमान
bihar assembly elections news 2025 : पूर्णिया. पूर्णिया की नयी पीढ़ी को शायद इसकी जानकारी नहीं कि बिहार का पहला आम चुनाव कांग्रेस ने डॉ लक्ष्मी नारायण सुधांशु के नेतृत्व में लड़ा था. डाॅ सुधांशु न केवल पूर्णिया बल्कि देश की बड़ी शख्सियत थे, जिन्होंने कालांतर में विधानसभा अध्यक्ष का पद भी सुशोभित किया. इस तथ्य का जिक्र डाॅ अनुग्रह नारायण सिंह के ‘मेरे संस्मरण’ में आया है, जो एक पुस्तक के स्वरूप में है. देश की आजादी के बाद बिहार में 1952 में पहला आम चुनाव हुआ था और इसके ठीक पहले पंडित जवाहर लाल नेहरू ने डॉ लक्ष्मी नारायण सुधांशु को बिहार कांग्रेस की कमान सौंपी थी. डाॅ अनुग्रह नारायण सिंह के ‘मेरे संस्मरण’ में कहा गया है कि बिहार के पहले आम चुनाव के दौरान तबके अविभाजित बिहार में प्रत्याशियों के चयन से लेकर चुनाव की तैयारी तक डॉ सुधांशु जी की अहम भूमिका रही. तब वे खुद भी जिले के धमदाहा सीट से चुनाव लड़े थे. उनके साथ भोला पासवान शास्त्री ने भी एक ही सीट से चुनाव लड़ा था. उस समय धमदाहा और कोढ़ा संयुक्त सीट हुआ करती थी. पहले चुनाव में पूरे बिहार में कांग्रेस को मिली ऐतिहासिक जीत से देश की राजनीति में डाॅ लक्ष्मीनारायण सुधांशु का कद और बढ़ गया था. देश की शीर्ष राजनीति में सक्रिय तमाम लोग तब सुधांशु जी की नेतृत्व क्षमता के कायल हो गये थे. सुधांशु जी तब और सुर्खियों में आये जब पहले चुनाव के बाद ही बिहार में श्री कृष्ण बाबू और अनुग्रह नारायण सिंह के बीच मुख्य मंत्री पद को लेकर विवाद शुरू हो गया. इससे सरकार के गठन का पेच फंस गया और नेहरु जी के कहने पर सुधांशु जी ने इसे सहज रूप से सुलझा दिया. डाॅ अनुग्रह नारायण सिंह के ‘मेरे संस्मरण’ में इसका जिक्र करते हुए कहा गया है ‘ सार्वजनिक निर्वाचन 1952 के पश्चात मंत्रिमंडल के निर्माण का झमेला चला. इस बार हमारे कुछ हिमायती लोगों ने मुझे भी तनने को उत्प्रेरित किया. उधर श्री बाबू के समर्थकों ने उन्हें भी झुकने नहीं दिया. फलत: सर्वसम्मति से नेता का चुनाव सम्भव नहीं हो सका, जो न तो मैं चाहता था, न श्री बाबू चाहते थे. मामला दिल्ली तक बढ़ा. राज्य कांग्रेस अध्यक्ष श्री सुधांशु की बुलाहट हुई. प्रधान मंत्री नेहरूजी ने उनसे आजिज आकर कह दिया -यदि दोनों नेता नहीं मिल सकते, तो जाइये, आप ही नेता हो जाइये और मंत्रिमंडल का गठन कर लीजिये.’ संस्मरण के अनुसार, दिल्ली से वापसी के बाद सुधांशु जी दोनों नेताओं से अलग-अलग मिले. दोनों तरफ से उन्हें मंत्री बनाने का प्रलोभन भी दिया गया, पर सबको ठुकराते हुए सुधांशु जी ने अपनी ओर से पूरी तरह कोशिश कर दोनों नेताओं में मेल कराया और सहमति बना कर श्री बाबू को नेता बनवाया और इसके बाद सरकार का गठन हुआ.
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