बदलते बिहार में गांव बन रहे देसी ब्रांडों के हब, बड़ी कंपनियों को मात दे महिलाएं लिख रहीं नयी पटकथा

कभी घर के पुरुष पर आश्रित ये महिलाएं अब प्रतिमाह पांच से लेकर 15 हजार रुपये महीना गांवों में ही कमाकर परिवार को आर्थिक रूप से मदद करने लगी हैं. बाजार के बड़े ब्रांडों को टक्कर देकर उत्पादों को कम कीमत में ही उपलब्ध करवा रही हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 23, 2023 3:56 AM

मनोज कुमार, पटना. घूंघट ओढ़े ग्रामीण महिलाओं की तस्वीर प्रदर्शनियों और दीवारों पर जितनी खूबसूरत दिखती हैं, उससे बेहतरीन तस्वीर बिहार की मेहनतकश आधी आबादी की अब घूंघट के बाहर की हो गयी है. राज्य की ग्रामीण महिलाओं ने गांवों को साबुन से लेकर फ्रीजर निर्माण तक का हब बना दिया है. इसकी झलक बुधवार को गांधी मैदान में बिहार दिवस पर लगी प्रदर्शनी में स्पष्ट रूप से दिखी. कभी घर के पुरुष पर आश्रित ये महिलाएं अब प्रतिमाह पांच से लेकर 15 हजार रुपये महीना गांवों में ही कमाकर परिवार को आर्थिक रूप से मदद करने लगी हैं. बाजार के बड़े ब्रांडों को टक्कर देकर उत्पादों को कम कीमत में ही उपलब्ध करवा रही हैं. जीविका द्वारा मुहैया कराये गये प्लेटफॉर्म से तैयार इनके प्रोडक्ट अब बाजारों में भी उतर गये हैं.

बड़ी कंपनियों को दे रहीं मात

गया के डोभी में जे वायर्स के नाम से महिलाएं पंखा, फ्रीजर, बल्ब, बिजली से चलने वाला कूकर बना रही हैं. नवादा, औरंगाबाद, पश्चिमी चंपारण, समस्तीपुर, शेखपुरा में इनके उत्पादों की सप्लाइ हो रही है. इस संस्था की महिलाएं प्रतिमाह दस से 15 हजार रुपये कमा रही हैं. रोहतास के नोखा की सुहागन जीविका महिला चूड़ी क्लस्टर की महिलाएं चूड़ी, लहठी तैयार कर दुकानों में भी सप्लाइ कर रही हैं. इस समूह की महिलाओं की प्रतिमाह की आमदनी पांच हजार रुपये है. हाजीपुर की मधुग्राम प्रोड्यूस कंपनी की मधु की पूरे बिहार में आपूर्ति हो रही है. इस संस्था की 10 हजार महिलाएं प्रतिमाह पांच हजार की आमदनी कर रही हैं.

गांवों की महिलाओं का दिख रहा दबदबा

दरभंगा की शिवग्राम महिला प्रोड्यूसर कंपनी साड़ी, स्टॉल, दुपट्टा, सूट बनाकर प्रतिमाह पांच हजार रुपये कमा रही हैं. सीमांचल जीविका गौट प्रोड्यूसर कंपनी से जुड़ीं महिलाएं बकरियों के खाने-पीने का सामान से लेकर दवाई भी बना रही हैं. इस समूह की 300 महिलाएं प्रतिमाह पांच हजार रुपये कमा रही हैं. मुंगेर के बंका की मां सरस्वती स्वयं सहायता समूह की महिलाएं कई फ्लेवर में साबुन निर्माण कर बड़े ब्रांडों को टक्कर दे रही हैं.

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