संजीव मुखिया ने कहा, 12 साल तक बेचा ‘भविष्य’, हर परीक्षा थी जेब में!
‘मैंने नौकरी और दाखिला बेचने की इंडस्ट्री खड़ी की.
अनुज शर्मा, पटना ‘मैंने नौकरी और दाखिला बेचने की इंडस्ट्री खड़ी की. 12 साल तक हर परीक्षा मेरी उंगलियों पर चलती थी’. यह वाक्य किसी फिल्मी खलनायक का डाॅयलाग नहीं, बल्कि बिहार के सबसे बड़े परीक्षा माफिया संजीव मुखिया की स्वीकारोक्ति का हिस्सा है. प्रभात खबर को मिली जानकारी के मुताबिक, नीट पेपर लीक कांड की जांच में संजीव ने जो राज उगले हैं, वे केवल एक अपराध कथा नहीं, देश की परीक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान हैं. बिहार की परीक्षा व्यवस्था को खोखला करने वाले जिस संगठित माफिया नेटवर्क की परतें अब खुल रही हैं, इस पूरे नेटवर्क की बुनियाद एक पिता की इस ‘ख्वाहिश’ से रखी गयी थी कि बेटे को डॉक्टर बनाना है. इस नेटवर्क की बची हुई कड़ियों को जोड़ने के लिए आर्थिक अपराध इकाई (इओयू ) संजीव मुखिया को एक बार और रिमांड पर लेने की तैयारी कर रही है. इस संबंध में कानूनी प्रक्रिया पूरी कर ली गयी है. इंतजार इस बात का है कि सीबीआइ उससे पूछताछ पूरी कर ले.नीट पेपर लीक मामले की जांच एक ओर बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई (इओयू ) कर रही है, वहीं दूसरी ओर केंद्रीय एजेंसी सीबीआइ भी अपने स्तर पर पड़ताल में जुटी है. सूत्रों के अनुसार इओयू संजीव को फिर से रिमांड पर लेने की तैयारी कर रही है. अभी तक की जांच से जुड़े दस्तावेज बताते हैं कि बिहार की परीक्षा प्रणाली वर्षों से एक संगठित आपराधिक सिंडिकेट के शिकंजे में थी. संजीव ने स्वीकार किया है कि वर्ष 2008 में खगड़िया के अमित कुमार के साथ मिलकर परीक्षा माफिया का खाका तैयार किया. कुछ ही महीनों में रोहतास, नालंदा, शेखपुरा, गया और झारखंड तक यह गिरोह फैल गया. 2012 में महादलित विकास मिशन की क्लर्क भर्ती परीक्षा में पहली बार ब्लूटूथ सेटिंग से पेपर सॉल्व कराया गया. पुलिस ने छापेमारी की, संजीव गिरफ्तार हुआ, लेकिन जेल से छूटने के बाद उसके इरादे और माफिया नेटवर्क दोनों और गहरे हो गये. वर्ष 2013 में स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) की मैनेजमेंट ट्रेनी परीक्षा में फिर पेपर लीक कर अभ्यर्थियों से 50-50 हजार वसूले गये. उसी साल एक और केस में गिरफ्तार हुआ, लेकिन इसके बाद उसने लॉजिस्टिक्स, स्कूल, कॉलेज, प्रेस और परीक्षा केंद्रों में पैठ बनाकर पूरे सिस्टम को नियंत्रण में ले लिया. वर्ष 2016 में मुखिया ने अपने बेटे शिव कुमार उर्फ डॉ शिव को डॉक्टर बनाने के लिए नीट पेपर पहले ही खरीद लिया था. अमित की मदद से पूरा सिस्टम मैनेज कर लिया गया. 2017 में शिव पकड़ा गया, लेकिन माफिया का जाल बना रहा. संजीव ने स्वीकार किया है कि नौकरी और दाखिला कराने की एक इंडस्ट्री खड़ी की थी. नेटवर्क सूत्रों के अनुसार यह रैकेट एम्स, नीट , बीपीएससी , एसएससी और रेलवे तक फैला हुआ है. सैकड़ों लोग इसमें उसके साथ हैं. जांच एजेंसियां अब 32 मोबाइल नंबर, 17 बैंक खाते और 6 कॉल डिटेल रिकॉर्ड खंगाल रही हैं.
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