मोदी पर नीतीश का जोरदार हमला, कहा- मैं सेनानी का बेटा, मेरे खून पर ही उठाया सवाल
मिथिलेश... पटना :मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जोरदार हमला किया. नीतीश ने कहा कि मैं स्वतंत्रता सेनानी का बेटा हूं. प्रधानमंत्री ने मेरे खून पर सवाल उठा दिया है. डीएनए का सीधा मतलब मैं खून से समझ रहा हूं. प्रधानमंत्री को मेरे खून में गड़बड़ी नजर आयी है.मेरे पिता तो स्वतंत्रता सेनानी […]
मिथिलेश
पटना :मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जोरदार हमला किया. नीतीश ने कहा कि मैं स्वतंत्रता सेनानी का बेटा हूं. प्रधानमंत्री ने मेरे खून पर सवाल उठा दिया है. डीएनए का सीधा मतलब मैं खून से समझ रहा हूं. प्रधानमंत्री को मेरे खून में गड़बड़ी नजर आयी है.मेरे पिता तो स्वतंत्रता सेनानी थे. यह लोग किस बैकग्राउंड से आते हैं. किस धारा से निकल कर राजनीति कर रहे हैं. नीतीश ने कहा कि प्रधानमंत्री ने पूरे बिहार का अपमान किया है.उन्हें स्वतंत्रता सेनानी के खून में खोट नजर आ रहा है. सीएम ने रविवार को विभिन्न समाचार पत्रों के साथ विशेष बातचीत की और खुलकर अपनी बातें रखीं.
मुख्यमंत्री के साढ़े नौ साल पूरे होने के मौके पर रिपोर्ट कार्ड जारी होने के एक दिन पहले बातचीत में सात सकरुलर रोड स्थित अपने आवास पर उन्होंने नरेंद्र मोदी के हमले का करारा जवाब दिया. बल्कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद की तारीफ करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी को असली जवाब तो वही देंगे. वह पिकुलियर राजनेता हैं और उनकी प्रेजेंस ऑफ माइंड भी गजब की है. इस मामले में वह बिरले हैं.
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए नरेंद्र मोदी ने अधूरा सच कहा. उनकी यह गलत बयानी ठीक नहीं. जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाने और फिर हटाये जाने के निर्णय को उन्होंने सही करार दिया. नीतीश ने अपनी गलती स्वीकारते हुए कहा कि हम अब भी नहीं संभलते तो यह सुसाइडल ही होता. साफ कहा कि जब बनाया हमने तो गाली भी हमे ही पड़ेगी और भोगना भी मुङो ही होगा. करीब दो घंटे की बातचीत में नीतीश कुमार ने कहा कि प्रधानमंत्री ने बिहार दौरे में जिस तरह की भाषा का प्रयोग किया है उसका कायदे से जवाब तो लालू प्रसाद ही देंगे. हम तो फैक्ट फाइटर में रहेंगे. मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री का पूरा स्पीच, टोन और टेंपर अन विकमिंग ऑफ पीएम था.
मुख्यमंत्री ने भाजपा को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उसके पास कोई मुद्दा नहीं है. व्यक्तिगत हमला और जुमलेबाजी से वह बिहार पर कब्जा चाहते हैं. विशेष दर्जा पर प्रधानमंत्री को घेरते हुए कहा कि क्यों नहीं संसद में ही बिहार के लिए पैकेज की घोषणा कर देते. मुख्यमंत्री ने कहा कि संसद के बाहर भी एलान करने में कोई बाधा नहीं है. लेकिन, जब प्रधानमंत्री संसद के सत्र चलने की बात कह रहे हैं तो उन्हें वहां इस बात के लिए कौन रोक रहा है. मुख्यमंत्री ने राज्य में हाल के दिनों में घटित सांप्रदायिक तनाव को लेकर भी भाजपा को घेरा. उन्होंने तर्क दिये कि सांप्रदायिक तनाव की घटना की बेनिफिशियरी भाजपा रही है. आखिर इसका कोई तो कारण रहा होगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि हम भाजपा की तरह हवाबाजी नहीं करते. हम तो काम में डूबे रहते हैं, इसी में मन लगा रहता है. उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा बिहार में सेवा करने के लिए सरकार नहीं बनाना चाहती. बल्कि वह बाइ हुक और बाइ क्रुक कब्जा चाहती है.
बात जब बिहारी बाबू और भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा की चली तो नीतीश ने कहा कि उनसे हमारे पुराने संबंध हैं. हमारे रिश्ते में पार्टी की दीवार आड़े नहीं आती. नीतीश ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि भाजपा का ग्राफ बढ़ा तो इसमें शत्रुघ्न सिन्हा का भी योगदान था. लेकिन, अब भाजपा मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं वाली कहावत चरितार्थ कर रही है. बिहारी बाबू का बचाव करते हुए कहा कि शत्रुघ्न सिन्हा आरएसएस के आदमी नहीं है जो उनकी भाषा बोलेंगे. वह बिहार की शान हैं, गजब के कलाकार हैं. पटना की समस्या को लेकर मुझसे मिलने आये थे. पहले भी मुलाकात होती रही है, आगे भी होगी. सवाल जब किया गया कि राजनीति में भी साथ चलेंगे तो नीतीश ने कहा यह सब भविष्य की बात है.
हमने कायम किया रूल ऑफ लॉ : नीतीश
10 साल का कार्यकाल
10 वर्षो में देखते हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बिहार लक्ष्य से आगे बढ़ा है. एजेंडा फॉर गवर्नेस की कसौटी पर उपलब्धि साबित हुई है. हमारा रिपोर्ट कार्ड इस बार कुल मिलाकर 10 सालों के कामकाज का लेखा-जोखा होगा. इसके बारे में कार्यक्रम तय किये गये थे, एजेंडा फॉर गवर्नमेंट 2005-10 और 2010-15 तक के कार्यकाल का ब्योरा है. सुशासन की कसौटी पर इसे कसते हुए हमने रिपोर्ट कार्ड तैयार किया है. जो कुछ भी कहा, किया. इसके अलावे भी कदम उठाये. उसका भी उल्लेख है. सभी काम कमोबेश पूरे कर लिये गये. कुछ काम जिसे बाद में हमने अलग रखा था, को छोड़ दें, तो दिया सुशासन के एजेंडे में शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई, विधि व्यवस्था सब पर काम हुआ है. कोई चीज बाकी नहीं. 2008 में कृषि रोड मैप लिया. वर्ष 2012-17 तक के लिए नया कृषि रोड मैप तैयार कराया. सुशासन पर पहले कार्यकाल में भी अमल किया. हाइस्कूल में करीब 12.5 प्रतिशत बच्चे बाहर रह गये थे. नये स्कूल खोले, शिक्षकों की भरती की गयी, स्कूल भवन बनाये गये. स्कूलों को अपग्रेड किया गया. अब स्कूलों से बाहर मात्र एक प्रतिशत बच्चे रह गये हैं. स्कूल और बच्चों का गोल अचीव किया है. ड्रॉपआउट दर में भी कमी आयी है. अपर प्राइमरी में लड़कियों की संख्या कम थी, इसलिए पोशाक योजना को लागू किया गया. अब अपर प्राइमरी में लड़के-लड़कियों की संख्या बराबर है. कहीं-कहीं तो बढ़ गयी है. हर बच्चा पढ़े इसके लिए लड़कियों को साइकिल देने की योजना बनी. जिस समय कक्षा नौ में इस योजना को आरंभ किया, स्कूलों में 1.70 लाख लड़कियां थीं. बाद में लड़कों के लिए भी यह योजना लागू की गयी. यह बड़ी उपलब्धि थी. इस साल सरकार ने 8.15 लाख लड़कियों को साइकिल की राशि उपलब्ध करायी. 8.28 लाख लड़कों को भी साइकिल दिया जायेगा. यानी हाइस्कूलों में लड़के-लड़कियों की संख्या में महज 12-13 हजार का फर्क रह गया है. लड़कियों की शिक्षा में ऐसा उछाल बहुत राज्यों में नहीं है. हमने पाया कि लड़कियों की शिक्षा से राज्य की आबादी पर भी फर्क पड़ा है. तब हमने लड़कियों को इंटर तक शिक्षा पर ध्यान लगाया.
पहले दसवीं तक पढ़ाने का लक्ष्य था, अब इंटर तक कर दिया गया. मानव विकास मिशन के इंडेक्स पर अध्ययन कर रहे थे, तो पाया कि लड़कियों की शिक्षा का असर जनसंख्या स्थिरीकरण पर भी पड़ रहा है. वर्ष 2005 में प्रजनन दर 4.2 और 4.3 था. यानी एक दंपती को चार से अधिक बच्चे थे. हमने देखा कि लड़की मैट्रिक पढ़ गयी, तो राष्ट्रीय स्तर पर और बिहार में भी यह दर 02 पर आ जाता है. जब इंटर पास लड़कियों का अध्ययन किया गया, तो यह राष्ट्रीय स्तर पर 1.7 दर पहुंच गया. बिहार में यह 1.6 आया. तब हमने हर पंचायत में हाइस्कूल खोलने की योजना बनायी. इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जा रहा है. 2013-14 में 1400 स्कूल खुलवाये गये. 2014-15 में 1000 स्कूल खोले गये. अब राज्य की फर्टिलिटी दर 4.3 से घट कर 3.4 पर आ गयी. 20-25 साल बाद आबादी कम होने लगेगी. इसी प्रकार स्वास्थ्य क्षेत्र में टीकाकरण योजना शुरू की, तो इसकी दर 18 प्रतिशत थी. अब 78 प्रतिशत, राष्ट्रीय औसत से भी अधिक है.
न्याय के साथ विकास के रास्ते पर चल पड़े हैं. लेकिन जब तक मानव विकास नहीं होगा, इसका कोई मतलब नहीं है. जिस समय काम संभाला, उस समय जीएसडीपी 75 हजार करोड़ था. अब चार लाख करोड़ से ज्यादा है. शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तीकरण सभी सेक्टर में बिहार आगे बढ़ा है. तरक्की हुई है. कानून का राज स्थापित हुआ. लोगों के मन से भय निकला है. आपराधिक घटनाएं हो सकती हैं, लेकिन लोगों को अहसास है कि अपराधी पकड़े जायेंगे. उनका स्पीडी ट्रायल हो रहा है. 96 हजार से अधिक अपराधियों को सजा दी गयी है. रूल ऑफ लॉ स्टेबल हुआ है.
जीतन राम मांझी
सब कुछ सामने है. विधि व्यवस्था की बात कहीं से किसी के सामने नहीं आयी है. बीच में सिर्फ जुबानी खेल चल रहा था. अब सब कुछ पटरी पर है. मेरा एक निर्णय था. मुझ पर हजार बार बोलते हैं. मैं इसे खराब नहीं मानता. मैंने किया, तो सुनना भी पड़ेगा. बनाया हमने तो भोगेगा कौन. मैंडेट हमको था. हमने दूसरे पर डाल दिया. अब साबित हो गया कि निर्णय नहीं लेते, तो सुसाइडल होता. बुनियाद पड़ चुकी थी. पॉलिटिकल गाली की चिंता नहीं, कौन परवाह करता. हम तो घोषित लक्ष्य की ओर जा रहे हैं. अब फैसला जनता करेगी. मांझी को हटाने का फैसला पार्टी का था. पार्टी का एक-एक कार्यकर्ता परेशान था. कहता था कि ठीक नहीं चल रहा है. शुरुआत में तो मैं कुछ सुनता नहीं था, सरकार से हटने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं के संपर्क में लगा था. समता पार्टी के गठन के बाद यह पहला मौका था, जब इतने बड़े कार्यक्रम से अपने को जोड़ा था. शुरू में भी मुलायम सिंह यादव ने मना किया था, उन्होंने कहा यह आपने क्या किया. जब हम मजर्र के सिलसिले में मिल रहे थे, वह बार-बार कहते काम संभालिए, आप नहीं समझ रहे. हमने महसूस किया न सिर्फ गवर्नेस के बारे में, बल्कि राजनीतिक तौर पर भी सारी चीजों को चकनाचूर किया जाता रहा. हमने एक बार भी उन्हें विभीषण नहीं कहा. हमने कहा था कि कोई अपने परिवार में विभीषण का नाम नहीं रखता. इतना बड़ा महिमामंडित कौन उन्हें करेगा. जिसके मन में जो आता है, कहता है. हम गवर्नेस का काम करने आये हैं. जब गवर्नेस की ही फांसी चढ़ गयी, तो कसूरवार हम ही न होंगे.
डीएनए
हम तो स्वतंत्रता सेनानी के बेटे हैं. डीएनए का मतलब सीधा खून समझते हैं. उन्होंने मेरे खून को गाली दी है. मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया. क्यूल के दानापुर के नेउरा तक तीसरी लाइन पर कोई शब्द नहीं कहा. गैस पाइनलाइन का शिलान्यास 23 अक्तूबर, 2013 को हुआ था. पीएम का स्पीच, टोन, टेंपर अन विकमिंग ऑफ पीएम था. राजनीति को 1969 से देख रहा हूं. नेहरूजी के काल में बच्च था, शास्त्री जी के बारे में किताबों में पढ़ा. बाद के दिनों में प्रधानमंत्री राज्यों में अपनी पार्टी के चुनाव प्रचार में जाने लगे. इस तरह का भाषण कभी नहीं दिया. मुजफ्फरपुर जाकर तो हद ही कर दी. सरकारी कार्यक्रम में दिये गये भाषण में भी कोई कंटेंट नहीं. बार-बार भोज कैंसिल करने की बात कह रहे थे. भोज तो 2010 में रद किया था तो उस साल विधानसभा का चुनाव साथ में क्यों लड़े. सचमुच चोट थी, तो 2010 के विधानसभा का चुनाव मेरे नेतृत्व में भाजपा के लोग क्यों लड़े. 2013 में जब अलग हुए, तो यह दर्द छलक आया. 2014 के संसद के चुनाव में भी यह बातें रखीं. अब भी वही बात कर रहे हैं. व्यक्तिगत हमला और जुमलेबाजी कर चुनाव जीतना चाहते हैं.
विशेष दर्जा
प्रधानमंत्री संसद में क्यों नहीं पैकेज की घोषणा कर देते. करना तो कुछ है नहीं, देना भी कुछ नहीं है. मंत्री की बात करते हैं. केंद्र के मंत्री तो खाली बोली दे रहे हैं. पटना में कहते, फिर हाजीपुर चले जाते, वहां भी वही बात कहते हैं. अटलजी की सरकार में बिहार के कितने पावरफुल मंत्री थे. यशवंत सिन्हा वित्त मंत्री थे. रक्षा मंत्री जॉर्ज साहेब थे. रेल मंत्री मैं था. संचार और सिविल एविएशन भी जुड़ा. बाबू लाल मरांडी भी थे.
दो साल इधर के
भाजपा के किसी आरोप में दम नहीं है. कौन-सी योजना उन लोगों ने दी है. न कोई आइडिया था. न सेल्फ हेल्प ग्रुप के बारे में जानते थे. गंगा पाथ-वे हो या बिजली की योजना, सभी हमारी योजना थी. जितनी भी सड़कें बनी, पुल बने, महिला सशक्तीकरण पर काम हुआ, हमने किया. नगर विकास विभाग तो उनके ही जिम्मे था, क्या किया. लोग क्या बोलते हैं गांव में, स्कूल में पढ़ाई, अस्पताल में दवाई और शहर में सफाई. सब में फेल रहे और अब आवाज लगा रहे हैं. हमने नगर निकायवालों को बुलाया, घोषणा की और अगले दिन पैसा भी जारी कर दिया. शौचालय के लिए पहले राज्य सरकार 1333 रुपये देती थी, केंद्र चार हजार देता था. हमने एकमुश्त आठ हजार रुपये देने शुरू किये. प्रति व्यक्ति सफाई के लिए 12 सौ रुपये भी दिये. शर्त रखी कि पैसों का उपयोग सीवरेज और ड्रेनेज के लिए होगा. हम तो काम में डूबे रहते हैं, इसी में मन लगा रहता है. अब बिहार में रिवर्स माइग्रेन हो रहा है. उत्तर बिहार में यह दिख रहा है. बाहर जानेवालों की संख्या घटी है. फरवरी, 2006 में सर्वे कराया था. तब प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर औसतन प्रति माह 39 मरीज आते थे. अब 11 हजार पहुंच रहे हैं. तब 400 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र थे, अभी सभी प्रखंडों में हैं. सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल भी बढ़े हैं. इस क्षेत्र में निजी निवेश के रास्ते हमने खोले हैं. माइंडसेट बदलना चाहिए लोगों का. इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान का दायरा भी बढ़ा है.
आगे क्या काम
अगले 10 साल में बिहार को क्या जरूरतें हैं, इस पर लोगों की राय ली जा रही है. जो भी राय विचार आयेंगे, उसका डॉक्यूमेंट बनाया जायेगा. जहां तक प्रशांत किशोर की बात है, तो वह एक्टिविस्ट रहे हैं. कई बार मुलाकात हुई, अब वह साथ चल रहे हैं.
एक अलग ट्रेंड
भाजपा के सरकार से अलग होने पर सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं बढ़ी हैं. हमलोग इसे टेकल कर रहे हैं. ट्रेंड क्या है, आकलन कर रहे हैं. मैं अपनी मशीनरी के साथ पूरी तरह सजग हूं. मेरे पास जो रिपोर्ट है कि वे छोटे-मोटे तनाव बढ़ा रहे हैं, क्योंकि वे बड़ी घटना को अंजाम नहीं दे सकते. यदि पांच गांव भी प्रभावित हो जाता है, तो उनका काम बन जाता है. स्वाभाविक तौर पर कम्युनल घटनाओं की बेनिफिसियरी भाजपा रही है. बेनिफिसियरी रही है, तो उसे लगता होगा कि ऐसी घटनाओं से फायदा होगा. लेकिन, हम अलर्ट हैं. सूरत से 20 लाख साड़ियां आयी हैं. कीमत 500-1000 रुपये है. हम इसे चुनाव आयोग तक ले जायेंगे. भाजपा ने जिस प्रकार से चुनाव को महंगा बना दिया है, दूसरे के बूते की बात नहीं है. भाजपा बिहार पर बाय हुक ऑर बाय क्रूक कब्जा करना चाहती है. सेवा के लिए नहीं, कब्जा के लिए सरकार चाहती है.
