गुजरात प्रकरण : अराजकता की सियासत के नये प्रयोग का शिकार हो रहे बिहारी

गुजरात में बिहार के लोगों पर होने वाले हमलों को सत्ता और विपक्ष की बता रहे सियासत डीएन गौतम पूर्व डीजीपी, बिहार पटना : गुजरात में बिहारियों पर हमला सियासत में एक नये प्रयोग का हिस्सा है. सत्ता में बैठे और सत्ता में बैठने की इच्छा रखने वाले सभी मिल कर आम आदमी से शत्रु […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 14, 2018 7:36 AM
गुजरात में बिहार के लोगों पर होने वाले हमलों को सत्ता और विपक्ष की बता रहे सियासत
डीएन गौतम
पूर्व डीजीपी, बिहार
पटना : गुजरात में बिहारियों पर हमला सियासत में एक नये प्रयोग का हिस्सा है. सत्ता में बैठे और सत्ता में बैठने की इच्छा रखने वाले सभी मिल कर आम आदमी से शत्रु जैसा व्यवहार कर रहे हैं. एक माहौल बना हुआ है जिसमें विभिन्न तरह की राजनीतिक ताकतें जो देश में मायने रखती हैं, उन्होंने जैसे ठान रखी है कि जैसे किसी को चैन से नहीं रहने देना है. इसमें कोई तर्क काम नहीं करता है. जैसे कि लावारिस गाय सैकड़ों की संख्या में घूमती हुई किसानों की फसल चर जा रही हैं.
धर्मात्माओं की गोशाला में एक-एक बार में सैकड़ों गायों की मौत हो जाती है और उनका कुछ नहीं बिगड़ता. वहीं अफवाह के आधार पर मॉब लिंचिंग में पांच मिनट भी नहीं लगती. कुल मिला कर ऐसा लग रहा है कि देश में राक्षसी-तामसी ताकतें नियंत्रण से बाहर हो रही हैं. वे जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा के नाम पर कोई-न-कोई बहाना खोज कर लोगों की रोजी-रोटी और चैन छीनने में लगे हुए हैं. इस पूरे परिवेश में तथाकथित सेकुलर और प्रगतिशील ताकतों की सांप्रदायिक डाढ़ें स्पष्ट दिखाई देने लगी है.
कानून व्यवस्था को डिस्टर्ब करना राजनीति का माध्यम
संघीय ढांचे वाले देश में कानून व्यवस्था को डिस्टर्ब करना, राजनीति का माध्यम जमाने से रहा है. अराजकता फैलाने को राजनीति का माध्यम बनाकर चुनी हुई सरकारों की चूलें हिलाने में मदद मिलती है. जब अराजक भीड़ भले ही कुछ हजार की हो हिंसा पर उतारू
होती है तो भीड़ को लाने वाले और खड़ा करने वाले नेताओं की ख्वाहिश होती है कि कुछ लोग मर जायें ताकि सरकार को कालिख लग सके. ऐसा न होने
पर वे नेता निराश होते हैं. दहशत आतंक के खेल को कौन फाइनेंस कर रहा है और किसने पनपाया इसके सूत्र देश की राजनीति में हैं. लोगों को मालूम है कि सांप्रदायिक दंगों का इतिहास सत्ताधीशों द्वारा मुसलमानों को नियंत्रण और भय में रखने की चेष्टायें रही हैं. जबसे केंद्र में भाजपा का अपना बहुमत आया है तब से राजनीति के धंधेबाजों को हिंदू एकता का भय भयंकर तरीके से सताने लगा है, इसलिए वे जातीय-भाषायी संघर्ष में आश्रय खोज रहे हैं.
पूरे देश को होश में आने की जरूरत: पूरे देश को होश में आने की जरूरत है नेगेटिविटी फैलाने वाले प्राणियों से ईवीएम मशीन पर चुन-चुन कर बदला लेना चाहिए. ऐसा एक भी आदमी संसद या विधानसभा न पहुंचे तभी इन ताकतों को होश आयेगा. चेला लोगों को नहीं नेताजी को चुनाव में हरा उन्हें समझाना है कि अराजकता की राजनीति नहीं चलेगी.

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