पटना : पैर को पहले रिंगफ्रेम में बांधा, फिर धागा डाल टूटी हड्डी को पिरो दिया

बिहार ऑर्थोपेडिक्स एसोसिएशन की ओर से आयोजित दो दिवसीय सेमिनार का हुआ समापन पटना : वैशाली के रहने वाले 30 वर्षीय बिहारी केवट के पैर की हड्डी सड़क दुर्घटना में टूट गयी थी, जो जुड़ नहीं पा रही थी. डॉक्टरों के पास हड्डी के इन्फेक्टेड हिस्से को काट कर अलग करने के अलावा कोई विकल्प […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 16, 2018 9:04 AM
बिहार ऑर्थोपेडिक्स एसोसिएशन की ओर से आयोजित दो दिवसीय सेमिनार का हुआ समापन
पटना : वैशाली के रहने वाले 30 वर्षीय बिहारी केवट के पैर की हड्डी सड़क दुर्घटना में टूट गयी थी, जो जुड़ नहीं पा रही थी. डॉक्टरों के पास हड्डी के इन्फेक्टेड हिस्से को काट कर अलग करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. लेकिन, पटना व बेंगलुरु के डॉक्टरों ने मिल कर मरीज का ऑपरेशन किया और डेढ़ घंटे के अंदर बिहारी केवट को पैर पर खड़ा कर दिया. बिहार ऑर्थोपेडिक्स एसोसिएशन की ओर से आयोजित दो दिवसीय सेमिनार के समापन के मौके पर यह सर्जरी की गयी.
बेंगलुरु से आये डॉ हर्षद एम शाह, पटना पीएमसीएच के डॉ राजीव आनंद, डॉ सामशुल हुडा, डॉ अमुल्या सिंह, डॉ आरएन सिंह की टीम ने मिल कर यह जटिल सर्जरी किया.
लाइव सर्जरी के माध्यम से सीनियर व जूनियर डॉक्टरों को भी दिखाया गया : नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के असिस्टेंट प्रोफेसर व हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ महेश प्रसाद ने बताया कि एलिजारोव तकनीक से मरीज का ऑपरेशन किया गया. इस तकनीक
का इस्तेमाल पटना में होता है. डॉ
महेश ने बताया कि बिहारी केवट के पैर को पहले रिंगफ्रेम में बांधा. इसमें से धागा डाल टूटी हड्डी को पिरोदिया गया. इससे केवल हड्डी जुड़ेगी साथ ही दोनों पैरों की साइज बराबर हो जायेगी. इसे लाइव सर्जरी के माध्यम से सीनियर व जूनियर डॉक्टरों को भी दिखाया गया.
वहीं पूरे दिन के इस प्रोसेस से गुजरने के बाद डॉ महेश प्रसाद ने कहा कि यह विश्वास पटना के कई डॉक्टरों को हो चुका है कि अब वह खुद ऐसे ऑपरेशन नियमित तौर पर कर सकते हैं. ऐसे में अब मरीजों को दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि बड़े शहरों में जाने की जरूर नहीं पड़ेगी. एनएमसीएच में यह सुविधा उपलब्ध है.
लाइव सर्जरी के बाद सवाल व जवाब :
लाइव सर्जरी देख रहे डॉक्टर्स के दिलोदिमाग में कई सवाल उठे, जिनका जवाब डॉ हर्षद एम शाह ने दिया. लाइव सर्जरी में वैसे ही ऑपरेशन किये गये जैसे ओटी में किये जाते हैं. वैसे ही उपकरण, रिंगफ्रेम, धागे और उसी तरह से मरीज को ओटी टेबल पर लिटाया गया. सबसे पहले बेसिक वायर पासिंग टेक्नीक, दूसरी बार में फ्रेम प्री-कंस्ट्रक्शन का काम और तीसरे चरण में मिड-साफ्ट टीबिया फ्रेक्चर एप्लीकेशन का इस्तेमाल कर हड्डी को जोड़ दिया गया.
क्या है एलिजारोव तकनीक
डॉ महेश प्रसाद ने बताया कि रसिया में 1921 में जन्मे प्रोफेसर गेवरिल एब्रामोविक एलिजारोव की इजादकी हुई यह तकनीक उन्हीं के सरनेम से फेमस है. एलिजारोव ने यह तकनीक तब ईजाद की जब आर्थो की विशेष ट्रेनिंग और उपकरण दिये बगैर ही उन्हें साइबेरिया के कुरगन में घायल सैनिकों का उपचार करने भेजा गया. उन्होंने वहां एक साइकिल की दुकान से सहयोग जुटा कर एक्सटर्नल फिक्सेटर तैयार किया
था. एलिजारोव में स्टील के बने कई छल्ले होते हैं, जो कई तारों के जरिये हड्डियों को आकार देने में मदद करते हैं.

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