बिहार में पांच हजार तक जुर्माना देकर छूट जायेंगे शराबी, कैबिनेट ने लगायी मुहर, जानें क्या है नयी नियमावली

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी कानून में थोड़ा सा बदलाव किया है. बिहार में अब अगर पहली दफे शराब पीकर पकड़े जायेंगे, तो दो से पांच हजार रूपये तक का जुर्माना देकर जेल जाने से छूट मिल सकती है. नीतीश कुमार की अध्यक्षता में सोमवार को हुई बिहार कैबिनेट की बैठक में इसकी नियमावली को मंजूरी दे दी गयी.

By Prabhat Khabar Print Desk | April 4, 2022 9:12 PM

पटना. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी कानून में थोड़ा सा बदलाव किया है. बिहार में अब अगर पहली दफे शराब पीकर पकड़े जायेंगे, तो दो से पांच हजार रूपये तक का जुर्माना देकर जेल जाने से छूट मिल सकती है. नीतीश कुमार की अध्यक्षता में सोमवार को हुई बिहार कैबिनेट की बैठक में इसकी नियमावली को मंजूरी दे दी गयी.

विधानमंडल से पास हो चुका है संशोधन कानून

सरकार ने कुछ दिनों पहले ही विधान मंडल से शराबबंदी कानून में संशोधन पास कराया था. कानून में संशोधन कर इसे थोड़ा नरम किया गया है. जमानत के प्रावधान को भी बदला गया है. साथ ही नये संशोधन के तहत यह फैसला लिया गया कि पहली दफा शराब पीने वालों को सरकारी मजिस्ट्रेट के पास पेश कर जुर्माना लेकर छोड़ दिया जायेगा.

मजिस्ट्रेट के पास जुर्माना देकर छूटने का अधिकार

कैबिनेट की बैठक में इस संशोधन के लिए नियम तय कर लिये गये हैं. सरकार ने तय किया है कि पहली दफे शराब पीते पकड़े गये व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के पास पेश किया जायेगा. वहां दो हजार से पांच हजार के बीच जुर्माना लेकर उसे छोड़ दिया जायेगा. यहां इस बात का ध्याय रखा जाना है कि मजिस्ट्रेट के पास जुर्माना देकर छूटने का अधिकार हरेक व्यक्ति को नहीं होगा. यह सरकार और पुलिस तय करेगी कि किस व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के पास पेश कर सिर्फ जुर्माना लेकर छोड़ दिया जाये.

दूसरी बार पकड़े जाने पर नहीं मिलेगी कोई राहत

वहीं, अगर पहली दफे के बाद कोई दूसरी दफे पकड़ा जाता है, तो उसे जेल जाना होगा औऱ उसके लिए दस साल की सजा का प्रावधान होगा. नीतीश सरकार के इस फैसले से जहां जेलों में शराब मामले में गिरफ्तार कैदियों की संख्या में कमी आयेगी, वहीं अदालतों में जमानत लेने के लिए फरियादियों की भीड़ भी कम होगी. पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी बिहार सरकार की इस बात को लेकर आलोचना की थी कि शराबबंदी कानून के कारण अदालतों में मुकदमों का बोझ बढ़ गया है जबकि इस कानून को बनाने से पहले सरकार ने अदालतों में ठोस आधारभूत संरचनाओं का विकास नहीं किया है.

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