बिहार यूनिवर्सिटी में दर्जनभर छात्र भी नहीं मिले भोजपुरी-मैथिली पढ़नेवाले, सीट भरना भी होगा मुश्किल

सोशल मीडिया पर भोजपुरी व मैथिली सहित क्षेत्रीय भाषाओं के सम्मान में बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, लेकिन हकीकत यह है कि युवा इन भाषाओं से दूर होते जा रहे हैं. बोलचाल में ये भाषाएं पिछड़ेपन की पहचान बनती जा रही हैं, तो उच्च शिक्षा में भी इनसे दूरी बढ़ रही हैं.

By Prabhat Khabar Print Desk | June 20, 2022 1:47 PM

धनंजय पांडेय, मुजफ्फरपुर. सोशल मीडिया पर भोजपुरी व मैथिली सहित क्षेत्रीय भाषाओं के सम्मान में बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, लेकिन हकीकत यह है कि युवा इन भाषाओं से दूर होते जा रहे हैं. बोलचाल में ये भाषाएं पिछड़ेपन की पहचान बनती जा रही हैं, तो उच्च शिक्षा में भी इनसे दूरी बढ़ रही हैं. बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में स्नातक (सत्र 2022-25) के लिए आ रहे आवेदन में इन विषयों में दाखिले के दावेदारी गिनती के ही हैं.

मैथिली व संस्कृत के लिए दो-दो आवेदन

16 जून देर शाम तक 1.29 लाख आवेदन आये थे. इसमें भाषा में हिंदी के लिए सबसे अधिक 17641 छात्र-छात्राओं ने आवेदन किया है, जबकि दूसरे स्थान पर अंग्रेजी के 3276 और तीसरे स्थान पर उर्दू के 1706 अभ्यर्थी है. संस्कृत पढ़ने में 215 छात्र- छात्राओं ने रुचि दिखायी है, तो बंगला के लिए 49 अभ्यर्थी है. इसके बाद भोजपुरी के लिए 11, मैथिली के लिए चार और परसियन के लिए दो अभ्यर्थी ही अब तक आवेदन किये हैं. इसी तरह स्नातकोत्तर के लिए भी मैथिली व संस्कृत के लिए दो-दो आवेदन आये हैं. हिंदी के लिए 144 और अंग्रेजी के लिए 156 आवेदन है.

हर तीसरा छात्र इतिहास का दावेदार

इतिहास के प्रति विद्यार्थियों की रुचि बढ़ी है. हर तीसरा छात्र इतिहास के लिए आवेदन कर रहा है. कुल 1.29 लाख आवेदन में 42279 अभ्यर्थियों ने इतिहास के लिए आवेदन किया है. पीजी के लिए भी इतिहास अब तक पहली पसंद है. सबसे अधिक 389 छात्रों ने आवेदन किया है. वहीं सबसे कम पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के लिए केवल एक आवेदन है.

ऑनलाइन सिस्टम बन रही बाधा

आवेदन के लिए बने ऑनलाइन सिस्टम के कारण क्षेत्रीय भाषाओं में छात्र-छात्राओं की संख्या कम हो रही है. बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के मैथिली विभाग के अध्यक्ष प्रो इंदुधर झा का कहना है कि जब विद्यार्थी आवेदन करने के लिए कॉलेज में आते थे, तो शिक्षक उन्हें मोटिवेट भी करते थे. विद्यार्थी खुद भी शिक्षकों से सलाह लेते थे. अब सारा सिस्टम ऑनलाइन हो गया, तो उन्हें मोटिवेट करना मुश्किल है. विद्यार्थी साइबर कैफे से ही आवेदन कर देते हैं. पैरेंट्स भी इतने सजग नहीं है कि बच्चों को सही जानकारी दे सकें. ऐसे में जो विषय चर्चा में रहते हैं, विद्यार्थी उसी का चयन करते हैं.

गूगल के सम्मान के बाद भी उपेक्षा

संस्कृत, भोजपुरी व मैथिली सहित 24 भाषाओं को हाल ही में गूगल ने सम्मान दिया, लेकिन ये घर में ही उपेक्षित है. बोलचाल से ये पहले ही गायब हो चुके हैं. अब पढ़ाई के प्रति भी लगाव कम हो रहा है. छात्रों का कहना है कि रोजगार या प्रतियोगी परीक्षाओं के लिहाज से इन विषयों में कोई स्कोप नहीं है. ऐसे में वे बड़ा रिस्क नहीं ले सकते.

स्नातक में अन्य विषयों के लिए आवेदन

  • एकाउंट्स-4847

  • साइकोलॉजी-12133

  • होम साइंस-11031

  • इतिहास-42279

  • भूगोल-13791

  • केमिस्ट्री-996

  • पॉलिटिकल साइंस-5234

  • गणित-2283

  • जूलॉजी-6710

  • फिजिक्स-2859

  • बॉटनी-1057

  • इकोनॉमिक्स-1624

  • संगीत-214

  • बिजनेस इनवॉयरमेंट-407

  • एआइएच एंड सी-132

  • सोशियोलॉजी-306

  • आर्ट्स जनरल-93

  • कॉमर्स जनरल-105

  • फिलॉसफी-72

  • बिजनेस फाइनेंस-149

  • कॉरपोरेट एडमिनिस्ट्रेशन-53

  • एलएसडब्ल्यू-03

  • इलेक्ट्रॉनिक्स-14

  • साइंस जनरल-16

  • पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन-01

(नोट: 16 जून तक आवेदन की स्थिति)

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