मुजफ्फरपुर : साड़ियों की ओट से घर बना बिना बिजली-पानी के रह रहे बाढ़पीड़ित

मुजफ्फरपुर : मारवाड़ी स्कूल का पैसेज. पैसेज पर चारों ओर साड़ियों की ओट. यह ओट यहां बनाये गये दो तंबुओं के बीच सीमा बांटने का काम करती है. इस साड़ी की ओट में एक परिवार तंगहाली के साथ दिन काट रहा है. ऐसे कई परिवार स्कूल परिसर में शरणार्थी के तौर पर हैं. ये सभी […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 19, 2019 7:29 AM
मुजफ्फरपुर : मारवाड़ी स्कूल का पैसेज. पैसेज पर चारों ओर साड़ियों की ओट. यह ओट यहां बनाये गये दो तंबुओं के बीच सीमा बांटने का काम करती है. इस साड़ी की ओट में एक परिवार तंगहाली के साथ दिन काट रहा है.
ऐसे कई परिवार स्कूल परिसर में शरणार्थी के तौर पर हैं. ये सभी लकड़ीढाही से आये हैं. इनके घर बाढ़ में डूब चुके हैं. लकड़ीढाही के बाढ़ पीड़ित मारवाड़ी स्कूल में रह रहे हैं. स्कूल के मैदान से लेकर एक टूटे खंडहर में यह अपना घर बना चुके हैं. जब तक इनके घर से पानी निकल नहीं जाता, यही इनका घर-द्वार है. स्कूल के एक खंडहर में परिवार के साथ यहां पहुंचे नवल राम ने बताया कि बाढ़ आने से उनका घर और सामान डूब गये. जो कुछ बचा है, उसे लेकर आये हैं. एक पुरानी चौकी व टूटा चूल्हा बचा है. नवल की गोद में सवा साल का उनका बेटा भी है.
नवल कचरा बीन कर जीवन-यापन करते हैं, लेकिन अभी इस मुसीबत से बचे रहना उनकी बड़ी चिंता है. स्कूल के एक छोर पर बनी साड़ियों की ओट के अंदर कुमकुम देवी खाना बनाते हुए हाथ से पंखा हिला रही थीं. उनके साथ उनकी बहू और पोती भी थीं. कुमकुम देवी ने कहा कि बुधवार की रात यहां आकर शरण ली है. पानी अचानक घर में घुस आया. यहां आने के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं था. सब साड़ी की ओट से घर बना लिये, तो हमलोगों ने भी इसी तरह एक घर तैयार कर लिया.
पिछले साल राहत मिली थी, इस बार कुछ नहीं…
मारवाड़ी स्कूल में अपने तीन महीने के बेटे के साथ पहुंचे मिट्ठू महतो ने कहा कि पिछले साल भी उनका घर पानी बढ़ने से डूब गया था. उस समय भी यहीं आकर शरण ली थी. उस समय प्रशासन काफी चौकस था और सभी सुविधा दी थी. लेकिन, इस बार अबतक यहां कोई नहीं आया है. एक चापाकल है जिससे पानी ठीक नहीं आ रहा है. बिजली की कोई व्यवस्था नहीं है. रात में पूरा अंधेरा रहता है.
ए सर, हमलो नाम नोट कर लीजिये न : स्कूल से राहत शिविर बने मारवाड़ी कॉलेज में पीड़ित मदद की आस में हैं. बाहर से किसी के आने पर पीड़ितों को लगता है कि कोई मदद करने आया है. चार साल के सौरभ को भी ऐसा ही लगा. प्रभात खबर की टीम जैसे ही वहां हालात का जायजा लेने पहुंची, सौरभ दौड़ते हुए आया और कहने लगा- ए सर, हमरो नाम नोट कर लीजिये न. हमलो पइसा मिल जायेगा.

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