उदाकिशुनगंज अनुमंडल में मक्का की खेती बनी किसानों की पहली पसंद
विरुद्ध लगभग 5 हजार हेक्टर में ही गेहूं की फसल किसान कर रहे हैं.
उदाकिशुनगंज अनुमंडल में लक्ष्य से अधिक हैक्टर में हो रही है मक्के की खेती,बीज के लिए अधिक कीमत चुकाने को विवश हो रहे किसान
कौनैन बशीर,
उदाकिशुनगंज.
अनुमंडल के किसानों के बीच मक्के की फसल के प्रति बहुत ज्यादा अभिरुचि बढ़ गई है. जबकि गेहूं की फसल के प्रति किसानों के रुझान में काफी कमी देखी जा रही है. पारंपरिक खेती गेहूं से कहीं काफी अधिक हेक्टर में मक्के की फसल उगाई जा रही है. खासकर अनुमंडल के आलमनगर, पुरैनी एवं चौसा बाढ़ प्रभावित प्रखंडों में तो मक्के की खेती जमकर किसान करते हैं. पूर्व में जहां किसान मक्के की खेती न के बराबर करते थे. वही अब इस फसल को लेकर पूरे अनुमंडल में किसान उत्साहित नजर आते हैं. कृषि विभाग के अनुसार प्रतिवर्ष 25 प्रतिशत से अधिक गेहूं के बदले मक्के की खेती हो रही है. अनुमंडल के सभी प्रखंडों में किसान गेहूं के बदले मक्के की अधिक खेती करने में जुटे हैं. इतना ही नहीं दलहन वह तिलहन फसलों के प्रति भी किसानों की रुझान कम होती जा रही है. कृषि विभाग द्वारा जहां 20 हजार से अधिक हेक्टर में गेहूं के फसल का लक्ष्य रखा गया है. वहीं इसके विरुद्ध लगभग 5 हजार हेक्टर में ही गेहूं की फसल किसान कर रहे हैं. जबकि रवि फसल मक्का की खेती लगभग 40 हजार हेक्टर में की गई है. वही दलहन फसलों में चना मटर सहित अन्य उत्पादन में भी किसानों की रुचि कम होती प्रतीत हो रही है. इसे साफ प्रतीत होता है कि किसानों की रुझान दिन प्रतिदिन मक्के की फसल की ओर बढ़ता जा रहा है. जबकि सरकार द्वारा किसानों को मक्के की फसल के लिए प्रोत्साहन के साथ-साथ मक्का आधारित उद्योग अनुमंडल में लगाया जाता तो मक्के की फसल का अनुमंडल में रिकॉर्ड उत्पादन हो सकता है. हालात यहां तक बन गए हैं कि किसान उच्च कीमत में मक्के की बीज खरीदने को विवश है. सरकारी खाद बीज की दुकानों पर उपलब्धता नहीं दिखाई जा रही है. जिससे किसान बाहर से ऊंची कीमत में मक्के के बीज खरीदने को भी विवश हैं.– अनुमंडल के मक्के देश में ही नहीं विदेशों में भी है मांग –
उदाकिशुनगंज अनुमंडल इलाके का मक्का का क्रेज अपने भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. तभी तो हर साल इलाके का मक्का भारत के विभिन्न राज्यों में तो जाती ही है इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, अफगानिस्तान, बांग्लादेश नेपाल में भी यहां का मक्का एक्सपोर्ट होता है. उदाकिशुनगंज अनुमंडल के मक्का किसान की मेहनत से कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तरांचल, गुजरात, उत्तर प्रदेश,राजस्थान सहित पड़ोसी देश नेपाल के अलावा ऑस्ट्रेलिया बांग्लादेश के व्यापारी मालामाल हो रहे हैं. वह किसानों से खरीदे गए मक्के से कई तरह के प्रोडक्ट को बनाकर मक्का के खरीद मूल्य से सैकड़ो गुना अधिक मूल्य में बेचकर मालामाल हो रहे हैं. यही नहीं मक्का से कई प्रदेशों के उद्योगपति अपने-अपने कई प्रॉडक्ट्स को तैयार करके अपने ब्रांड खुद तैयार करके करोड़ों रुपए कमा रहे हैं.– हर साल आने वाली बाढ़ की विशेषता के बाद भी होती है अच्छी उपज –
कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है हर साल खेतों में लहराते फसल या तो कोसी के बाढ़ से बर्बाद हो जाते हैं या फिर बाढ़ के डर से किसान खेतों को खाली छोड़ देते हैं. लेकिन एक बार जब बाढ़ का पानी गुजर जाता है तो फिर उन्हें जमीन पर कोसी का पानी इतनी उर्वरकता छोड़ जाती है कि मक्के की खेती कर किसान साल भर के लिए निश्चित हो जाते हैं. यही कारण है कि कोसी इस इलाके के जमीन पर बहुत अधिक मक्के की खेती की जाती है. अब मक्का का फसल की बुवाई अनुमंडल क्षेत्र में तेजी से चल रही है. हालात ऐसे बने हुए हैं कि उन्नत किस्म मक्के की बीज भी किसानों को उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं. इतना ही नहीं किसानों में मक्के की खेती की तरफ बढ़ते रुझान को देखते हुए मक्के की बीज की कालाबाजारी की बात भी सामने आने लगी है. किसान ऊंची कीमत पर बीज खरीदने को विवश हो रहा है.– अनुमंडल क्षेत्र में मक्का की रिकॉर्ड तोड़ होती है खेती –
उदाकिशुनगंज अनुमंडल में पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष रिकार्ड हेक्टर में मक्के की खेती किसानों द्वारा की जा रही है. पिछले वर्ष जहां 15 हजार से अधिक हेक्टर में मक्के की खेती की गई थी. वहीं इस वर्ष या बढ़कर 25 हजार हेक्टर से भी अधिक होने की संभावना दिख रही है. हर ओर किसान मक्के के बीच के लिए परेशान देख रहे हैं. बुआई में लेट ना हो उसे देखते हुए किसान को उंची कीमत में बीज खरीदने को भी बेवस हैं. जबकि अनुमंडल में मक्का आधारित किसी प्रकार का उद्योग नहीं है. ना ही किसानों को किसी प्रकार की सुविधा सरकार द्वारा मिल रही है. इसके बावजूद भी किसान इसकी जमकर खेती करने में जुटे हैं. देखा जा रहा है कि पिछले 10 वर्षों से मक्का की खेती में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. मक्के की खपत पशु चारा बनाने से लेकर बिस्किट जैसे प्रोडक्ट्स तैयार करने में बड़े पैमाने पर होती है.– मक्का ढुलाई से रेलवे भी होता है लाभान्वित –
रेल सूत्रों की माने तो बिहारीगंज,पूर्णिया,सहरसा, खगड़िया,मानसी, बदलाघाट रेलवे पॉइंट से अधिक मात्रा में मक्का को दूसरे प्रदेश भेजा जाता है. इससे रेलवे को करोड़ों का राजस्व प्राप्त होता है. रेलवे की माने तो दूसरे प्रदेशों में पंजाब के रायपुर उत्तरांचल के रुद्रपुर सिटी दक्षिण भारत के कर्नाटक, आंध्र प्रदेश,राजस्थान एवं तमिलनाडु के कई रेलवे स्टेशन पर मक्का भेजी जाती है. जहां बड़े-बड़े फैक्ट्री से मक्का का इस्तेमाल कर बिस्किट तैयार किया जाता है. साथ ही पशु चारा का भी निर्माण होता है.-कहते हैं कृषि पदाधिकारी –
अनुमंडल कृषि पदाधिकारी कुमारी कविता ने बताया कि अनुमंडल क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मक्का की खेती हो रही है. हर साल अनुमंडल क्षेत्र का मक्का विभिन्न राज्य में एक्सपोर्ट किया जाता है. क्षेत्र में ज्यादा रकबा में मक्के खेती की जाती है. इस वर्ष भी कई गुना अधिक खेती की संभावना दिख रही है. उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा मक्के के बीच उपलब्ध नहीं कराया जाता है. जबकि स्वीट कॉर्न एवं बेबी कॉर्न मक्के का बीज उपलब्ध कराया जाता है. जो वे लोग उपलब्ध करा रहे हैं. लेकिन पायनियर कंपनी का मक्के का बीज यहां के किसान अधिक खोज रहे हैं. जो खाद एवं बीज विक्रेता प्राइवेट कंपनी से मंगवाते है. उन्होंने कहा कि निर्धारित मूल्य से अधिक कि जब मांग की जाती है तो तत्काल निकट के कृषि पदाधिकारी से संपर्क कर शिकायत कर सकते हैं. शिकायत होने पर वैसे दुकानदार पर तत्काल कार्रवाई सुनिश्चित की जायेगी. इसके लिए सभी स्तर पर पदाधिकारी और कर्मी कार्यरत है. उन्होंने कहा कि दुकानदार किसी भी कीमत पर निर्धारित दर से अधिक रुपया नहीं ले सकते हैं. बीज के पैकेट पर कीमत लिखा हुआ रहता है. इससे अधिक की मांग करने पर तत्काल शिकायत करें जिस पर कार्यवाही विभाग द्वारा की जायेगी.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
