भ्रूण हत्या और फांसी, मानवाधिकार की सबसे बड़ी उलझन
मृत्युदंड मानवाधिकार का खुला उल्लंघन है.
-मानव होने मात्र से मिल जाता है मानवाधिकार : विशेषज्ञ जमुई. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर बुधवार को केकेएम कॉलेज के स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ गौरी शंकर पासवान की अध्यक्षता में परिचर्चा की गई. इस दौरान वक्ताओं ने मानवाधिकार के महत्व और वर्तमान चुनौतियों पर विस्तार से अपनी राय रखी. डॉ (प्रो) गौरी शंकर पासवान ने कहा कि भ्रूण हत्या और मृत्युदंड मानवाधिकार का खुला उल्लंघन है. आज भी कई देशों में फांसी की सजा दी जाती है, जिसमें अमेरिका, चीन, ईरान और सऊदी अरब सबसे आगे हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी मृत्युदंड पर रोक लगाने की मांग की है. उन्होंने कहा कि मानवाधिकार पाने के लिए किसी प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं होती, सिर्फ मानव होना ही काफी है. उन्होंने कहा कि मानवाधिकार जन्मसिद्ध और नैसर्गिक अधिकार है, जिसे कोई छीन नहीं सकता. एक नवजात शिशु भी जन्म लेते ही समानता, स्वतंत्रता, सम्मान और सुरक्षा के अधिकार का अधिकारी होता है. डॉ. पासवान ने कहा कि दुनिया में जहां-जहां युद्ध हो रहे हैं, वहां मानवाधिकारों का भारी हनन हो रहा है. महात्मा बुद्ध का “बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय” और ‘जियो और जीने दो’ का संदेश मानवाधिकार का आधार है. उन्होंने कहा कि डॉ. भीमराव आंबेडकर ने जीवनभर मानवाधिकारों, समानता, अस्मिता एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया और भारतीय संविधान के माध्यम से इन अधिकारों को मजबूत आधार दिया. वहीं, डॉ (प्रो.) डीके गोयल ने कहा कि केवल मानवाधिकार की स्थापना और कानून बनाना काफी नहीं है, बल्कि लोगों का इसके प्रति जागरूक होना भी आवश्यक है. मानवाधिकार सीधे तौर पर मानव अस्तित्व और विकास से जुड़ा है. उन्होंने कहा कि रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाएं मूल मानव अधिकार हैं. इनसे वंचित करना मानवाधिकार का हनन है. उन्होंने कहा कि जब तक नागरिक अपने अधिकारों और कर्तव्यों को नहीं समझेंगे, तब तक मानवाधिकारों की वास्तविक रक्षा संभव नहीं है. इस दौरान काफी संख्या में छात्र-छात्रा व अन्य लोग उपस्थित थे.
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