पितृपक्ष में कौआ, गाय, कुत्ता और चींटी को आहार देना क्यों है जरूरी, जानें गयाजी में सीता कुंड का महत्व

Pitru Paksha 2022 in Gaya: पितृपक्ष में गाय, कुत्ते, चींटी, कौवे आदि को आहार दने की परंपरा है. हमारे पूवर्ज पशु पक्षियों के माध्यम से हमारे निकट आते हैं और गाय, कुत्ता, कौवा और चींटी के माध्यम से पितृ आहार ग्रहण करते हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 11, 2022 11:15 AM

Pitru Paksha 2022 in Gaya: पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने से पितर की आत्मा की शांति मिलती है. मान्यता है कि गयाजी में पिंडदान करने पर पितर को स्वर्गलोग जाने की राह आसान हो जाता है. गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पृथ्वी के सभी तीर्थों में गया सर्वोत्तम है. पितृपक्ष के दौरान पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण, ब्राह्मण भोज और दान कर्म किया जाता है. पितृपक्ष में गाय, कुत्ते, चींटी, कौवे आदि को आहार दने की परंपरा है. कहा जाता है कि मोक्ष की नगरी गया जी में पितृपक्ष के मास में भगवान राम ने भी राजा दशरथ जी का पिंडदान किया था.

कौआ, गाय, कुत्ता और चींटी को आहार देने का महत्व

पितृपक्ष में पितर का श्राद्ध करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. हमारे पूवर्ज पशु पक्षियों के माध्यम से हमारे निकट आते हैं और गाय, कुत्ता, कौवा और चींटी के माध्यम से पितृ आहार ग्रहण करते हैं. श्राद्ध करते समय पितर को अर्पित करने वाले भोजन के पांच अंश निकाले जाते हैं. कुत्ता जल तत्त्व का प्रतीक है, चींटी अग्नि तत्व का, कौवा वायु तत्व का, गाय पृथ्वी तत्व का और देवता आकाश तत्व का प्रतीक हैं. इस प्रकार इन पांचों को आहार देकर हम पंच तत्वों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं.

माता सीता ने गया में किया था पिंडदान

भगवान श्रीराम और लक्ष्मण ब्राह्मण द्वारा बताए गए श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने के लिए नगर की ओर गये हुए थे. ब्राह्मण देव ने माता सीता को आग्रह किया कि पिंडदान का समय निकलता जा रहा है. यह सुनकर सीता जी की व्यग्रता भी बढ़ती जा रही थी. क्योंकि श्री राम और लक्ष्मण अभी नहीं लौटे थे. इसी उपरांत दशरथ जी की आत्मा ने उन्हें आभास कराया की पिंड दान का वक्त बीता जा रहा है. यह जानकर माता सीता असमंजस में पड़ गई. माता सीता ने समय के महत्व को समझते हुए यह निर्णय लिया कि वह स्वयं अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान करेंगी. उन्होंने फल्गु नदी के साथ साथ वहां उपसथित वटवृक्ष, कौआ, तुलसी, ब्राह्मण और गाय को साक्षी मानकर स्वर्गीय राजा दशरथ का का पिंडदान पुरी विधि विधान के साथ किया.

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सीता कुंड

विष्णुपद मंदिर के ठीक सामने फल्गु नदी है. उसके उसपार एक मंदिर है, उसमे काले पत्थर का एक हाथ बना हुआ है. यह हाथ अयोध्या के राजा श्रीराम चन्द्र जी के पिता का हाथ है. श्रीराम जी के वन जाने के बाद दशरथ जी का मृत्यु हुई और सीता जी ने यहां दशरथ जी की प्रेत आत्मा को को पिंड दिया था. माता सीता को इस बात से प्रफुल्लित हुई कि उनकी पूजा दशरथ जी ने स्वीकार कर ली है. इस क्रिया के उपरांत जैसे ही उन्होंने हाथ जोड़कर प्रार्थना की तो राजा दशरथ ने माता सीता का पिंडदान स्वीकार कर लिया.

संजीत कुमार मिश्रा

ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ

मो. 8080426594/9545290847

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