कल्पवास मेले में धर्म व अध्यात्म का लहराने लगा परचम
मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में विख्यात सिमरिया के उत्तरायणी गंगा तट पर प्रत्येक वर्ष सवा महीने तक लगने वाले कल्पवास मेले में धर्म व अध्यात्म का परचम लहरा रहा है.
बीहट. मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में विख्यात सिमरिया के उत्तरायणी गंगा तट पर प्रत्येक वर्ष सवा महीने तक लगने वाले कल्पवास मेले में धर्म व अध्यात्म का परचम लहरा रहा है.इस वर्ष कल्पवास की संस्कृति 7 अक्टूबर से शुरू होकर 17 नवम्बर तक चलेगा.यों तो सिमरिया धाम प्राचीन काल से ही विविध योगों में गंगा स्नान तथा कल्पवास के लिये प्रसिद्ध रहा है.कार्तिक महीनें में सिमरिया में एकबार फिर मंदिर की घंटियां,शंखों की गूंज और आरती के शब्दों के संग हवनादि से उठता धुंआ वातावरण को सुवासित करने लगा है.पूरा सिमरिया का गंगा तट तपोभूमि सदृश दिखता है.
सिमरिया का है पौराणिक महत्व
धार्मिक आचार्यों के अनुसार तीर्थराज प्रयाग में जो पौराणिक महत्व संगम घाट का है,वाराणसी में दशाश्वमेघ घाट का है, वही महत्व मिथिला में गंगा नदी अवस्थित सिमरिया धाम का है.यों तो सिमरिया धाम प्राचीन काल से ही विविध योगों में गंगास्नान के लिये प्रसिद्ध रहा है.यहां प्रति वर्ष कार्तिक महीना में पारम्परिक रूप से कल्पवास मास मेला का विधान है.जिसमें बिहार के अलावा अन्य राज्यों एवं नेपाल से श्रद्धालु यहां आकर गंगा सेवन,जप-तप व धार्मिक अनुष्ठान यज्ञादि संपन्न करते हैं.मास मेला की यह परम्परा अमृत वितरण काल से ही प्रचलित है.क्योंकि मिथिला नरेश राजा जनक भी यहां आकर कल्पवास किया करते थे.कार्तिक माह क्यों है विशेष
हिंदू पंचांग अनुसार हर वर्ष का आठवां महीना कार्तिक होता है.कार्तिक का महीना बारह महीनों में से श्रेष्ठ महीना है.पुराणों में कार्तिक मास को स्नान, व्रत व तप की दृष्टि से मोक्ष ओए कल्याण प्रदान करने वाला बताया गया है.कार्तिक मास में पूरे माह स्नान,दान, दीप दान, तुलसी विवाह, कार्तिक कथा का माहात्म्य आदि सुनते हैं.ऐसा करने से अत्यत शुभ फलों की प्राप्ति व पापों का नाश होता है.पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति इस कार्तिक माह में स्नान, दान तथा व्रत करता है तो उसके सारे पापों का अंत हो जाता है.भगवान को प्रिय है कार्तिक माह
साधु-संतों की मानें तो कार्तिक का यह महीना भगवान श्रीकृष्ण को अति प्रिय है.इस महीने में किया गया थोड़ा सा भजन भी बहुत ज्यादा फल देता है.भगवान श्री हरि विष्णु ने स्वयं कहा है कि कार्तिक माह मुझे अत्यधिक प्रिय है.वनस्पतियों में तुलसी,तिथियों में एकादशी और क्षेत्रों में श्री कार्तिक भी मुझे प्रिय हैं.जो प्राणी जितेन्द्रिय होकर इनका सेवन करता है, वह यज्ञ करने वाले मनुष्य से भी अधिक प्रिय लगता है, उसके समस्त पाप दूर हो जाते हैं.ऐसा करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल मिलता है.कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए.कार्तिक मास व्रत के स्नान का महत्व
आध्यात्मिक ऊर्जा एवं शारीरिक शक्ति संग्रह करने में कार्तिक मासका विशेष महत्व है.इसमें सूर्य की किरणों एवं चन्द्र किरणों का पृथ्वी पर पड़ने वाला प्रभाव मनुष्य के मन मस्तिष्क को स्वस्थ रखता है.इसीलिए शास्त्रों में कार्तिक स्नान और कथा श्रवण महात्म्य पर विशेष जोर दिया गया है.धार्मिक कार्यों के लिए यह मास सर्वश्रेष्ठ माना गया है.आश्विन शुक्ल पक्ष से कार्तिक शुक्ल पक्ष तक पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करना श्रेष्ठ माना गया है.श्रद्धालु गंगा तथा यमुना में सुबह-सवेरे स्नान करते हैं.जो लोग नदियों में स्नान नहीं कर पाते हैं,वह सुबह अपने घर में स्नान व पूजा पाठ करते हैं.लोक पर्वों का महीना है कार्तिक माह
सर्वमंगला के स्वामी चिदात्मनजी महाराज ने कहा कि कार्तिक माह में शिव,चण्डी,सूर्य तथा अन्य देवों के मंदिरों में दीप जलाने तथा प्रकाश करने का अत्यधिक महत्व माना गया है.इस माह में भगवान विष्णु का पुष्पों से अभिनन्दन करना चाहिए.तुलसी पूजा का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि तुलसी के पत्ते पंचामृत में डालने पर चरणामृत बन जाता है.तुलसी में अनन्त औषधीय गुण भी विद्यमान हैं.इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने इन्हें विष्णु प्रिया कहकर पूजनीय माना.देवशयनी एकादशी से देवोत्थान एकादशी तक छः माह तुलसी की विशेष पूजा होती है.कार्तिक में तो इनका अत्याधिक महत्व बढ़ जाता है.इस मास में आप जितना दान,तप,व्रत रखेंगे,आपके ऊपर उतना ही श्री हरि विष्णु की कृपा जरूर होगी.वह परम कृपा का भागीदार होगा.वहीं कार्तिक माह की षष्ठी को कार्तिकेय व्रत का अनुष्ठान किया जाता है स्वामी कार्तिकेय इसके देवता हैं.इस दिन अपनी क्षमतानुसार दान भी करना चाहिए.यह दान किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति को दिया जा सकता है.कार्तिक माह में पुष्कर, कुरुक्षेत्र तथा वाराणसी तीर्थ स्थान स्नान तथा दान के लिए अति महत्वपूर्ण माने गए हैं.कार्तिक माह में की गई पूजा व उपवास तीर्थ यात्रा के बराबर शुभ फल जितना होता है.कार्तिक माह में किए गये स्नान का फल,एक सहस्र बार किए गंगा स्नान के समान, सौ बार माघ स्नान के समान है.माना जाता है की जो फल कुम्भ व प्रयाग में स्नान करने पर मिलता है, उतना फल कार्तिक माह में किसी भी पवित्र नदी में स्नान करने से मिलता है.इस माह में अधिक से अधिक जप करना चाहिए और भोजन दिन में एक समय ही करना चाहिए.जो व्यक्ति कार्तिक के पवित्र माह के नियमों का पालन करते हैं, वह वर्ष भर के सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है.कार्तिक मास में दीपदान
इस दिन पवित्र नदियों में,मंदिरों में दीप दान किया जाता हैं.साथ ही आकाश में भी दीप छोड़े जाते हैं.यह कार्य शरद पूर्णिमा से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता हैं.दीप दान के पीछे का सार यह हैं कि इससे घर में धन आता हैं.कार्तिक में लक्ष्मी जी के लिए दीप जलाया जाता हैं और संकेत दिया जाता हैं अब जीवन में अंधकार दूर होकर प्रकाश देने की कृपा करें. कार्तिक में घर के मंदिर, वृंदावन, नदी के तट एवम शयन कक्ष में दीपक प्रज्वलित करने का बहुत अधिक महत्व होता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
