गेहूं कटाई के लिए नहीं मिल रहे मजदूर

कोरोना वायरस के चलते जैसे ही लॉकडाउन हुआ किसानों की परेशानी काफी बढ़ गयी है. अभी गेहूं कटाई का काम किसानों के सिर पर है कब मौसम बदल जाये कहना मुश्किल है. जिससे कारण गेहूं कटाई करना किसानों के लिए सिरदर्द बनते जा रहा है.

By Prabhat Khabar | April 2, 2020 6:14 AM

गढ़पुरा : कोरोना वायरस के चलते जैसे ही लॉकडाउन हुआ किसानों की परेशानी काफी बढ़ गयी है. अभी गेहूं कटाई का काम किसानों के सिर पर है कब मौसम बदल जाये कहना मुश्किल है. जिससे कारण गेहूं कटाई करना किसानों के लिए सिरदर्द बनते जा रहा है. कोरोना के प्रकोप से आम अवाम से लेकर मजदूर तबका के लोग भी भयाक्रांत हैं. जिसके कारण गेहूं कटाई के लिए मजदूर नहीं मिल पा रहे हैं. इसके विपरीत प्रशासन की ओर से कोरोना वायरस को लेकर एहतियातन कृषि कार्य में मशीन का प्रयोग करने के लिए कहा गया है. वहीं गढ़पुरा प्रखंड में रीपर मशीन की संख्या मात्र तीन है. इसके कारण रीपर मशीन वाले के यहां किसानों की नंबर लग जा रही है तब जाकर उनका गेहूं कट पाता है. धरमपुर निवासी किसान चेतन विप्लव ने बताया कि जो गेहूं आंधी बारिश के कारण धराशायी हो गयी थी .

उस खेत में मजदूर गेहूं काटने के लिए तैयार नहीं हैं. वहीं दूसरी तरफ गिरे हुए गेहूं को रीपर मशीन पकड़ नहीं पाता है. जिसके कारण गेहूं कटाई किसानों के लिए समस्या बनी हुई है. बुधवार को रजौर बहियार में रीपर मशीन से गेहूं कटाई करवा रहे रजौर के किसान राम सागर यादव एवं पंकज कुमार यादव ने बताया कि रीपर मशीन से दो हजार रुपये प्रति बीघा के हिसाब से गेहूं कटाई की जा रही है. वहीं बताया गया कि जो गेहूं आंधी बारिश के कारण धराशायी हो गयी थी. उस गेहूं को रीपर मशीन काटने में सक्षम नहीं है जो किसानों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है.वहीं क्षेत्र में रीपर मशीन की संख्या कम होने के कारण रीपर मशीन वालों के यहां किसानों दिन-रात चक्कर काट रहे हैं तब जाकर उनका नंबर आ पाता है. गेहूं कटाई के बाद फिर दौनी के लिए थ्रेसर वाले के यहां किसान चक्कर लगा रहे हैं. वहीं थ्रेसर वाले के साथ भी कई तरह की परेशानी है. लॉकडाउन होने के कारण वे लोग अपना थ्रेसर को ठीक नहीं करा सके थे. ऐसे में अगर मौसम ने करवट बदली तो किसान अपने पक्के फसल को घर ले जाने में काफी परेशान हो जायेंगे. इधर पशुपालक किसानों को भूसे की भी आवश्यकता है. भूसा अभी भी 13 से 15 सौ रुपये क्विंटल बेची जा रही है. कुल मिला कर चारों तरफ से किसान परेशानी के जाल में फंसे हैं.

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