Aurangabad News : नदियों के सूखने से प्रभावित हो रही घान की खेती

Aurangabad News: बिचड़ा डालने का समय बीत रहा और न बारिश हाे रही न ही नहरों में पानी आया

By AMIT KUMAR SINGH_PT | June 16, 2025 10:02 PM

औरंगाबाद/कुटुंबा. धान का बिचड़ा डालने का समय बीत रहा है़ यदि इस समय बिचड़ा नहीं डाला गया तो धान की फसल की रोपनी में बिलंब होगा, जिसका असर उपज पर पड़ता है. बारिश नहीं होने और नहरों में पानी नहीं आने से किसानों की चिंता बढ़ती जा रही है. आषाढ़ महिला चल रहा है इसमें बारिश नहीं होगी तो धान की फसल को काफी नुकसान होगा़ जिले की नहरों में भी पानी नहीं आया है़ नदियों के सूखने का सबसे बड़ा असर खेती-किसानी पर पड़ा है. पहले नदियों से पइन सैर, दोन, लट्ठा के जरिये खेतों की सिंचाई आसानी से हो जाती थी. अब नादियों के सूखने से नहरों में भी पानी नहीं आ रहा है. ताल तलैये सब बेकार हो गये हैं. भूजल स्तर के नीचे जाने से सतही मोटर भी काम नहीं कर रहे. किसानों को अब सबमर्सिबल पंपों पर निर्भर होना पड़ रहा है, जो महंगा और बोझिल विकल्प है. डीजल मोटर चलाने में भी दिक्कत हो रही है. स्थानीय किसान मृत्युंजय सिंह और शिवनाथ पांडेय ने अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए कहा कि खेती के लिए अब केवल बारिश और सबमर्सिबल ही बचे हैं. नदियों में पानी होता था, तो ऐसी समस्याएं नहीं थी. अब खेती करना मुश्किल हो गया है. नदियों के सूखने से न केवल फसल उत्पादन प्रभावित हो रहा है, बल्कि किसानों की आजीविका पर भी खतरा मंडरा रहा है. पहले नदी के किनारे सब्जी की खेती होती थी. अब नदियों के सूखने से भूमि बंजर होती जा रही है. ऐसे में किसानों के वजूद संकट में है.

पशुओं की संख्या में आयी अप्रत्याशित कमी

नदियों के सूखने का असर पशुपालन व व्यवसाय पर भी पड़ा है. पहले ग्रामीण इलाकों में लोग बड़ी संख्या में पशुपालन करते थे. नदियां पशुओं के लिए पानी का प्रमुख स्रोत थीं, जहां उन्हें नहलाने से लेकर पानी पिलाने तक का काम होता था. अब पेयजल संकट इतना गहरा गया है कि इंसानों के लिए ही पानी की व्यवस्था करना मुश्किल हो गया है. ऐसी स्थिति में पशुओं के लिए पानी की व्यवस्था करना और भी चुनौती पूर्ण है. पशुपालक प्रमोद पांडेय व मुकेश कुमार तथा रामकुमार सिंह बताते हैं कि पानी की इतनी किल्लत है कि ज्यादा पशु रखना अब संभव नहीं रह गया है. बस अपना घर के काम चलाने के लिए एक-दो दुधारू पशु ही रखे हैं. इस कारण कई पशुपालकों ने पशुपालन छोड़ दिया है, और ग्रामीण इलाकों में अब इक्का-दुक्का पशु ही दिखाई देते हैं.

क्या बताते है मौसम वैज्ञानिक

मौसम वैज्ञानिक डॉ अनूप चौबे ने कहा कि सूखी नदियां अब कचरे का ढेर बन चुकी हैं, जिससे दुर्गंध और प्रदूषण फैल रहा है. पहले जल प्रवाह के कारण कचरा बह जाता था और नदियां स्वच्छ रहती थीं. अब गंदगी के कारण नदियों का स्वरूप ही बदल गया है. नदियां इतनी गंदी हो गयी है कि अब इनके पास से गुजरना भी मुश्किल है. प्रथम दृष्टया नदिया शौचालय बन गयी है. यह पर्यावरण संरक्षण के लिए बहुत बड़ा खतरा है.

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