भगवत प्राप्ति का एकमात्र साधन शरणागति है : जीयर स्वामी जी महाराज
परमानपुर चातुर्मास व्रत स्थल पर कथा सुनने के लिए उमड़ रहे भक्त
आरा.
परमानपुर चातुर्मास व्रत स्थल पर श्रीलक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा अंतर्गत भगवान की प्राप्ति कैसे किया जाये उस पर चर्चा किये. स्वामी जी ने बताया कि भगवान को प्राप्त करने के लिए शरणागति ही एकमात्र साधन है, जिसके माध्यम से भगवान को प्राप्त किया जा सकता है. भगवान को प्राप्त करने का मतलब उनके बैकुंठ धाम में पहुंचने का साधन शरणागति है. इस दुनिया में जितने भी जीव हैं. उन जीवों का कल्याण शरणागति के माध्यम से संभव है.शरणागति प्राप्त करने का मतलब मोक्ष को प्राप्त करना होता है. मोक्ष का मतलब जीवन मरण की चक्र से या बंधन से मुक्त होना ही मोक्ष कहलाता है. द्वापर युग में जब भगवान श्रीराम धरती पर आये थे. उस समय जब भगवान श्रीराम श्रीलंका पर चढ़ाई कर रहे थे, तब तक बीच में ही विभीषण जी लंका छोड़कर भगवान श्रीराम के पास चले आये. उस समय सुग्रीव, लक्ष्मण जी आदि के द्वारा विभीषण जी को संदेह की दृष्टि से देखा गया था. कहीं, विभीषण रावण के पक्ष से युद्ध के नीति को समझने या किसी भी प्रकार के उद्देश्य से तो नहीं आ रहे है, लेकिन उस समय भगवान श्रीराम ने बहुत ही आदर सम्मान के साथ विभीषण को शिविर में लाने की बात कही थी. क्योंकि भगवान श्रीराम जानते थे कि विभीषण हमारा भक्त है. विभीषण हमारा शरणागति करने वाला है. विभीषण का जन्म भले ही लंका में हुआ था. भले ही विभीषण रावण के भाई थे, लेकिन विभीषण भगवान के भक्ति करने वाले थे. इसीलिए भगवान श्रीराम ने कृपा करते हुए विभीषण को लंका विजय से पहले ही लंका का राजा बनाकर अभिषेक कर दिया था. भगवान श्रीराम से भी अधिक कृपालु दयालु मां सीता जी थीं. क्योंकि जब रावण को राम जी के द्वारा मार दिया गया. उसके बाद हनुमान जी लंका में यह समाचार सीता जी को सुनाने के लिए पहुंचे, जहां पहुंचने के बाद सीता जी से कहते हैं कि माता रावण को मार दिया गया है. अब आपको जो राक्षसी स्त्रियां परेशान कर रही थीं. उनको भी मृत्यु दंड देना चाहिए. इस बात को सुनकर सीता जी हनुमान जी से कहने लगीं आप भी दंड के अधिकारी हैं. क्योंकि एकांतावास में किसी अकेली स्त्री के साथ आप एक बाल ब्रह्मचारी होकर भी हमसे बात कर रहे हैं. इसलिए आप पर भी दंड लगना चाहिए. हनुमान जी काफी सोच विचार में पड़ गये. हनुमान जी ने मां सीता से कहा माता हम जगत के पति भगवान श्रीराम की आज्ञा से उनका संदेश आपके पास लेकर आये हैं. इसीलिए मेरे ऊपर यह दोष नहीं लग सकता है. सीता जी ने कहा हनुमान जी इसी प्रकार से जो राक्षसी मुझे परेशान कर रही थीं. वह अपने स्वामी रावण के आदेश का पालन कर रही थीं. इसीलिए वह भी दंड की अधिकारी नहीं हैं. इस प्रकार से राम जी से कहीं अधिक सीता जी करुणामई, दयामयी हैं. अपने भक्तों पर कृपा करनेवाली हैं. क्योंकि रामा अवतार में भगवान श्रीराम अपने पत्नी पर भी दया नहीं किए थे. लोगों के कहने के कारण उनको वनवास दे दिए थे.इसी प्रकार से लक्ष्मण जी पर भी दया नहीं किए थे. क्योंकि जब राम जी काल से अंदर बात कर रहे थे. उस समय लक्ष्मण जी से बोले थे कि लक्ष्मण किसी को अंदर मत आने देना.उसी समय दुर्वासा ऋषि आ गये. जिनके कारण लक्ष्मण जी को अंदर जाना पड़ा.जिसके कारण राम जी ने उन्हें मृत्यु दंड दे दिया. राम जी ने लक्ष्मण जी को त्याग दिया, जिसके बाद लक्ष्मण जी जल में जाकर के अपने शरीर को जल में विलय कर लिए.इसी प्रकार से राम जी अपने भक्तों पर कृपा तो करते हैं लेकिन राम जी से अधिक माता सीता जी कृपालु, दयालु हैं. भक्तों पर कृपा करने वाली हैं. जिनका उदाहरण स्वामी जी ने रामायण के माध्यम से दिया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
