सचिन को देखकर पूनम राउत ने सीखा बल्लेबाजी का गुर

नयी दिल्ली : महिला विश्व कप फाइनल में कल इंग्लैंड के खिलाफ 86 रन की पारी खेलने वाली भारतीय बल्लेबाज पूनम राउत बचपन से सचिन तेंदुलकर की मुरीद रही है और उन्हें खेलता देखकर उसने बल्लेबाजी की कई बारीकियां सीखी है. पूनम की इस पारी के बावजूद भारत को फाइनल में नौ रन से पराजय […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 24, 2017 2:57 PM

नयी दिल्ली : महिला विश्व कप फाइनल में कल इंग्लैंड के खिलाफ 86 रन की पारी खेलने वाली भारतीय बल्लेबाज पूनम राउत बचपन से सचिन तेंदुलकर की मुरीद रही है और उन्हें खेलता देखकर उसने बल्लेबाजी की कई बारीकियां सीखी है. पूनम की इस पारी के बावजूद भारत को फाइनल में नौ रन से पराजय झेलनी पड़ी और उनके पिता गणेश राउत ने बताया कि इस दुख से वह अभी तक उबरी नहीं है और घर पर भी फोन नहीं किया.

गणेश ने मुंबई से बातचीत में कहा , ‘ ‘ हम भी उसके फोन का इंतजार कर रहे हैं. वह हार से इतनी दुखी है कि अभी तक हमसे भी बात नहीं की. ‘ ‘ पूनम ने टूर्नामेंट में नौ मैचों में 67 . 43 की औसत से 381 रन बनाये जिसमें एक शतक और दो अर्धशतक शामिल है और वह सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाजों की सूची में पांचवें स्थान पर रही. मुंबई की रहने वाली पूनम बचपन से तेंदुलकर की मुरीद रही है और उनके पिता ने बताया कि वह उनकी बल्लेबाजी देखने का कोई मौका नहीं छोडती थी.

उन्होंने कहा , ‘ ‘बचपन से वह सचिन की फैन रही है.जब भी मौका मिलता , उनकी बल्लेबाजी देखती और सीखने की कोशिश करती थी. उसके पास कई स्ट्रोक्स ऐसे हैं जो सचिन सर के बल्ले से देखने को मिलते थे. ‘ ‘ मुंबई के बांद्रा कुर्ला परिसर में अक्सर अर्जुन तेंदुलकर के साथ अभ्यास के दौरान पूनम को सचिन से मुलाकात का मौका भी मिला.

गणेश ने भारतीय टीम के प्रदर्शन को शानदार बताते हुए कहा कि इससे महिला क्रिकेट को लेकर लोगों की सोच बदलेगी. उन्होंने कहा , ‘ ‘ पूनम ने जब खेलना शुरु किया तो कई लोगों को अजीब लगता था कि ये लड़की होकर क्रिकेट क्यों खेलती थी लेकिन मुझे उसकी प्रतिभा पर भरोसा था. मैं खुद क्रिकेटर बनना चाहता था लेकिन गरीबी और हालात के कारण नहीं बन सका. जब मैंने पूनम को खेलते देखा तो मुझे लगा कि मेरा सपना मेरी बेटी पूरा करेगी. ‘ ‘ गणेश ने कहा , ‘ ‘ पूनम ने 1999 – 2000 में कोच संजय गायतोंडे के मार्गदर्शन में खेलना शुरु किया और बोरिवली में दोनों टीमों के लडकों के बीच वह अकेली लड़की खेलती थी. ‘ ‘

उन्होंने कहा कि कई लडकों के माता पिता ने उनसे कहा कि इसे लडकियों के साथ खेलने भेजो लेकिन कोच ने उन्हें इस पर गौर नहीं करने की सलाह दी. उन्होंने कहा , ‘ ‘ मैं या तो उसके मैच देखने नहीं जाता या दूर बैठता था. फिर 2004 में मुंबई की अंडर 14 और अंडर 19 लडकियों की टीम में उसका चयन हो गया. इसके बाद उसने मुडकर नहीं देखा. ‘ ‘

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