Saphala Ekadashi 2021: कब है साल 2021 की पहली एकादशी, सर्वत्र सफलता दिलाती है सफला एकादशी, जानें दिन-तारीख, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और इसका महत्व

Saphala Ekadashi 2021: हिन्दू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व होता है. हर महीने में पड़ने वाली एकादशी का अलग-अलग महत्व होता है. सभी एकादशी को अलग-अलग नाम से भी जाना जाता है. इस एकादशी का व्रत करने से सर्वत्र सभी कार्यो में सफलता प्राप्त होती है. पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी कहते हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 7, 2021 11:41 AM

Saphala Ekadashi 2021: हिन्दू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व होता है. हर महीने में पड़ने वाली एकादशी का अलग-अलग महत्व होता है. सभी एकादशी को अलग-अलग नाम से भी जाना जाता है. इस एकादशी का व्रत करने से सर्वत्र सभी कार्यो में सफलता प्राप्त होती है. पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी कहते हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति सफला एकादशी का व्रत रखता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

सफला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु जी के लिए रखा जाता है. एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल सफला एकादशी व्रत पौष माह कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है. मान्यता है कि पांच हजार वर्ष तप करने से जो फल प्राप्त होता है, वह इस एक एकादशी को करने से मिल जाता है ऐसा शास्त्रों का कथन है. इस साल सफला एकादशी 9 जनवरी 2021 को है.

सफला एकादशी 2021 शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारम्भ – 08 जनवरी 2021 की रात 9 बजकर 40 मिनट पर

एकादशी तिथि समाप्त – 09 जनवरी 2021 की शाम 7 बजकर 17 मिनट पर

एकादशी 2021 व्रत विधि

– सफला एकादशी के दिन स्नान करके सूर्यदेव को अर्घ्य दें.

– इसके बाद व्रत-पूजन का संकल्प लें.

– भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करें.

– भगवान को धूप, दीप, फल और पंचामृत आदि अर्पित करें.

– नारियल, सुपारी, आंवला और लौंग आदि श्रीहरि को अर्पित करें.

– अगले दिन द्वादशी पर व्रत खोलें.

– गरीबों को दान कराएं और उन्हें दान-दक्षिणा दें.

सफला एकादशी व्रत कथा

पद्म पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार, महिष्मान नाम का एक राजा था. इनका ज्येष्ठ पुत्र लुम्पक पाप कर्मों में लिप्त रहता था. इससे नाराज होकर राजा ने अपने पुत्र को देश से बाहर निकाल दिया. घर से निकालने के बाद लुम्पक जंगल में रहने लगा. पौष कृष्ण दशमी की रात में ठंड के कारण वह सो न सका. सुबह होते होते ठंड से लुम्पक बेहोश हो गया था. आधा दिन गुजर जाने के बाद जब बेहोशी दूर हुई तब जंगल से फल इकट्ठा करने लगा. इसके बाद शाम में सूर्यास्त के बाद यह अपनी किस्मत को कोसते हुए भगवान को याद करने लगा.

एकादशी की रात भी अपने दुखों पर विचार करते हुए लुम्पक सो न सका. इस तरह अनजाने में ही लुम्पक से सफला एकादशी का व्रत पूरा हो गया. इस व्रत के प्रभाव से लुम्पक सुधर गया और इनके पिता ने अपना सभी राज्य लुम्पक को सौंप दिया और खुद तपस्या के लिए चले गए. काफी समय तक धर्म पूर्वक शासन करने के बाद लुम्पक भी तपस्या करने चला गया और मृत्यु के पश्चात विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ.

Posted by: Radheshyam Kushwaha

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