Navratri 2025 Day 5 Skandamata Vrat Katha: नवरात्रि के पांचवें दिन जरूर करें मां स्कंदमाता की कथा का पाठ, दूर होंगे सभी दुख-दर्द 

Navratri 2025 Day 5 Skandamata Mata Vrat katha: नवरात्रि का पांचवां दिन मां स्कंदमाता को समर्पित है. इस दिन माता की पूजा-अर्चना और मां स्कंदमाता की व्रत कथा का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है. ऐसा करने से माता प्रसन्न होती हैं और आशीर्वाद प्रदान करती हैं.

By Neha Kumari | September 26, 2025 12:42 PM

Navratri 2025 Day 5 Skandamata Mata Vrat katha: हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है. नवरात्रि का हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूप को समर्पित है. नवरात्रि का पांचवां दिन मां दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप को समर्पित होता है. माता को मातृत्व, शक्ति और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन पूजा-पाठ करने और माता की कथा सुनने-पढ़ने से अत्यधिक फलदायी परिणाम प्राप्त होते हैं और घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है.

मां स्कंदमाता की व्रत कथा

शास्त्रों के अनुसार, प्राचीन काल में धरती पर तारकासुर नाम का एक शक्तिशाली राक्षस रहता था. अपनी असाधारण शक्ति और इच्छाओं को पूरा करने के लिए उसने भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या की. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उससे वरदान मांगने को कहा.

तारकासुर ने भगवान ब्रह्मा से अमरता का वरदान मांगा. ब्रह्मा जी ने उसे समझाया कि इस संसार में कोई भी अमर नहीं हो सकता और कोई अन्य वरदान मांगो. यह सुनकर तारकासुर थोड़ी निराश हुआ, लेकिन चतुराई दिखाते हुए उसने योजना बनाई. उसे ज्ञात था कि भगवान शिव कभी विवाह नहीं करेंगे और उनकी कोई संतान नहीं होगी.

इस विचार के आधार पर, तारकासुर ने ब्रह्मा जी से विशेष वरदान मांगा कि उसकी मृत्यु केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही हो. ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दे दिया.

वरदान मिलने के बाद तारकासुर का अहंकार और बढ़ गया. उसे लगने लगा कि अब कोई उसे नहीं मार सकता. उसने तीनों लोकों में आतंक फैलाना शुरू कर दिया और देवताओं, ऋषियों तथा मनुष्यों पर अत्याचार करने लगा. वह इतना शक्तिशाली हो गया कि स्वर्गलोक से देवराज इंद्र को भी पराजित कर दिया और खुद को तीनों लोकों का स्वामी घोषित कर दिया.

तारकासुर के अत्याचार से परेशान होकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास मदद मांगने गए. भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि तारकासुर को केवल भगवान शिव का पुत्र ही मार सकता है.

देवताओं ने मिलकर भगवान शिव से प्रार्थना की. भगवान शिव ने देवताओं की बात और संसार की दुर्दशा देखकर माता पार्वती से विवाह करने का निर्णय लिया. इसके बाद, भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ और उनके यहाँ एक तेजस्वी पुत्र का जन्म हुआ, जिसे कार्तिकेय या स्कंद कुमार के नाम से जाना गया.

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी केवल मान्यताओं और परंपरागत जानकारियों पर आधारित है. प्रभात खबर किसी भी तरह की मान्यता या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है.

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