Navratri 2021 Day 8: आज अष्टमी तिथि को होगी मां महागौरी की पूजा, इन नियमों का करें पालन

Navratri 2021 Day 8: देशभर में श्रद्धा और आदर के साथ नवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है. आदिशक्ति श्री दुर्गाजी का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं,नवरात्रि के आठवें दिन इनकी उपासना की जाती है. मान्यता है कि इस दिन पूजा अर्चना करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और आपके सभी दुखों को दूर करती हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 13, 2021 10:14 AM

आदिशक्ति श्री दुर्गाजी का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं,नवरात्रि के आठवें दिन इनकी उपासना की जाती है. इनकी उपासना से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं. उपासक सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है. उसके पूर्व संचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं और भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं रहते.

महाष्टमी व्रत का महत्व

हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने की अष्टमी तिथि को दुर्गा अष्टमी के रुप में मनाया जाता है. नवरात्रि में अष्टमी तिथि को महाष्टमी कहा जाता है. इस बार 13 अक्टूबर 2021 को अष्टमी तिथि पड़ रही है. इस दिन मां दुर्गा की महागौरी के रुप में पूजा होती है. इस दिन देवी के अस्त्रों के रुप में पूजा होती है इसलिए इसे कुछ लोग वीर अष्टमी भी कहते हैं. मान्यता है कि इस दिन पूजा अर्चना करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और आपके सभी दुखों को दूर करती हैं.

हवन के लिए शुभ मुहूर्त

अष्टमी के दिन मां दुर्गा के आठवें रूप यानी महागौरी की पूजा-अर्चना की जाती है. महाअष्टमी को एक विशेष समयकाल और मुहूर्त में पूजा की जाती है जिसे संधि पूजा कहा जाता है. इसका मतलब है कि जब अष्टमी समापन की ओर हो और नवमी शुरू होने वाली हो, उस दौरान पूजा करना शुभ माना जाता है. दोनों के बीच करीब 48 मिनट का अवधि रहती है. हवन के लिए शुभ मुहूर्त शाम 07:42 से 08.07 के बीच का रहेगा.

महागौरी की भोग विधि:

इस दिन मां को नारियल चढ़ाया जाता है। इस दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व है

महागौरी की कथा:

पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां पार्वती ने शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अपने पूर्व जन्म में कठोर तपस्या की थी तथा शिव जी को पति स्वरूप प्राप्त किया था। शिव जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए मां ने जब कठोर तपस्या की थी तब मां गौरी का शरीर धूल मिट्टी से ढंककर मलिन यानि काला हो गया था. इसके बाद शंकर जी ने गंगाजल से मां का शरीर धोया था. तब गौरी जी का शरीर गौर व दैदीप्यमान हो गया. तब ये देवी महागौरी के नाम से विख्यात हुईं.

आराधना मंत्र-

श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

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