Hanuman Jayanti 2020 : जब हनुमान पर लगा दी शनि ने साढ़ेसाती, जानें शनि के प्रकोप से बचने हनुमानजी के शरण में जाने की क्यों दी जाती है सलाह

ऐसी मान्यता है कि जिस दिन हनुमान जी का जन्म hanuman jayanti 2020 हुआ था वह चैत्र पूर्णिमा chaitra purnima 2020 का ही दिन था इसलिए इस दिन को हनुमान जयंती के रुप में मनाया जाता है.इस वर्ष 08 अप्रैल दिन बुधवार को हनुमान जयंती है. वहीं शनि देव को न्याय का देवता और सूर्य पुत्र कहा जाता है. इन्हे कर्मफल दाता के साथ ही पितृ शत्रु भी माना जाता है. शनि देव को कठोर दंड देने वाला देवता माना जाता है और कहा जाता है कि यदि किसी जातक पर शनि की साढ़ेसाती एक बार प्रारंभ हो जाए तो पूरे साढ़े सात साल बाद ही इसका पीछा छोड़ती है. ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार शनि की साढ़ेसाती लगे जातक को हनुमान जी की भक्ती की सलाह दी जाती है. दरअसल, एक बार शनि देव ने हनुमान जी को भी अपने साढ़ेसाती के प्रभाव में लेना चाहा था और इसी से जुड़ी है यह पूरी कहानी की शनि की साढ़ेसाती लगे जातक को हनुमान जी के शरण में क्यों जाने की सलाह दी जाती है. आइये जानते हैं इसकी पूरी कहानी...

By ThakurShaktilochan Sandilya | April 6, 2020 12:27 PM

ऐसी मान्यता है कि जिस दिन हनुमान जी का जन्म hanuman jayanti 2020 हुआ था वह चैत्र पूर्णिमा chaitra purnima 2020 का ही दिन था इसलिए इस दिन को हनुमान जयंती के रुप में मनाया जाता है.इस वर्ष 08 अप्रैल दिन बुधवार को हनुमान जयंती है. वहीं शनि देव को न्याय का देवता और सूर्य पुत्र कहा जाता है. इन्हे कर्मफल दाता के साथ ही पितृ शत्रु भी माना जाता है. शनि देव को कठोर दंड देने वाला देवता माना जाता है और कहा जाता है कि यदि किसी जातक पर शनि की साढ़ेसाती एक बार प्रारंभ हो जाए तो पूरे साढ़े सात साल बाद ही इसका पीछा छोड़ती है. ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार शनि की साढ़ेसाती लगे जातक को हनुमान जी की भक्ती की सलाह दी जाती है. दरअसल, एक बार शनि देव ने हनुमान जी को भी अपने साढ़ेसाती के प्रभाव में लेना चाहा था और इसी से जुड़ी है यह पूरी कहानी की शनि की साढ़ेसाती लगे जातक को हनुमान जी के शरण में क्यों जाने की सलाह दी जाती है. आइये जानते हैं इसकी पूरी कहानी…

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कैसे लगी हनुमान पर शनि की साढ़ेसाती :

एक पौराणिक कथा के अनुसार , एक बार पवनसूत हनुमान जी अपने आराध्य देव भगवान श्री राम का स्मरण कर रहे थे.उसी समय न्याय के देवता शनि देव हनुमान जी के पास आए और कडी आवाज में बोले कि मैं आपको सावधान करने के लिए यहांआया हूं कि भगवान श्री कृष्ण ने जिस क्षण अपनी लीला का अंत किया था. उसी समय से इस पृथ्वी पर कलयुग का प्रभुत्व कायम हो गया था. इस कलयुग में कोई भी देवता पृथ्वीं पर नहीं रहते हैं. क्योंकि इस पृथ्वीं पर जो भी व्यक्ति रहता है. उस पर मेरी साढे़साती की दशा अवश्य ही प्रभावी रहती है. शनिदेव ने हनुमान से धमकी भरे स्वर में कहा कि मेरी यह साढ़ेसाती की दशा आप पर भी प्रभावी हो जाएगी.

शनि देव की इस बात सुनकर हनुमान जी ने उनसे श्री राम की महानता का बखान करते हुए कहा कि जो भी प्राणी या देवता भगवान श्री राम के चरणों में अपनी शरण ले लेते हैं उन पर काल का भी प्रभाव नहीं होता है. यमराज भी राम भक्त के सामने विवश हो जाते हैं. इसलिए आप मुझे छोड़कर कहीं और चले जाएं क्योंकि मेरे शरीर पर केवल श्री राम ही प्रभाव डाल सकते हैं. यह सुनकर शनिदेव ने कहा कि मैं सृष्टिकर्ता के विधान से विवश हूं. आप भी इसी पृथ्वीं पर रहते हैं तो आपको भी मेरे प्रभुत्व के दायरे मे आना होगा और इसलिए आप पर मेरी साढ़ेसाती आज इसी समय से प्रभावी हो रही है. मैं आज और इसी समय से आपके शरीर पर आ रहा हूं और इसे कोई भी नहीं टाल सकता है. शनि देव की बात सुनकर हनुमान जी बोले कि मैं आपको नहीं रोकूंगा, आप अवश्य आएं. और शनिदेव हनुमान जी के मस्तक पर जाकर बैठ गए. हनुमान जी के मस्तक में इससे खुजली होने लगी. और हनुमान जी ने अपनी उस खुजली को मिटाने के लिए बड़ा सा पर्वत उठाकर अपने सिर पर रख लिया . शनिदेव उस पर्वत से दबकर घबरा गए और हनुमान जी से बोले कि आप यह क्या कर रहे हैं . हनुमान जी ने कहा कि आप सृष्टि कर्ता के विधान से विवश हैं और मैं अपने स्वाभाव से विवश हूं.मैं अपने मस्तक की खुजली इसी प्रकार से मिटाता हूं. आप अपना काम करते रहें मैं बाधक नहीं बनूंगा पर मैं भी अपना काम करता रहूंगा. यह बोलकर हनुमान जी ने एक और बड़ा सा पर्वत अपने मस्तक पर रख लिया. पर्वतों से दबे हुए शनिदेव अब पूरी तरह से चिंतित हो गए थे. उन्होंने हनुमान जी से निवेदन किया कि आप इन पर्वतों को नीचे उतारें मारुतिनंदन मैं आपसे संधि करने के लिए तैयार हूं.शनिदेव के ऐसा कहने पर हनुमान जी ने एक और पर्वत उठाकर अपने सिर पर रख लिया था.

क्यों है यह मान्यता कि हनुमान जी की पूजा से दूर हो जाती है शनि की साढ़ेसाती :

हनुमान द्वारा अपने मस्तक पर तीसरे पर्वत को रखते ही उससे दबकर शनि देव दर्द से चिल्लाकर बोले कि मुझे छोड़ दो मैं कभी भी आपके करीब नहीं आऊंगा. लेकिन फिर भी हनुमान जी नहीं माने और एक पर्वत और उठाकर अपने सिर पर रख लिया. जब शनिदेव से सहन नहीं हुआ तो हनुमान जी से विनती करने लगे और कहने लगे कि मुझे माफ करें और अब मुक्त करें हनुमान मैं आप तो क्या उन लोगों के समीप भी नहीं जाऊंगा जो आपका स्मरण करते हैं.अब कृपया करके आप मुझे अपने सिर से नीचे उतर जाने दीजिए. मैं प्रस्थान कर जाउंगा. शनिदेव के यह वचन सुनकर हनुमान जी ने अपने सिर से सारे पर्वतों को हटाकर उन्हें मुक्त कर दिया था. तब से शनिदेव हनुमान जी के समीप नहीं जाते थे और हनुमान जी के भक्तो को भी वह नहीं सताते हैं. जिनपर हनुमान जी की कृपा रहती है उन्हे शनि प्रकोप नहीं सताता है.

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