Chhath Mahaparv 2025, Surya Chalisa: कल होगा छठ महापर्व का शुभारंभ, जरूर करें सूर्य चालीसा का पाठ, सूर्य देव बरसाएंगे अपार कृपा
Chhath Puja 2025: छठ पूजा के समय सूर्य देव की आराधना की जाती है. सूर्य देव के आशीर्वाद से सुख-शांति और रोगों से मुक्ति मिलती है. इस समय सूर्य चालीसा का पाठ करना बेहद शुभ माना जाता है. यहाँ पढ़ें सूर्य चालीसा के लिरिक्स.
Chhath Mahaparv 2025: 25 अक्टूबर से चार दिवसीय महापर्व छठ पूजा का प्रारंभ हो रहा है. यह हिंदू धर्म के सबसे कठिन पर्वों में से एक है. इस पर्व के दौरान व्रती 36 घंटे का निर्जला उपवास करती हैं. मान्यता है कि इस पर्व को करने से संतान की आयु लंबी होती है या जिन लोगों की संतान नहीं है, उन्हें संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है. साथ ही घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है. इस समय भगवान सूर्य और छठी मईया की पूजा-अर्चना की जाती है. पर्व का मुख्य हिस्सा सूर्य को अर्घ्य देना है. पर्व के दौरान सूर्य चालीसा का पाठ करना बेहद शुभ और फलदायक माना जाता है. कहते हैं कि इससे सूर्य देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है. यहां सूर्य चालीसा के लिरिक्स प्रस्तुत किए गए हैं.
सूर्य चालीसा – Shree Surya Chalisa
दोहा
कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग।।
चौपाई
जय सविता, जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।
भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर।
विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।
अम्बरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।
सहस्रांशु, प्रद्योतन, कहि-कहि, मुनिगण होत प्रसन्न मोदलहि।
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साति चढ़ि रथ पर।
मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।
उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरंदर लज्जित होते।
मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता,
सूर्य, अर्क, खग, कलिहर, पूषा, रवि,
आदित्य, नाम लई, हिरण्यगर्भाय नमः कहिके।
द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।
चार पदारथ सो जन पावै, दुख-दारिद्र अघ-पुंज नसावै।
नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।
सेवै भानु तुम्हिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।
बारह नाम उच्चारण करते, सहस जनम के पाप टरते।
उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छने।
छन सुत-जुत परिवार बढ़तु है, प्रबल मोह को फंद कटतु है।
अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते।
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देश पर दिनकर छाजत।
भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित।
ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा।
पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर।
युगल हाथ पर रक्षा कारण, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।
बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि में हंस, रहत मन मुदभर।
जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।
विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।
सहस्रांशु, सर्वांग संभारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।
अस जोजजन अपने न माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।
दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मन में जापै।
अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनंद भरता।
ग्रह गण ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रणवौं ताही।
मन्द सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों।
परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।
अरुण माघ में सूर्य फाल्गुन, मध वेदांग नाम रवि उदय।
भानु उदय वैशाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।
यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं।
दोहा
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।
सुख-सम्पत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य।।
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