नौ दिनों में व्रत-साधना का इसलिए है विधान

वर्ष के दोनों नवरात्र के दौरान ऋतु परिवर्तन होता है. आश्विन नवरात्र के साथ शीत ऋतु का आगमन और चैत्र नवरात्र के साथ ग्रीष्म ऋतु का. इस तरह नवरात्र ऋतुओं का संक्रमण काल है. ऋषि-मुनियों ने आनेवाले मौसम के लिए शरीर को तैयार करने तथा रोग-प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने के उद्देश्य से शरीर को विकार […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 13, 2018 2:03 AM
वर्ष के दोनों नवरात्र के दौरान ऋतु परिवर्तन होता है. आश्विन नवरात्र के साथ शीत ऋतु का आगमन और चैत्र नवरात्र के साथ ग्रीष्म ऋतु का. इस तरह नवरात्र ऋतुओं का संक्रमण काल है. ऋषि-मुनियों ने आनेवाले मौसम के लिए शरीर को तैयार करने तथा रोग-प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने के उद्देश्य से शरीर को विकार मुक्त बनाने पर जोर दिया है.
इसलिए नौ दिनों में व्रत और साधना का विधान बनाया. घर में आप या आपका जीवनसाथी व्रत रखता है, तो पूर्ण सहयोग दें. इस दौरान यौनाचरण से दूर रहें, अन्यथा मन विचलित होने से व्रत भंग होगा. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्रत के कारण शरीर में ऊर्जा की कमी होती है, इसलिए इन दिनों में संयम रखने की बात को धर्म से जोड़कर देखा जाता है.
धार्मिक दृष्टिकोण कहता है कि नवरात्र में माता धरती पर रहती हैं, तो स्त्रियों में उनका अंश होता है. इसलिए सुहागिन महिलाओं की भी पूजा होती है और उन्हें सुहाग सामग्री देने की परंपरा है. इसलिए नवरात्र में संयम और ब्रह्मचर्य पालन जरूरी माना गया है.

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