मिश्रित मछली पालन से किसान बनें आत्मनिर्भर, 9 माह में करीब 5 हजार किलो मछली का होगा उत्पादन

मिश्रित मछली पालन से नौ महीने में तीन से पांच हजार किलो मछली का उत्पादन होगा. किसान एक हेक्टेयर वाले जलक्षेत्र में देसी और विदेशी दोनों प्रकार की मछलियों का मिश्रित पालन कर सकते हैं. इससे लाखों की आमदनी हो सकती है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 27, 2022 12:53 PM

Jharkhand News: गुमला जिले में मछली पालक किसानों की कमी नहीं है. जिले भर में पांच हजार किसान मछली पालन से जुड़े हुए हैं, जो विभिन्न किस्मों की मछलियों का डैम, तालाब और डोभा में पालन करते हैं. कई लोग कुओं में भी मछली पालन करते हैं. ऐसे किसानों के लिए मिश्रित मछली पालन मील का पत्थर साबित हो सकता है. मिश्रित मछली पालन में एक ही जगह पर भारतीय मछलियों में कतला, रोहू एवं मृगल तथा विदेशी मछलियों में सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प एवं कॉमर्न कार्प जैसी मछलियों का पालन कर उत्पादन किया जा सकता है.

मछली पालन से सालाना लाखों की आमदनी

महज एक हेक्टेयर जल क्षेत्र में उचित मात्रा में रासायनिक खाद, जैविक खाद, अच्छे मत्स्य बीज का संचय और पूरक आहार का प्रयोग करते हैं, तो महज आठ से नौ माह में ही तीन से पांच हजार किलोग्राम तक मछली का उत्पादन किया जा सकता है. तालाब में आठ-नौ माह तक संचय करने के बाद बिक्री करने के लिए मछलियों को तालाब से निकाल सकते हैं. जिससे मछली पालक किसान महज एक साल में ही लाखों रुपये की कमाई कर सकते हैं.

उचित आहार से मछलियों में होगी बढ़ोतरी

इसके लिए तालाब में मछली बीज के संचय से पहले तालाब की भौतिक स्थिति में सुधार, जलीय पौधों की सफाई, अनावश्यक मछलियों तथा शुत्र मछलियों का उन्मूलन, पानी को अनुकूल रखने, तालाब में उर्वरक का प्रयोग करने के बाद मछली बीज का संचय एवं उचित मात्रा में उर्वरक का प्रयोग करने सहित मछलियों को कृत्रिम आहार देने के साथ ही मछली की वृद्धि की जांच जरूरी है.

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मछली संचय से पूर्व तालाब की तैयारी जरूरी

इस संबंध में मत्स्य प्रसार पदाधिकारी सीमा टोप्पो ने बताया कि मछली संचय से पूर्व तालाब की तैयारी बहुत जरूरी है. मत्स्य पालन की तैयारी शुरू करने से पहले यह आवश्यक है कि तालाब के सभी बांध मजबूत और पानी का प्रवेश एवं निकास का रास्ता सुरक्षित हो, ताकि बरसात के मौसम में तालाब को नुकसान नहीं पहुंचे और तालाब में पानी के आने-जाने के रास्ते से बाहरी मछलियों का प्रवेश न हो और तालाब में संचित मछलियां बाहर न भाग जाए. तालाब की भौतिक स्थिति में सुधार करने के साथ ही जलीय पौधों की सफाई भी कर लें, क्योंकि तालाब में उगे जलीय पौधों में मछलियों की शत्रुओं को आश्रय मिलता है. साथ ही जलीय पौधे तालाब की उर्वरता को भी सोख लेते हैं.

अनावश्यक और मांसाहारी मछलियों का उन्मूलन जरूरी

तालाब में रहने वाले अनावश्यक मछलियों तथा शत्रु मछलियों का उन्मूलन जरूरी रहता है. पोठिया, धनहरी, चंदा, चेलना, खेसरा आदि अनावश्यक और बोआरी, टेंगरा, गरई, सौरा, कवई, बुल्ला, पबदा, मांगुर आदि मछलियां मांसाहारी होती है. जो तालाब में पालने के लिए डाली गयी मछलियों को उपलब्ध कराए गए कृत्रिम तथा प्राकृतिक आहार में हिस्सा बांटती है. साथ ही संचित जीरो साइज की मछलियों को भी खा जाती है. इसलिए अनावश्यक और मांसाहारी मछलियों का उन्मूलन जरूरी है. तालाब में बार-बार जाल लगाकर अनावश्यक और मांसाहारी मछलियों का उन्मूलन किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त अनावश्यक और मांसाहारी मछलियों का उन्मूलन रासायनिक और जैविक खाद के प्रयोग से भी किया जा सकता है. महुआ की खल्ली को तालाब में दो हजार से 2500 किग्रा प्रति हेक्टेयर/मीटर की दर से प्रयोग करने पर सारी मछलियां मर जाती है. इसके अतिरिक्त ब्लीचिंग पाउडर का प्रयोग 200 किग्रा/मीटर की दर से प्रयोग करने पर भी मछलियां मर जाती है.

थोड़ा क्षारीय पानी मछली की वृद्धि व स्वास्थ्य के लिए है अच्छा

तालाब के पानी को मछली पालन के लिए अनुकूल रखना जारी है. तालाब के पानी को थोड़ा क्षारीय होना मछली की वृद्धि एवं स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है. तालाब में मछली बीज डालने से लगभग एक महीने पहले तालाब में एक बार 500 किग्रा भखरा चूना प्रति हेक्टेयर जलक्षेत्र में छिड़काव जरूरी है. अधिक अम्लीय जल वाले तालाबों में और भी अधिक भखरा चूना की आवश्यकता होती है.

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उर्वरकों के प्रयोग से मछलियों के भोज्य पदार्थों में होती है वृद्धि

तालाब में उर्वरक का प्रयोग संतुलित मात्रा में करने की जरूरत पड़ती है. तालाब में जैविक तथा रासायनिक उर्वरक के प्रयोग से तालाब में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न वाली मछलियों के भोज्य पदार्थ में कई गुणा वृद्धि हो जाती है. मछली बीज संचय से 15-20 दिन पहले तालाब में पांच हजार किग्रा कच्चा गोबर, 100 किग्रा अमोनियम सल्फेट और 75 किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट प्रति हेक्टेयर जलक्षेत्र की दर से छिड़काव किया जाना चाहिये. यदि तालाब में महुआ की खल्ली एक माह पूर्व प्रयोग की गयी हो तो गोबर 2500 किग्रा का ही प्रयोग करें.

मछली के किस्मों का चयन जरूरी

तालाब में मछली बीज संचय के लिए मछलियों की किस्मों का चयन अधिक जरूरी है. उन किस्मों की मछलियों का चयन करें. जिनकी भोजन की आदत एकदूसरे से अलग हो और तालाब के प्रत्येक स्तर पर पाये जाने वाले भोज्य पदार्थों का प्रयोग कर सके. ऐसी स्थिति में भारतीय मछलियां कतला, रोहू तथा मृगल एवं विदेशी मछलियों में से सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प और कॉमन कार्प को एकसाथ संचय किया जा सकता है. साधारणत: सम्मिलित रूप से पांच से छह हजार की संख्या में तीन से चार इंच के आकार का मछली बीज या 10-12 हजार की संख्या में एक-दो इंच के आकार का मछली बीज प्रति हेक्टेयर जलक्षेत्र के दर से संचय किया जा सकता है.

अच्छा उत्पादन के लिए उर्वरक एवं पूरक आहार का प्रयोग करें

तालाब में मछली बीज संचय करने के बाद तालाब से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए तालाब में उचित मात्रा में उर्वरक एवं पूरक आहार का प्रयोग जरूरी है. तालाब में मछली बीज डालने के बाद प्रतिमाह दो हजार किग्रा कच्चा गोबर, 100 किग्रा अमोनियम सल्फेट और 75 किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट प्रति हेक्टेयर जलक्षेत्र की दर से प्रयोग किया जाना चाहिये. रासायनिक खाद का प्रयोग गोबर के प्रयोग के 10-15 दिनों के बाद किया जाना उचित होता है. रासायनिक खाद के प्रयोग में चाहिये कि जब भी तालाब का रंग गहरा हरा हो जाये और पानी में थोड़ा दुर्गंध महसूस हो तब सभी खरादों का प्रयोग बंद कर तालाब में 100 किग्रा चूना प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. जैविक खाद (गोबर) के प्रयोग के समय कुल मात्रा का चार प्रतिशत भूखरा चूना भी साथ में मिलाकर भी छिड़काव किया जा सकता है.

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पौष्टिक आहार में इनका प्रयोग जरूरी

मछलियों की वृद्धि के लिए सरसों, राई या मूंगफली की खल्ली एवं चावल का कुंडा या गेहूं का चोकर बराबर मात्रा में मिलाकर मछलियों को पौष्टिक आहार के रूप में देना जरूरी है. मछली बीज तालाब में डालने के अगले तीन महीने तक दो किग्रा प्रतिदिन, चार से छह महीने तक पांच किग्रा प्रतिदिन, सातवें से नौंवे महीने तक आठ किग्रा प्रतिदिन तथा शेष महीने 12 किग्रा प्रतिदिन प्रति हेक्टेयर की दर से कृत्रिम भोजन का छिड़काव सूखा या एक दिन पानी में गीला कर तालाब में एक निश्चित स्थान पर किया जाना चाहिये. यदि ग्रास कार्प का बीज भी डाला गया है तो प्रतिदिन चार-पांच किग्रा हाइड्रीला, बरसीम, नेपेयर या किसी तरह का भी मुलायम घास तालाब में पूरक आहार के रूप में ग्रास कार्प को दिया जाना चाहिए.

रिपोर्ट : जगरनाथ पासवान, गुमला.

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