चीन की चालाकियों पर रहे नजर

दोनों देशों की सहमति होने पर रूस मध्यस्थता की पेशकश कर रहा है. यह सबसे महत्वपूर्ण विकल्प हो सकता है, क्योंकि भारत की रूस के साथ अरसे पुरानी घनिष्ठता रही है.

By अशोक मेहता | September 9, 2020 7:38 AM

मेजर जनरल (सेवानि)अशोक मेहता, रक्षा विशेषज्ञ

delhi@prabhatkhabar.in

चीनी सेना की अक्रामता के जवाब में भारतीय सेना ने भी कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है. अभी ब्लैक टॉप पर भारतीय सेना डटी हुई है. ब्लैक टॉप वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का ऊपरी क्षेत्र है. इसे लेकर अलग-अलग दावे हैं. कुछ लोगों का कहना है कि यह भारतीय क्षेत्र में है, जबकि इस पर चीन भी दावा करता है. एक-दूसरे पर एलएसी पार करने का आरोप लगाया जा रहा है. अभी पूर्णरूप से स्पष्ट नहीं है कि किन-किन क्षेत्रों को सेना ने कब्जे में लिया है. मुझे लगता है कि ब्लैक टॉप एरिया में सेना ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है.

साथ ही उससे नीचे वाले इलाके हेलमेट पर भी सेना काबिज हो चुकी है. इससे भारतीय सेना को रणनीतिक तौर पर बहुत फायदा मिलेगा. अब ऊंचाई से चुशुल एरिया में पूरा पैंगोंग और अक्साई चिन तक के तमाम इलाके दूरबीन से देखे जा सकेंगे. इस घटना के बाद चीन का बौखलाना स्वाभाविक है. पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर चीन का पूरा कब्जा है. वे फिंगर चार से लेकर आठ तक अपने कब्जे में ले चुके हैं, लेकिन दक्षिण पैंगोंग इलाके में भारतीय फौज के एक्शन से उन्हें दिक्कत महसूस हो रही है.

चीनी फौज ने सोमवार को ब्लैक टॉप के नजदीक किसी जगह पर कब्जा कर लिया है. ब्लैक टॉप एरिया में चीनी फौज के 50-100 जवानों की तैनाती कर दी गयी है. उन्होंने अब इस एरिया में नया मोर्चा खोला है. उनकी नजर 10 सितंबर को मॉस्को में होनेवाली दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की वार्ता पर भी टिकी होगी. विदेश मंत्री जयशंकर के साथ चीनी विदेश मंत्री की वार्ता से स्थिति में कुछ बदलाव आ सकता है.

बीते दिनों रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ वार्ता में चीन ने भारतीय सेना पर एलएसी पार कर ब्लैक टॉप पर कब्जा करने का आरोप लगाया. उन्होंने सेना को वापस बुलाने की भी मांग की थी. अब चीन ने वहां अपने सैनिकों की तैनाती कर दी है. उन्होंने बहुत सोच-समझ कर नया मोर्चा खोलने की चाल खेली है. जब बातचीत होगी, तो यह फैसला हो सकता है कि दोनों तरफ से जहां-जहां दक्षिणी किनारे, चुशुल के इलाके में पोजिशन पकड़ी हैं, वहां से वापस जाएं. यह चीन की तरफ से मांग होगी.

भारत भी फिंगर्स, हॉट स्प्रिंग, देपसांग से उनके हटने की शर्त रखेगा. भारत पांच मई से पहले वाली स्थिति को कायम करने को कहेगा. फिलहाल, अभी की स्थिति यह है कि नये मोर्चे खुले हैं. अब तक की बातचीत बेनतीजा रही है, क्योंकि चीनी चाहते हैं कि केवल पैंगोंग के दक्षिणी किनारे से ही सेना हटायी जाए. एक हफ्ते पहले शुरू हुई बातचीत में उनकी यही मांग थी.

चीन ने अभी अरुणाचल प्रदेश में भी तनाव बढ़ाने की कोशिश है. हमें वहां उलझने की बजाय लद्दाख पर फोकस रखना चाहिए. जो नयी स्थिति पैदा हुई है और चीन ने जिस तरह से सोची-समझी चाल चली है. उन्होंने ब्लैक टॉप के नीचे और उसके आसपास अपने 50-60 जवान लगा दिये हैं. अब फौजें एक-दूसरे के काफी करीब आ गयी हैं. अभी तक की बातचीत से किसी भी प्रकार का कोई समाधान नहीं निकल सका है. ऐसे में 10 सितंबर को होनेवाली दोनों विदेश मंत्रियों की वार्ता का हमें इंतजार करना चाहिए. यह भी जरूरी नहीं कि केवल एक बातचीत में ही मामला हल हो जायेगा, लेकिन अगर किसी बात पर सहमति बनती है, तो वह आगे की राह को आसान बना सकती है.

हमारे विदेश मंत्री के बयान से दो-तीन बातें स्पष्ट होती हैं. पहली बात कि उन्होंने यह कही है कि जब वे चीन के विदेश मंत्री वांग यी के से वार्ता करेंगे, तो उनकी पहली प्राथमिकता तनाव को कम करने और आपसी सहमति बनाने की होगी. वे केवल ब्लैक टॉप की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे कब्जा किये गये पूरे इलाकों की बात कर रहे हैं. दूसरी बात वह कह रहे हैं कि ऐसे मामलों में पहले भी 2013 में देपसांग, 2014 में चुमार और 2017 में डोकलाम का मसला बातचीत के जरिये हल हो गया था, तो अभी क्यों नहीं हो सकता? विदेश मंत्री की तीसरी बात सबसे महत्वपूर्ण है. उनका कहना है कि भारत-चीन संबंध सीमा पर शांति बहाल करने पर निर्भर हैं.

अगर सीमा पर शांति नहीं है, तो भारत-चीन द्विपक्षीय संबंध सामान्य नहीं हो सकते हैं. इन्हीं बातों पर दोनों नेताओं की बातचीत निर्भर होगी. हमारी शर्त है कि पहले वे सभी जगहों से पीछे हटें, लेकिन वे हाल-फिलहाल की बात करेंगे. वे टालने की कोशिश करेंगे. अगर इस बातचीत में ऐसा कोई संकेत मिलता है कि आगे का रास्ता बंद है (क्योंकि दोनों एक-दूसरे पर तनाव बढ़ाने का आरोप लगा रहे हैं), तो मुश्किलें थोड़ी बढ़ेंगी. दोनों देशों की सहमति होने पर रूस मध्यस्थता की पेशकश कर रहा है. यह सबसे महत्वपूर्ण विकल्प हो सकता है, क्योंकि भारत की रूस के साथ अरसे पुरानी घनिष्ठता रही है.

अभी चीन और रूस का संबंध सबसे अच्छे दौर में है. कुछ महीने पहले शी जिनपिंग ने एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने रूस को सबसे करीबी दोस्त बताया था. ऐसे में तनाव को कम करने में रूस की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण हो सकती है. मेरा मानना है कि रूस को वार्ता की इस प्रक्रिया में शामिल कर लेना चाहिए, क्योंकि अभी हालात नाजुक दौर में हैं, मुठभेड़ हो चुकी है, गोली भी चल चुकी है. गलवान में मुठभेड़ के बाद इस हफ्ते गोलियां भी चली हैं. इस बीच मॉस्को में दोनों विदेश मंत्रियों को बैठक भी हो रही है. ऐसे वक्त में अगर रूस आता है, तो उसका काफी असर होगा. अभी जिस तरह से तनाव है, उसमें किसी को यह पता नहीं कि आगे किस तरह के हालात हो सकते हैं. वे घुसपैठ की कोशिश करेंगे, भारतीय फौज उन्हें आने नहीं देगी. आगे मामला और भी गंभीर भी हो सकता है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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