दुख निवारण एवं शांति में गौतम बुद्ध का योगदान

छठी शताब्दी ईसा पूर्व बौद्ध धर्म के युग में कई युग प्रवर्तक पैदा हुए थे. आश्चर्य की बात है कि ये युग प्रवर्तक एक-दूसरे को जानते नहीं थे. इन्होंने एक-दूसरे से मिलने, देखने या सुनने का अवसर नहीं पाया था

By रामकिशोर साह | May 16, 2022 12:25 PM

छठी शताब्दी ईसा पूर्व बौद्ध धर्म के युग में कई युग प्रवर्तक पैदा हुए थे. आश्चर्य की बात है कि ये युग प्रवर्तक एक-दूसरे को जानते नहीं थे. इन्होंने एक-दूसरे से मिलने, देखने या सुनने का अवसर नहीं पाया था, किंतु इनके उपदेशों में बड़ी समानता थी. चीन के कन्फ्यूशियस महान संत थे. उन्होंने ज्ञान प्राप्ति का मार्ग शिक्षा, सदाचार व सद्विचार को बताया.

चीन के ही लाओ-त्से ने भौतिक जीवन का परित्याग कर नैसर्गिक जीवन अपनाने का उपदेश दिया. ईरान के जरथ्रुष्ट ने एकेश्वरवाद का सिद्धांत दिया. उन्होंने अहुरमज्दा (परम ब्रह्म) को कर्मकांड से नहीं, बल्कि अच्छे आचरण और नैतिक गुणों से प्राप्त होने का संदेश दिया. यूनान के पाइथागोरस ने प्रचलित अंधविश्वासों का खंडन वैज्ञानिक प्रमाणों से किया और लोगों की आंखें खोलीं. महावीर ने सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और इंद्रिय निग्रह पर विशेष बल दिया.

बौद्ध धर्म न तो कर्मफल का त्याग, न इंद्रियों का पूर्ण निग्रह ही मानता था. बौद्ध धर्म का विशेष बल निर्वाण पर था. निर्वाण परम ज्ञान, जीव शुद्धि और असीम शांति का प्रतीक था और परिनिर्वाण जन्म-मरण से मुक्ति पाना था. फलत: अपने समकालीन धर्म दर्शनों में बौद्ध धर्म सबसे अधिक लौकिक, व्यावहारिक, झंझटहीन एवं उपयोगी साबित हुआ और इस धर्म को छोटे से बड़े लोगों ने अंगीकार किया.

सीधे-सादे ढंग से मानव जीवन की मूल समस्या और उनके समाधान के मार्ग बौद्ध धर्म में स्पष्ट किये गये हैं. धार्मिक विचारों के गहन मंथन-चिंतन से निकले हुए नये तथ्य सांसारिक समस्या और उनके समाधान में स्पष्ट उपयोगी सिद्ध हुए. गौतम बुद्ध ने बताया कि संसार में दुख ही दुख है. जन्म से मरण की अवधि दुखों से भरी हुई है. मोह, ईर्ष्या, तृष्णा, राग-द्वेष, कटुता, संकीर्णता आदि गैर मानवीय आचरण हैं. इनके निवारण से ही दुख का विनाश संभव है.

दुख के विनाश निमित्त इन्होंने आष्टांगिक मार्ग निश्चित किया, जो इस प्रकार हैं- सम्यक दृष्टि (सत्य-असत्य, भला-बुरा, पाप-पुण्य, समता-असमता में विभेद कर सकना), सम्यक संकल्प (आसक्ति रहित और दृढ़ निश्चय वाला निर्णय ले सकना), सम्यक वाक (विनम्रता, मृदुलता और सहृदय वाली स्पष्ट वाणी बोल सकना), सम्यक क्रमांक (अपने लाभ के साथ दूसरों का नुकसान न हो), सम्यक आजीव (जीवन निर्वाह के लिए ऐसे काम कदापि न करना, जिनसे समाज की हानि होती है,

जैसे- चोरी, डकैती, धोखाधड़ी, अधिक मूल्य लेना, खराब वस्तु देना, भ्रष्टाचार), सम्यक व्यायाम (अहंकार, तृष्णा, क्रोध आदि दुर्गुणों का दमन करना), सम्यक स्मृति (सही विचार व सजगता से कार्यों का निष्पादन करना) तथा सम्यक समाधि (चित्त की स्पष्ट एकाग्रता रखना).

इन आष्टांगिक मार्गों के अनुपालन से निर्वाण की प्राप्ति निश्चित है. निर्वाण की प्राप्ति के लिए यज्ञ, बलि और पुरोहित की मध्यस्थता की कतई कोई आवश्यकता नहीं है. वह स्वयं अपने लक्ष्य हासिल कर लेगा. गौतम बुद्ध ने अहिंसा, अच्छे आचरण और त्याग पर विशेष बल दिया है.

माता-पिता, गुरुजन, वृद्ध एवं लाचार के प्रति श्रद्धा व सेवाभाव रखने को परम महत्वपूर्ण बताया. अजातशत्रु, बिंबिसार, अशोक, कनिष्क, हर्षवर्द्धन जैसे महान सम्राटों ने बौद्ध धर्म को अपनाया तथा इस धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. भारत समेत आज चीन, जापान, तिब्बत, भूटान, श्रीलंका, म्यांमार, दक्षिणी कोरिया, कंबोडिया, थाईलैंड, मंगोलिया, मलेशिया और वियतनाम में इस धर्म के मानने वालों की बड़ी संख्या है. आज विश्वभर में फैले आतंक और अपराध इनके बताये मार्ग पर चलने से निश्चित रूप से खत्म हो सकते हैं.

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