बड़े बदलाव के पुरोधा कर्पूरी ठाकुर

विचारों की प्रखरता, अडिग विश्वास ने कर्पूरी जी को कभी विचलित नहीं होने दिया. कर्पूरी ठाकुर जिन विचारों और कार्यक्रमों को जमीन पर उतारने में समर्पित रहे, वे डॉ लोहिया द्वारा प्रतिपादित थे.

By के सी | January 22, 2021 7:43 AM

केसी त्यागी

पूर्व सांसद एवं प्रधान

महासचिव, जद (यू)

kctyagimprs@gmail.com

जननायक कर्पूरी ठाकुर का 24 जनवरी को जन्म दिवस है. देश इसे समता और स्वाभिमान दिवस के रूप में स्मरण करता है. बिहार के लगभग सभी राजनीतिक दल कार्यक्रमों और जनसभाओं का आयोजन करते हैं. रोचक है कि इसमें वे नेता एवं संगठन भी शामिल होते हैं, जो उनके जीवन-काल में उनके विचारों एवं कार्यक्रमों के विरोधी रहे. समता, जाति प्रथा का विनाश और स्वाभिमान से जीने की चाह का सपना सच में बदलने का प्रयास कर्पूरी ठाकुर द्वारा किया गया.

दुर्बल एवं साधनहीन लोगों में चेतना लाना, उन्हें संगठित करना और परिवर्तन का वाहक दस्ता बनाना असंभव जैसा कार्य है. विचारों की प्रखरता, अडिग विश्वास ने कर्पूरी जी को कभी विचलित नहीं होने दिया. डॉ आंबेडकर और कर्पूरी ठाकुर के आरक्षण, विशेष अवसर का सिद्धांत, समता, जाति-विनाश की राजनीति का विरोध कर रहे संगठन एवं व्यक्तियों के समूह उनके जन्म-मृत्यु दिवस पर भव्य कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं.

कर्पूरी ठाकुर जिन विचारों और कार्यक्रमों को जमीन पर उतारने में समर्पित रहे, वे डॉ लोहिया द्वारा प्रतिपादित थे. गैर-कांग्रेसवाद की राजनीति के जनक डॉ लोहिया बहुप्रयोगधर्मी थे. पार्टी के संगठनात्मक ढांचे और मंत्रिमंडल में भी विभिन्न वर्गों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व दिलाने के लिए डॉ लोहिया आजीवन प्रयासरत रहे. जब 1967 में डॉ लोहिया की मृत्यु हुई, उस समय बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, पंजाब समेत आधा दर्जन से अधिक प्रांतों में गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने.

सोशलिस्ट पार्टी के असर वाले राज्यों की बागडोर पिछड़े वर्ग के नेताओं के हाथ में रही. उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह, बिहार में कर्पूरी ठाकुर और हरियाणा में राव बीरेंदर सिंह पिछड़े वर्गों के स्थापित नेता थे. डॉ आंबेडकर 1942 में दलित एवं आदिवासी समूहों के लिए आरक्षण का प्रश्न उठा चुके थे, जो स्वतंत्र भारत में संभव हो सका. पिछड़े वर्गों की आधी से अधिक आबादी शिक्षा और नौकरी से दूर थी. स्वतंत्रता के बाद हिस्सेदारी को लेकर समय-समय पर आंदोलन भी होते रहे और आयोग भी गठित हुए.

पहला आयोग काका कालेलकर की अध्यक्षता में गठित हुआ, जिसने इन वर्गों की नगण्य हिस्सेदारी पर अफसोस जाहिर किया और आरक्षण लागू कर इन समूहों की हिस्सेदारी की जोरदार सिफारिश की. ये सिफारिशें लंबे समय तक धूल चाटती रहीं. निःसंदेह कांग्रेस पार्टी ऐसे किसी बड़े परिवर्तन की हिमायती नहीं रही. वर्ष 1967 के गैर-कांग्रेसी प्रयोग और 1977 में जनता पार्टी के गठन से परिस्थितियां बदलीं. उत्तर प्रदेश में राम नरेश यादव, बिहार में कर्पूरी ठाकुर, हरियाणा में चौधरी देवीलाल, पंजाब में प्रकाश सिंह बादल, उड़ीसा में नीलमणि राउत, गुजरात में बाबू भाई पटेल और बाद में महाराष्ट्र में शरद पवार किसान जातियों एवं पिछड़े वर्गों के मुख्यमंत्री बने.

कर्पूरी ठाकुर के सिर पर कांटों का ताज था. पार्टी के अंदर और बाहर निहित स्वार्थों के प्रतिनिधि मोर्चा लगाये हुए थे. 11 नवंबर, 1978 को बिहार विधानसभा में पिछड़ी जातियों के आरक्षण का प्रस्ताव आया, तो जनता पार्टी दो फाड़ हो गयी. कर्पूरी जी के कई साथी भी अपनी जाति समूहों के साथ चिपक गये. आरक्षण में आरक्षण का प्रस्ताव कई पिछड़ी जातियों के स्थापित नेताओं को भी नागवार गुजरा. जब अति पिछड़ों के लिए 12 प्रतिशत, सामान्य पिछड़ों के लिए आठ प्रतिशत, महिलाओं के लिए तीन प्रतिशत और सामान्य श्रेणी के लिए तीन प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की गयी, तो कर्पूरी जी सबके निशाने पर आ गये. किसी ने उन्हें उत्तर भारत का पेरियार घोषित कर दिया, तो किसी ने उन्हें आंबेडकर. कुछ ने उन्हें महात्मा फुले और साहू जी महाराज का उत्तराधिकारी बताया. सामाजिक न्याय के इस संघर्ष में उनका मुख्यमंत्री पद चला गया, लेकिन वह शीर्षस्थ नेता के रूप में स्थापित हुए. आज वे हमारे बीच नहीं है, पर पूरे देश में कर्पूरी ठाकुर के आरक्षण फार्मूले पर अमल हो रहा है.

सामान्य श्रेणी के लिए संविधान में आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं थी, लेकिन पहले बिहार में नीतीश सरकार ने सवर्ण आयोग गठित कर इन वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की. बाद में केंद्र की मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को लागू किया. महिलाओं के आरक्षण की चर्चा पहली बार कर्पूरी फार्मूले में शामिल हुई. पिछले दिनों मोदी सरकार ने कर्पूरी फार्मूले पर अमल करने हेतु ‘कोटा के अंदर कोटा’ सिद्धांत को लागू करने के लिए जी रोहिणी आयोग का गठन किया है.

कुछ राज्यों में पहले से ही अति पिछड़े इन सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं. बिहार में कर्पूरी ठाकुर के मानस पुत्र नीतीश कुमार ने अत्यंत पिछड़ों के साथ-साथ महादलित आयोग के जरिये अत्यंत दुर्बल वर्गों के आर्थिक-सामाजिक सशक्तीकरण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है. आज किसी दल, व्यक्ति, समूह में इतना दम-खम नहीं है कि कर्पूरी फार्मूले का विरोध कर सके. सभी दलों, सभ्य समाज के प्रतिनिधि वर्ग को स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर को विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें भारतरत्न देने का आह्वान करना चाहिए, ताकि उनके अनुयायी गौरवान्वित महसूस कर सकें.

Posted By : Sameer Oraon

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