पाक को अनावश्यक जल बंद हो

तरुण विजय राज्यसभा सांसद, भाजपा सिंधु नदी पर 1996 में जब हमने सिंधु दर्शन अभियान और उत्सव की योजना बनायी थी, तो पाकिस्तान को नाजायज रूप से जा रहे 80 प्रतिशत जल के भारत में उपयोग का एक महत्वपूर्ण मुद्दा जुड़ा था. बाद में जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने भी भारत सरकार से सर्वसम्मत अनुरोध किया था […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 30, 2016 6:29 AM

तरुण विजय

राज्यसभा सांसद, भाजपा

सिंधु नदी पर 1996 में जब हमने सिंधु दर्शन अभियान और उत्सव की योजना बनायी थी, तो पाकिस्तान को नाजायज रूप से जा रहे 80 प्रतिशत जल के भारत में उपयोग का एक महत्वपूर्ण मुद्दा जुड़ा था. बाद में जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने भी भारत सरकार से सर्वसम्मत अनुरोध किया था कि सिंधु जल संधि का पुनरीक्षण किया जाये, ताकि जम्मू-कश्मीर के किसानों को आवश्यक मात्रा में जल मिल सके.

अब समय आ गया है कि सिंधु जल के सिंधु पुत्रों के हित उपयोग पर ध्यान दिया जाये. भारत दुनिया में अकेला ऐसा देश है, जिसका नाम एक नदी यानी सिंधु नदी पर पड़ा है. हमें इंडिया या हिंदुस्तान नाम सिंधु ( जिसे ग्रीक लोगों ने इंडस कहा) नदी के ही नाम पर मिला है. सिंधु के उस पार रहनेवाले हिंदू (इंडियन) कहलाये और सिंधु पार क्षेत्र का नाम हुआ इंडिया या हिंदुस्तान. उस सिंधु का उद्गम तिब्बत में है.

एशिया में 57 ऐसी नदिया हैं, जो दो या अधिक देशों से गुजरती हैं. केवल अकेला भारत है, जिसने अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार जानेवाली नदियों के जल बंटवारे पर पड़ोसी देश के साथ समझौता या करार ​​किया है. चीन की सीमा से सटे बारह देश हैं, जिनमें चीन की नदियां जाती हैं.

लेकिन, चीन ने ​किसी एक देश के साथ भी- जिनमें भारत भी शामिल है, जहां ब्रह्मपुत्र तिब्बत से आती है- कोई नदी जल बंटवारा करार नहीं किया है.

यदि भारत जम्मू-कश्मीर राज्य की पानी आवश्यकताओं के ​लिए सिंधु जल का उपयोग करे, तो यह पा​किस्तान को सूखा कर देगा. जम्मू-कश्मीर राज्य विधानसभा ने 2003 में प्रस्ताव पारित कर पाकिस्तान को बेवजह, अनावश्यक मात्रा में जा रहे जल को रोक कर राज्य की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए ​सिंधु जल संधि की पुनः समीक्षा की मांग की थी. 2003 से 2016 आ गया, लेकिन केंद्र ने अपने ही राज्य की मांग अनसुनी कर पाकिस्तान को अनावश्यक जल की आपूर्ति जारी रखी है.

पाकिस्तान से संबंध अच्छे हों, इसके लिए सामान्य अपेक्षाओं का दायरा असामान्य रूप से बढ़ाते हुए नरेंद्र मोदी ने इतने प्रयास किये कि घोर विपक्षी भी हैरान रह गये. लेकिन, पाकिस्तान ने नरेंद्र मोदी के सज्जन व्यवहार का उत्तर पठान कोट और उड़ी हमलों से देकर बताया कि वह सुधरने की कोई मंशा नहीं रखता.

कभी भी पाकिस्तान में आमने-सामने के युद्ध में जीतने की क्षमता नहीं रही. उसकी सेना विलासी और युद्ध से डरती है. 1947 के बाद पाकिस्तानी सेना ने खुल कर कोई युद्ध नहीं लड़ा. 1947-48 में उसने कबायलियों को आगे किया, 1965 में रेंजर्स का सहारा लिया, 1971 में उसकी सेना की दरिंदगी का सामान्य जनता शिकार बनी और अंततः बड़ी संख्या में उन्हें हमारे सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा.

अमेरिकी डाॅलरों की खैरातों और अफसरों की सामंती मानसिकता ने पाकिस्तानी सेना में सिर्फ नियमहीन जंगलियों की भीड़ इकठ्ठा की है और वह सीधे युद्ध के बजाय आतंकवादियों के कंधों से भारत पर छुप-छुप कर वार करना ज्यादा सुरक्षित मानती है. पाकिस्तान द्वारा परमाणु हमले की धमकियां बेहद बचकाना तथा अपनी पराजय स्वीकार करने जैसा है.

भारत ने स्पष्ट किया है ​कि वह इसलामाबाद की परमाणु धमकियों के आगे झुकनेवाला नहीं है, और उसकी परवाह किये बिना पाकिस्तान के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही करेगा. किसी भी पाकिस्तानी चाल का उत्तर देने के ​लिए हमारी शक्ति और सामर्थ्य पाकिस्तान से कई गुना अधिक है.

इस समय विश्वभर में पाकिस्तान अकेला पड़ रहा है. रुस, चीन, अमेरिका, फ्रांस जैसे देश पहली बार पाकिस्तान के विरुद्ध एक स्वर में खड़े दिखे हैं. चीन यद्यपि पाकिस्तान को समर्थन और उसके परमाणु कार्यक्रम को मदद देनेवाला है, फिर भी आतंकवाद के ​विरुद्ध वैश्विक स्वरों से चीन स्वयं को अलग नहीं रख पाया.

रुस ने तो हमेशा की तरह भारत का साथ देकर अपनी बरसों पुरानी दोस्ती की परंपरा को कायम रखा है. भारत को इस माहौल का लाभ उठा कर एक ओर पाकिस्तान को विश्व समुदाय में अलग-थलग करने, शर्मिंदा करने व कलंकित करने का अभियान चलाना होगा, तो दूसरी ओर उसके ​विरुद्ध आर्थिक नाकेबंदी भी लागू करनी होगी.

पाकिस्तान नफरत की पैदाइश है. मुहम्मद इकबाल और मुहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों को अलग कौम घोषित कर हिंदुओं के साथ रहने से इनकार किया और ​द्विराष्ट्रवाद के खोखले सिद्धांत पर पाकिस्तान की नींव रखी. वही पाकिस्तान आज सिंध, बलूचिस्तान और पख्तूनिस्तान के ​विद्रोही स्वरों तले चरमरा रहा है. उसका वजूद सिर्फ पंजाबी पाकिस्तान, उसकी पंजाबी फौज और अमेरिका तथा चीन की मदद से बचा है. ऐसे पाकिस्तान को अब मरना ही होगा.

पाकिस्तान अब किसी राहत या दया का पात्र नहीं है. यह भारतीय लोकतंत्र के लिए गौरव का क्षण है कि दलीय मतभिन्नताओं के बावजूद पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए देश में एक मतैक्य उभरा है. राष्ट्रहित में राष्ट्रीय मतैक्य का उपयोग करना ही होगा, वरना इतिहास हमें क्षमा नहीं करेगा.

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